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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कहानी | उपन्यास | |
कविता | अतुकांत कविता | 4th |
लेख | आलेख | 5th |
London is the capital city of England.
कविताअतुकांत कविता
दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
किसे क्या कहूँ
यहाँ हर कोई बीमार है |
उपचार की तलाश में
खटखटाते रहते द्वार हैं |
न जाने किस दर पर
नब्ज देखनेवाला मिल जाए |
इश्तहार देखकर
जहाँ
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कविताअतुकांत कविता
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
तुम्हारा साथ भी चाहिए |
जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
तुमने तारीफ की,
उसे जमीन पर उतारने के लिए |
अभी जो शब्द बनकर सिमटा
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कविताअतुकांत कविता
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
तुम्हारा साथ भी चाहिए |
जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
तुमने तारीफ की,
उसे जमीन पर उतारने के लिए |
अभी जो शब्द बनकर सिमटा
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कविताअतुकांत कविता
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
तुम्हारा साथ भी चाहिए |
जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
तुमने तारीफ की,
उसे जमीन पर उतारने के लिए |
अभी जो शब्द बनकर सिमटा
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कविताअतुकांत कविता
तुम सुनो न सुनो
""""""""""""""""""""""""""""""
तुम सुनो न सुनो हम कह जाएँगे |
भले जुबाँ न खुले आँखों से बह जाएँगे |
सुननेवाले तब भी सुनेंगे |
परदे के भीतर से भी आँखों में झाँक जाएँगे |
जरूरी नहीं कि जोर से चिल्लाऊँ |
जिनका
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कविताअतुकांत कविता
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
कवि मौन है |
किताबों में ही गौण है |
अब कौन पूछता है
तुम कौन हो ?
सब खुद ही जान लेते हैं
किताबों में जो लिखा है |
उसे ही मान लेते हैं |
सवाल सामने आने से
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कविताअतुकांत कविता
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
कवि मौन है |
किताबों में ही गौण है |
अब कौन पूछता है
तुम कौन हो ?
सब खुद ही जान लेते हैं
किताबों में जो लिखा है |
उसे ही मान लेते हैं |
सवाल सामने आने से
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कविताअतुकांत कविता
न्याय इतनी दूर क्यों ?
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
न्याय की तकरीर बनती है शब्दों के तकरार से
पर लिखे जाते हैं फैसले आज भी तलवार से |
लिखी जाती इबारतें कलम से पन्नों पर |
पर उस कलम की भी कीमत होती है |
लिखनेवाले हाथ
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कविताअतुकांत कविता
न्याय इतनी दूर क्यों ?
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
लिखी जाती इबारतें कलम से पन्नों पर |
पर उस कलम की भी कीमत होती है |
लिखनेवाले हाथ यूँ ही नहीं चलते
उन हाथों में ऊर्जा भरने की मिन्नत होती है |
इन इमारतों की दीवारें
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लेखआलेख
भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए |
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
बहुत हो गयी ईश्वर की चर्चा और ईश्वर के नाम की पूजा | अब ऐश्वर्य की पूजा का समय है | क्योंकि हमारा ईश्वर सदा इसी ऐश्वर्य में खोया है | वहीं से वह हमे
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कविताअतुकांत कविता
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
तेरे इनकार में ही इकरार है
होठों पर ना के सिवा कुछ और नहीं पर दिल में हाँ के सिवा और क्या है ?
आँखें कह देती हैं तेरा हाल
अब आजा पास मेरे
मत
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कविताअतुकांत कविता
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
तेरे इनकार में ही इकरार है
होठों पर ना के सिवा कुछ और नहीं पर दिल में हाँ के सिवा और क्या है ?
आँखें कह देती हैं तेरा हाल
अब आजा पास मेरे
मत
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लेखआलेख
विश्व महिला दिवस के बहाने
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आज विश्व महिला दिवस है | किसी दिन विश्व पुरूष दिवस भी मनाया जाता है | लेकिन क्या है ऐसे दिवस के मायने मुझे यह आजतक समझ में नहीं आया | क्या ऐसे दिवस मनाने से
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कविताअतुकांत कविता
अपनी धारा अपना वेग
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
तुम मेरी जुबान बँद करना चाहते हो |
क्योंकि मैं अपनी भाषा बोलने लगा हूँ |
रंजिश बस यही है तुम्हारी कि
अब मैं तुम्हारी भाषा का अर्थ समझने लगा हूँ |
उन व्यर्थ की बातों
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आज की राजनीतिक व्यवस्थाओं पर बहुत अच्छा लिखा है..!
धन्यवाद कमलेश जी !
कविताअतुकांत कविता
मन तन के पार है
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
अब तुम्हारी नग्न तस्वीरों में
मेरा मन मगन नहीं होता |
अब शायद इसने इन तस्वीरों के पार देखना सीख लिया है |
जो कभी देह में ही अपनी दृष्टि
गड़ाए रखता था |
वह सृष्टि के उन रहस्यों
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कविताअतुकांत कविता
मन तन के पार है
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
अब तुम्हारी नग्न तस्वीरों में
मेरा मन मगन नहीं होता |
अब शायद इसने इन तस्वीरों के पार देखना सीख लिया है |
जो कभी देह में ही अपनी दृष्टि
गड़ाए रखता था |
वह सृष्टि के उन रहस्यों
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कविताअतुकांत कविता
गरीबी और परायापन
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
कौन बात करता है आजकल गरीब जानकर |
लोग अपना मुँह फेर लेते हैं उसे बदनसीब मानकर |
सबको डराती है यह गरीबी ,रूलाती है यह गरीबी |
दूर हो जाते हैं अपने भी ,कोई रह न जाता करीबी
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कविताअतुकांत कविता
गरीबी की मार
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
तोड़ जाती है तुम्हारा विश्वास ,तोड़ जाती है हौसला |
गरीबी उजाड़ जाती है ,बना बनाया घोंसला |
अपने पराए हो जाते हैं जैसे साँप और नेवला
हर कोई करने लगता है तुम्हारी जिंदगी का
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लेखआलेख
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
क्या यह व्यवस्था व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित कर पा रही है ? मेरा उत्तर है नहीं | हम अभी भी तर्क नहीं ताकत की भाषा समझते हैं | तमाम तर्कों को ताकत
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कविताअतुकांत कविता
गाँव ! तुम्हारी बड़ी याद आती है
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
गाँव बहुत शिकायत है तुझसे
पर बहुत याद आती है तुम्हारी
शहर की इन सड़कों पर ,अभी भी तेरी गलियाँ हैं भारी |
कुछ हैं वजह जिससे तेरे यहाँ
जीना दुस्वार
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कविताअतुकांत कविता
बदलते शक्ल
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
हम दर्पण लेकर आए थे |
उन्होंने आईना दिखा दिया |
उनकी तस्वीर देखना चाहता था
उन्होंने मेरी शक्ल समझा दिया |
बड़े अरमान थे उनके रूप उकेरने की
उन्होंने मेरी शक्ल ही उकेर दी |
जैसे
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कविताअतुकांत कविता
कैसे कहूँ सच्चाई
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
आज जब तुम्हारी तस्वीर मेरी आँखों के सामने आई |
कुछ छुए ,कुछ अनछुए भाव प्रबल हुए
बहना चाहते थे कलम में स्याही बनकर इन पन्नों पर
कुछ कहना चाहते थे |
पर रूक गये अचानक
याद
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कविताअतुकांत कविता
कुछ उल्टा सीधा
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कहना था थोड़ा,मैं ज्यादा ही कह गया |
न जाने कैसे कब किस धारा में बह गया |
सुनकर हम भौंचक्के रह गए |
हम जो सुन न पाए वो वह कह गए |
प्यार का अतिरेक था ,या चाहत का भँवर
हम ड़ूबने
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कविताअतुकांत कविता
गाँव ! तुम्हारी बड़ी याद आती है
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
गाँव बहुत शिकायत है तुझसे
पर बहुत याद आती है तुम्हारी
शहर की इन सड़कों पर ,अभी भी तेरी गलियाँ हैं भारी |
कुछ हैं वजह जिससे तेरे यहाँ
जीना दुस्वार
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कविताअतुकांत कविता
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
तूने जिंदगी को लिखा
मैं जिंदगी को पढ़ न पाया
डूबता उतराता ही रह गया
सागर की इन लहरों में
ऊपर आकाश था
पर मैं न चढ़ पाया |
समझ न पाया इसकी भाषा
शायद बड़ी थी
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कविताअतुकांत कविता
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
तूने जिंदगी को लिखा
मैं जिंदगी को पढ़ न पाया
डूबता उतराता ही रह गया
सागर की इन लहरों में
ऊपर आकाश था
पर मैं न चढ़ पाया |
समझ न पाया इसकी भाषा
शायद बड़ी थी
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कविताअतुकांत कविता
कामदेव राज
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
भारत हो अमेरिका
हर जगह कामदेव का राज एक सा |
लक्ष्मी हर जगह दिखती हावी |
शिवजी में हर किसी को आज
फिर से दिखने लगी है खराबी
सरस्वती के नाम पर
चलता रंग गुलाबी |
न जाने कामदेव ने
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कविताअतुकांत कविता
मन के आईने में
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
क्यों किसी के पैरों के आहट से ही
दिल धड़क जाता है |
रगों में लहु तेज दौड़ जाता है |
अजीब सी झनझनाहट होती है
जैसे लगता है कोई बिजली सी
कौंध गयी सारे जहन में |
कुछ अनकहे से अल्फाज
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कविताअतुकांत कविता
प्यार का मर्म
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
पर वादा निभाना न आया मुझे |
वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
प्यार जताने
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कविताअतुकांत कविता
प्यार का मर्म
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
पर वादा निभाना न आया मुझे |
वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
प्यार जताने
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बहुत समय बाद आपकी रचना देखकर अच्छा लगा आदरणीय। 🙏🏻
धन्यवाद आदरणीया | आपने ही तो इस मंच पर लाया है |
कविताअतुकांत कविता
अस्तित्व की आवाज
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
कुछ लोग मुझे तोड़ना चाहते हैं |
कुछ लोग मेरी गरदन मरोड़ना चाहते हैं |
जिस मिट्टी में मेरी जड़ें हैं |
कुछ लोग उसे कोड़ना चाहते हैं |
न जाने क्यों मुझे वे खड़े होते हुए
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कविताअतुकांत कविता
अस्तित्व की आवाज
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
कुछ लोग मुझे तोड़ना चाहते हैं |
कुछ लोग मेरी गरदन मरोड़ना चाहते हैं |
जिस मिट्टी में मेरी जड़ें हैं |
कुछ लोग उसे कोड़ना चाहते हैं |
न जाने क्यों मुझे वे खड़े होते हुए
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बहुत खूब। आशा है आपकी और भी रचनाये यूँही पढ़ने को मिलती रहेगी हमें सदैब
एकदम ! आपका बहुत बहुत आभार
लेखआलेख
राजनीति के जलते प्रश्न
-----------------------
आखिर कौन सी ऐसी बात है जो हमें अपनी जाति को ही वोट देने पर मजबूर करती है | अगर राजनीति एक विज्ञान है तो क्या राजनीतिक वैज्ञानिक हमारी जाति के ही हो सकते हैं | क्या देश
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कविताअतुकांत कविता
बदलती दुनियाँ
--------------------------
उनकी लिखावट पर हम जान देते रहे |
उन्होंने कभी माना नहीं पर हम मान देते रहे |
मुझे क्या पता था ये उन्होंने सजावट के लिए लिखे हैं |
हमने जो भी लिखा उन्हें,वे कागज से मिटाते रहे
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कविताअतुकांत कविता
मध्यम मार्ग
------------------
जो मृत्यु को स्वीकार करते हैं
वही जीवन को अंगीकार करते हैं
मध्य ही तो जीवन की राह है
जिसने चुना यह मार्ग
वही तो पहुँच पाते हैं
केंद्र पर जो खड़े हैं
उन्हें कहाँ ये धागे खींच
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कविताअतुकांत कविता
वो जगह बता मुझे
--------------------+
न जहाँ आसमान हो
न जहाँ जमीन हो
बता दे वह जगह
जहाँ तू नहीं मलिन हो
देखना चाहता हूँ मैं तुम्हें
बिना बादलों की ओट के
धूल जिसपर ना पड़े
कोंपलों को निकलने दे
जहाँ बिना खोट के
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कविताअतुकांत कविता
राख के ढेर
-----------------------
राख की ढ़ेर में हम चिंगारी ढ़ूँढ़ रहे हैं |
ऊँचे लोगों से भरी सीढ़ियों पर चढ़ने की बारी ढूँढ रहे हैं |
देखता हूँ उन्हें उकट उकट कर बार बार
कहीं तो मिले आग की धाह
पर इधर से उधर चढ़कर
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लेखआलेख
लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस
------------------------------------------------------
महाराष्ट्र सरकार भी इस मामले को लेकर इतना आक्रामक इसलिए हुई है क्योंकि अर्नब गोस्वामी से बदला लेना है | वरना इतने दिन में किस सरकार
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लेखआलेख
ये शायर नहीं शोषक हैं
---------------------------
शायरी के नाम पर ताने ,और कुछ शब्द सुहाने | यही है शायद शायरों की पहचान जो कुछ खास खेमे में बँटे लगते हैं | ज्यादातर शायर मुस्लिम हैं इसलिए इनके ये ताने भरे अंदाज
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लेखआलेख
आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक
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हम आस्था और विश्वास को मानव चेतना को गति और ऊर्जा देनेवाला मानते हैं पर ऐसा नहीं है | यह हमारी चेतना को जकड़ लेता है | यह हमें उस तरफ जाने से
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लेखआलेख
राजनीति का पक्षपात
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हमारे इस विशाल देश में लूट,हत्या और बलात्कार जैसी कई अप्रिय घटनाएँ घटती रहती हैं | और उन घटनाओं पर लोग विरोध भी जताते हैं ,प्रतिक्रिया भी करते हैं | पर उन घटनाओं पर प्रतिक्रिया
Read More
सही लिखा है आपने बिल्कुल
धन्यवाद !
लेखआलेख
बिहार चुनाव : मुद्दे तो बहाना हैं असली बात छुपाना है |
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अभी एक लेख पढ़ रहा था जिसमें किसी महानुभाव द्वारा यह लिखा गया है कि तेजस्वी यादव ने दस लाख सरकारी
नौकरियों का वादा करके
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कविताअतुकांत कविता
मैं क्या चाहता हूँ
--------------
मैं चाहता हूँ
भूमि का न बँटवारा हो |
भले बने कोई बाहुबलि
पर न कोई बेचारा हो |
बिना सहारे खड़े हो सके
अपने जीवन को
जिस पथ पर चाहे मोड़ सके
अनचाहे पथ को छोड़ सके
न कोई बादशाह
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क्अच्छी चाहत है आपकी काश ऐसा हो पाता
क्यों नहीं हो सकता हम सबके सम्मिलित प्रयास से
लेखआलेख
यह राष्ट्रविरोध नहीं तो और क्या है ?
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पीपुल्स एलाएंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन के अध्यक्ष मो.फारूख अब्दुल्ला कह रहे हैं कि हम राष्ट्र का विरोध नहीं कर रहे ,हम तो भाजपा का विरोध कर रहे हैं | जिसने
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कविताअतुकांत कविता
बाहुबलि कौन
------------
जिसे मिला सत्ता का साथ हो |
जिसके पैरों जाति का माथ हो |
जो धर्म पिशाच हो
और जो कर सकता नंगा नाच हो |
ऊँची पदवी वाला हो |
दिखाता खुद को लोगों का रखवाला हो |
निहायत ही क्रूर मिजाज का
पर
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लेखआलेख
जनता का घोषणा पत्र
----------------------------
आज बात नेताओं की नहीं जनता की करते हैं | हम क्या चाहते हैं अपने द्वारा चुनी गयी सरकार से | इसका विवरण निम्न है |
1.रोजगार के अवसर
2.अपने आत्मसम्मान की रक्षा
3.न्याय
4. यातायात
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कविताअतुकांत कविता
अन्याय की जयजयकार
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आज भी वही दुनियाँ है
जहाँ अन्याय की होती जयजयकार है |
वह भी असहाय है
जो न्याय के नाम पर बनती सरकार है |
उसके सभी अंगों में वही बसे हैं
जिनके नश नश में अहंकार है |
उन्हीं
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कविताअतुकांत कविता
बिना सीढ़ियों के
----------------------
कोई इतिहास लिखता है |
कोई विश्वास लिखता है |
कोई अपनी याददास्त
कोई अपनी तलाश लिखता है |
लिखने की जिद्द है
कोई कलम उदास लिखता है |
पर लिख नहीं पाता कोई अपनी प्यास
शब्दों में
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कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
--------
भाग (9)
सुश्मिता के माता पिता इतने अमीर न थे कि आज के सुजल राय की बराबरी कर सके | पर हर लड़की के माता पिता की तरह उनके भी अरमान थे कि सुश्मिता का विवाह धूमधाम
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कविताअतुकांत कविता
मुझे हारकर जीत जाने दो
---------------------------------
मैं हारा तुम जीत गयी
अभी अभी है हमारी प्रीत नयी
तुम्हें मजा आया होगा
जब तूने विफल कर दिए मेरे हर प्रयास
परिणाम तूने तय कर रखे थे
टूटने ही थे आस |
बस एक तेरी बोली
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लेखआलेख
सच ही तो क्रांति हैं
---------------
क्रांति का निहितार्थ यही है कि इसकी ज्वाला में झूठ भस्म हो जाए और सच सामने आ जाए | जितने भी तरह की क्रांति है अगर उसका लक्ष्य इसके अलावा कुछ और है तो वह अपने आपमें ही विफलता
Read More
लेखआलेख
अवैज्ञानिक सोच
------------------------
सभी पार्टियों के विज्ञान भी अलग अलग हैं क्या ? हाँ यह सत्य है कि यहाँ के उद्योगपति शोध और अनुसंधान क्या इंन्फ्रास्टक्चर तक बनाने में कोई खर्च नहीं करना चाहते | उन्हें देश
Read More
चैतन्यपूर्ण
धन्यवाद
धन्यवाद
कविताअतुकांत कविता
झूठ का साम्राज्य
-------------------------
यहाँ झूठ ही चलता ,झूठ ही पलता |
झूठ की ही सरकार है |
बिना वृक्ष के फल लगते हैं |
यह झूठा संसार है |
पैर नहीं जिसके होते
सर के बल चलने को तैयार है
सच के पैर काटने को
उल्टा करता
Read More
कविताअतुकांत कविता
बिहार चुनाव
-----------
बिहार में चुनाव है |
जाति का भयंकर प्रभाव है |
हर दल में चलता अंकगणित
इससे ही होता सीटों का हिसाब है |
हर जातियों का प्रतिशत
मिलकर हो जाता सौ फीसद
किसी चीज के लिए बचती जगह कहाँ
बाँचते
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इसके लिए हम अधिक दोषी है क्योंकि हम पेट से जुडे मुद्दे छोड़कर इनमें उलझ जाते है
शायद !
बहुत सुंदर परिभाषा दी है आपने प्यार की।
धन्यवाद !
कविताअतुकांत कविता
पीड़ा का विभाजन
--------------------
जातियों और समाजों में हम हर पीड़ा को बाँट लेते हैं |
एक दूसरे से हम कैसे अपने आपको काट लेते हैं |
बस बाँटने और काटने के औजार हमने बनाए हैं |
वर्णभेदी हथियार हमने खूब चलाए हैं
Read More
कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
---------
भाग (8)
सुजल राय पढ़ने लिखने में तो इतने तेज न थे ,पर उनका सपना बड़ा था | वह दुनियाँ के अमीरों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने का शौक रखते थे | उन्होंने कई नौकरियों
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मैं अगले भाग का इंतज़ार कर रही हूँ ??
जल्द आएगा
कविताअतुकांत कविता
इंसानियत के नायक गाँधी
------------------------------------
बातें हमने बहुत की
पर शायद समझ न सके हम गाँधी को |
पश्चिम में जो बही ,वैसी पूरब की आँधी को |
लाख असहमति हो ,पर विस्मृत नहीं किए जा सकते
हृदय पटल पर जिसने अमिट छाप
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कविताअतुकांत कविता
इंसानियत का सम्मान
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व्यभिचार पर लिखूँ ,
अत्याचार पर लिखूँ
जिस कलम से प्यार पर लिखा
उसी कलम से कैसे बलात्कार पर लिखूँ
पर लिखना तो पडेगा
क्योंकि हर जगह उसका शोर है
पूरब से ,पश्चिम से ,उतर
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अब भी जनता जागरूक कब हुई है।अब भी छूट की झूठी घोषणा करने वालों की रैली की भीड़ बन जाती है।
कलम की ताकत को कम मत आंकिए।
यही तो मुश्किल है ,हमलोग लिखते रह जाते हैं |
कविताअतुकांत कविता
काश! मृत्यु से पहले जाग जाते
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उफ् ! ये बलात्कार घटनाएँ
अत्याचार की कहानियाँ
खूब छपती है अखबारों में
जब कोई मारा जाता है
तब हम जिंदा हो जाते हैं
विरोध को स्वर देने के लिए
कुछ लिखकर ,कुछ
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कहानीप्रेरणादायक
(लघु कथा )
चाक पर जिंदगी
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जावित्री अपने पिता मेवा चौधरी को चाक देखती जाती थी और सोचती जाती थी कि कहीं इन्हीं मिट्टी के बरतनों की तरह तो हमारी जिंदगी नहीं है | जब भी इन कच्ची मिट्टी के थान
Read More
कविताअतुकांत कविता
अंतर मिट गया
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क्यों सब तरफ से मुड़कर नजरें
किसी एक पर अटक जाती है
ये तो मैं भी नहीं बता पाउअगा
क्यों किसी के अाने से धड़कन बढ़ जाती है |
लगता है ठहर सा गया है सब कुछ
उसके इर्द गिर्द
क्यों चाहता
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कविताअतुकांत कविता
जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो
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जी चाहता है
मैं तुझे प्यार कर लूँ
चुम लूँ तेरे माथे को
ये जिंदगी
जी चाहता है
और तुझे बाहों में भर लूँ
पर तू इतनी दूर है मुझसे
कि यह हो नहीं सकता
बस मन ही मन
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जिंदगी कैसी है पहेली !इसे हल करना इतना भी आसान नहीं है।
कठिन तो है पर करना भी तो जरूरी है
कविताअतुकांत कविता
वह जो मेरे हो न सके
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कुछ सवाल भी उनके थे
कुछ जबाब भी उनके थे
कुछ वास्तविकता से जुड़े
कुछ ख्वाब भी उनके थे
उन पन्नों को मैं पलटता गया
हर पन्नों पर उनके हस्ताक्षर थे
मैंने तो उन शब्दों को
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लेखआलेख
अंधेरे में तीर चलाते लोग
---------------------
वाह रे मीडिया ,वाह रे वुद्धिजीवि और वाह रे राजनीतिक दल के प्रवक्ता | बहस लंबी चली ,मीडिया ने खूब विरोध और समर्थन करते लोगों की बातें सुनवायी | और खुद भी बहुत बातें
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लेखआलेख
नशे में कलाकार
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मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है | यही इसकी पहचान नहीं है | इसकी सबसे बड़ी पहचान कला नगरी से है | जहाँ देश के सबसे उत्तम और बड़े कलाकार रहते हैं | लोग इसे माया नगरी और फिल्म सिटी के
Read More
लेखआलेख
सृजन और विध्वंश
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जो संस्थाएँ कल सृजित की गयी थीं | जरूरी नहीं कि वे उन उद्देश्यों की पूर्ति आज भी कर रही हों | या तो वक्त के साथ उसके लक्ष्य बदल जाते हैं या उससे जुड़े लोग उसपर
Read More
बहुत खूब व्यंग्य अच्छा लिखा है आपने सच्चाई बयान करता हुआ
सराहना के लिए धन्यवाद
कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
भाग (6)
-------
बारात खा चुकी थी | अब लड़के को शादी के लिए मंडप में ले जाया जा रहा था | वह क्षण अब देवेन्दु राय के जीवन में जल्द ही आनेवाला था जिसका उन्हें इंतजार था | उन्हें ही क्यों
Read More
आपकी यह कहानी मजेदार जा रही है।
धन्यवाद मैडम
कविताअतुकांत कविता
अपनों से दूर
------------------
ये मत पूछो मैंने कितना दु:ख उठाया है |
अपने साँसों से दूर अपना घर बसाया है |
सुन नहीं पाता अपने दिल के धड़कनों को
ये आँखों में आँसू भर देते हैं
धूँधला सा संसार नजर आता है
ये पलकों
Read More
कविताअतुकांत कविता
दर्पण की भी सीमा है
---------------------------
मत देखो दर्पण
दर्पण भी कभी कभी झूठ बोलते है
माना कि जुड़े में तूने
ख्याल बाँध रखे हैं
पर ये नहीं उसके राज खोलते हैं
दर्पण कहाँ दिखा पाते हैं
तुम्हारे चेहरे पर उगते
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कविताअतुकांत कविता
मित्रता मेरी दृष्टि में
----------------------
नहीं जानता कब कोई
अपना सा लगता है
नहीं जानता कब किसी के बोल
हृदय को प्लावित कर जाते हैं
अगर उसे ही मित्र कहते हैं
तो लगता है मुझे मित्र मिल गया
जिसकी उपस्थिति
Read More
कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
भाग ( 5)
आखिर वह समय आ ही गया | बारात अपने गंतव्य पर जाने को तैयार थी | दुल्हे के लिए कहीं से बग्धी का इंतजाम हो गया था | और बारातियों में कुछ पैदल तो कुछ लोग घोड़ा गाड़ी पर चल दिए | उधर
Read More
कविताअतुकांत कविता
बदलाव की बयार
--------------------------
उसने बदलना तो चाहा था ,भारत की तस्वीर
और तब स्पष्ट दिखा
जब बदली जम्मू और कश्मीर |
नोटों से लेकर ,चौखटों तक
बदलाव की वह बयार गयी |
हर टुकड़े को एक सूत्र मे बाँधने की कोशिश
एक
Read More
कविताअतुकांत कविता
क्यों पढूँ अखबार
---------------------
क्यूँ पढ़ूँ अखबार ?
वह कहाँ करता है मेरे बारे में विचार |
मुझे नहीं जानना किसी की कहानी
जो मेरे बारे में कुछ नहीं कहती
क्यों न्यायालय के चक्कर लगाऊँ
जहाँ मेरे साथ न्याय
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कविताअतुकांत कविता
क्या है आज के अखबार में
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क्या है आज के अखबार में
कुछ बड़े लोगों के बयान
उनके और उनके पुरखों का गुणगान |
कुछ समयातीत हो गयी दलीलें |
कुछ लोगों की झूठी शान |
यही रोज की चर्चा का विषय है |
कुछ
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कविताअतुकांत कविता
शायद एक दिन बन पाऊँगा कवि
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सोचा था आज कुछ न लिखूँ
बस पढूँ सभी को
जानूँ कुछ और भी
जो अबतक जान न पाया
पर लिखना पड़ा
रहा न गया बिन लिखे
इस वीरान सी हुई जिंदगी में
जब मैं खुद को
सबसे अकेला
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कविताअतुकांत कविता
शायद एक दिन बन पाऊँगा कवि
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सोचा था आज कुछ न लिखूँ
बस पढूँ सभी को
जानूँ कुछ और भी
जो अबतक जान पाया
पर लिखना पड़ा
रहा न गया बिन लिखे
इस वीरान सी हुई जिंदगी में
जब मैं खुद को
सबसे अकेला
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कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
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भाग (4)
घर में सबके लिए समय बहुत जल्दी जल्दी निकलता जाता था | पर शायद इस धरती पर दो प्राणी देवेन्दु राय और मूर्ति ऐसे थे जिनके लिए समय काटे न कटते थे | दोनों के दिलों
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कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
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भाग (3 )
हारमोनियम जो अबतक मखमली कपड़े से ढँका था | बाहर निकाला गया और उसपर से कपड़ा हटाया गया | शायद जब से मूर्ति की शादी की बात चलने लगी थी तबसे उसे अपने धड़कनों
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कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
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भाग (2 )
खैर ! देखते देखते वह समय भी बहुत निकट आ गया जिसे उन्होंने कौतुहल समझा था | अपने ही एक दूर के रिश्तेदार द्वारा लाए गए रिश्ते को ठुकराना उनके माता पिता
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कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
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भाग (1)
बँगाल से बिहार को अलग हुए 66 वर्ष हो गए थे | वे कुछ बँगाली परिवार जो नौकरी करने अथवा व्यापार करने कलकत्ता से दूर प्रांत के अन्य हिस्से में चले आए थे वे बँगला
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कविताअतुकांत कविता
पर हमें भी लिखना है |
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पहाँ सबकुछ लिखा जा चुका है
पर बाकी है
आपको अपने आपको
लिखने का
खुद को इन पन्नों पर
उतारने का |
सब कुछ लिखा गया
पर आपको तो कोई लिख नहीं पाया
जो बस आप और आप ही
लिख सकते
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लेखआलेख
समाधान की ओर चलें श्मशान की ओर नहीं
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हम हर बार समाधान के बजाए श्मशान का रास्ता क्यों चुन लेते हैं | क्या वहीं जाकर हमें समाधान के रास्ते मिलेंगे | या चिर शांति मिलेगी | बड़े बहादुर
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कविताअतुकांत कविता
प्रेम विश्वास के बिना
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हम प्रेम की बातें करने से कहीं घबरा तो नहीं जाते |
इस पथ पर चलने में कहीं लड़खड़ा तो नहीं जाते |
क्यों प्रेम को ब्रह्म से जोड़कर
हम इसकी सार्थकता सिद्ध करते हैं
जैसे
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कविताअतुकांत कविता
ाये शमा तू फिर भी जल
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इस घोर अंधकार में भी शमा तू क्यों जलती नहीं |
क्या तुम्हें भी अंधकार अच्छा लगने लगा है |
या जिन्होंने अंधकार कर रखा है |
उन्हीं ने तुम्हें बुझा रखा है |
क्या उनकी आज्ञा
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बहुत खूब शब्दों की कहानी शब्दों की जुबानी बहुत सुंदर लिखा है आपने
धन्यवाद
लेखआलेख
दोहरे मापदंड
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जब मोदी सरकार सत्ता में आयी तब कितने लेखक,एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों को भारत रहने लायक नहीं लगने लगा था | उन्हें डर लगने लगा था अचानक भारत देश में | कई लोग तो देश छोड़कर जाने की बात
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कविताअतुकांत कविता
सच छूट गया कहीं
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मैं अपने सच को छुपाने
और आपके सच को
पटल पर लाने नहीं आया हूँ |
मैं तो खोजने चला हूँ सच की
उन खामियों को
जिसके कारण इसे छुपाने को हम मजबूर होते हैं |
एक आवरण की तलाश होती है
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कवितालयबद्ध कविता
यादों के साथ सफर
सुबह से शाम
शाम से सुबह हो जाती है
तब भी आप की याद आ रही थी
अ्ब भी सताती है |
इन यादों का क्या करें
यह तो आती जाती है
हम जिन्हें याद करते हैं
वह सपनों में भी आने से कतराती है |
क्या करें
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कवितालयबद्ध कविता
आँखों की भाषा
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बहुत अच्छा लगता है
जब आप अपनी जुल्फें बिखेरती हैं
होठों पर मुस्कान लिए
आँखें तरेरती हैं |
और कुल्हे उचकाकर कहती हैं ,ओह
जैसे लगता है कह रही हों
क्यों मुझे परेशान करते हो
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कविताअतुकांत कविता
धुंधलापन
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इस रात के घने अंधेरे में
मैं देखना चाहता हूँ
चारों ओर
इस दुनियाँ का रंग रूप
पर कुछ दिखता नहीं
पर मन में एक रोशनी सी
दिखती है |
बस हर तरफ से नजरें हारकर
बस उसकी तरफ मुड़ जाती है
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