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लौटोगे? - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

लौटोगे?

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लौटोगे?
तुम्हें गये पूरे चार दिन हो गए
जाते हुए एक बार भी न ठिठके
न पीछे मुड कर देखा कि बार
मैने भी रोका नहीं,टोका नहीं,
मनाने की कोशिश नहीं की
जानती हूं कितने हठी हो !
सोचा था, गुस्सा ठंडा होने पर लौट आओगे
अब आशा क्षीण है
पत्र लिख रही हूं ,ओ निष्ठुर !
उलाहना देना चाहती हूं,मगर दूंगी नहीं
ख़त लिखा तो मगर भेजूंगी नहीं
रखूंगी महफूज मेज की दराज में
रोज खोलूंगी , फिर पढ़ कर रख दूंगी!
प्रिय(शायद ऐसा लिखने का अधिकार खो चुकी हूं)
 तुम घर कब लौटोगे?
मेरे प्रेम की कोई कद्र नहीं ?
इन गलियों को तुम भूल पाओगे?
 जिनमें बसती है ,मेरी ,तुम्हारी आंखमिचौली !
इन्हें छोड़ कर तुम जी पाओगे ?
 लौट आओ,कभी नहीं तुमसे  पूछूंगी
 तुम्हारी बेरुखी  का सबब 
 बस एक बार लौट आओ 
 अब  नहीं रोकूंगी ,न टोकूंगी 
 दाना नहीं चुगता हमारा हीरामन
 तुम्हारे पढ़ने की जगह 
तुम्हारी बाट जोह रही है ।
 अब तुम्हारे आने का इंतजार करती 
 पथरा रही हैं ये दो आंखें
सखी कहती है
 बाट जोहना बंद कर दे
जी तू भी अपनी जिंदगी
 इत्मीनान से 
 मगर अब जीने की चाहत ही नहीं
जीने का मकसद ही नहीं
.. लौटोगे ?

मौलिक
गीता परिहा
अयोध्या ( फैजाबाद)

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