Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
चल खुसरो, घर आपने - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

चल खुसरो, घर आपने

  • 117
  • 8 Min Read

हिचकियाँ अब बंद हैं
मन के सभी झरोखे
और यादों की
खिड़कियाँ सब बंद हैं

ये खिड़कियाँ अब
देती हैं बस झिड़कियाँ,
और बाकी सब बंद हैं

मन की किसी सुरंग में
जाकर दुबके वो ख़्वाब
वहीं पर जाकर ठहरे

और पलकों की चिलमनों पे
आकर ढुलके जज़्बात
वो गहरे-गहरे

हाँ, इन सब पर
पथरीली सी सख्त निगाहों के
दिनों दिन सख्त होते पहरे

इस पथरीले से,
जहरीले से,
चेहरे के
आँख-कान अब दोनों ही
हो चुके हैं अंधे-बहरे

मंजिलों की ओर बढ़ते
मासूम से अंदाज में
तुम सबके इस
रुके-रुके से आज के
कदम अचानक
यूँ रुककर
अनचाहे से मोड़ पर
अब आकर ठहरे

हाँ, इन पत्थरों को तो कल
तुमने ही तराशा था
जोड़-जोड़कर इनको तुमने
इनमें ही एक ख़्वाब नया
तलाशा था

तो क्या हुआ
जो इनके छल के,
धू-धू कर ऐसे जल के
ख़्वाब वही अब हुए धुआँ

इन पत्थरों के साये में
बसकर हर एक
पथरीला सा बाशिंदा,
इंसानियत को कर शर्मिंदा,
खुद भी पत्थर हो गया है
कानों में यूँ तेल डालकर,
सो गया है

हाँ, तुम ही तो इस सबके
जिम्मेदार हो
हाँ, तुम्हारे ही हाथों
हुआ ये बंटाधार तो

फिर क्यों रोते हो,
इतने अधीर क्यों होते हो?

हाँ, जैसे-तैसे करके
गाँव चले जाओ,
धरती की ही गोदी में तुम
प्यार वहीं पर फिर पाओ

हाँ, धरती का दिल
बहुत ही बडा़ है
उसके सीने से खडा़
तुम्हारा आशियाँ
अब भी वहीं खडा़ है

आ, अब लौट चल
छोड़ सभी ये उलाहने,
मन के सारे खोट, चल

धरती की गोदी में,
अब तू
आसमान को ओढ़ चल

गिरकर उठ और फिर सँभल
रूखी-सूखी ही सही
अपने घर में भी रोटी है
इस मिट्टी के कण-कण में
वहीं, कहीं पर छिपा
कीमती मोती है

तू बस आज वहीं पर चल
हाँ, बस चल, तू चल
सायों में मत खुद को छल
मिट्टी की खुशबू में ढल

ये बेरहम
पत्थर का जंगल
छोड़ चल
हरी -भरी माँ की
गोदी की ओर चल

चल खुसरो, घर आपने,
खुद अपने कदमों से
राहें नापने
खुद अपने कदमों से
मंजिल छाँटने,
चल खुसरो घर आपने,
चल खुसरो, घर आपने

सुधीर अधीर

1596122716386_1597750543.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg