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Sahitya Arpan - Krishna Tawakya Singh
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Krishna Tawakya Singh

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    कहानी उपन्यास Third
    कविता अतुकांत कविता 4th
    लेख आलेख 5th

    कविताअतुकांत कविता

    सिले होंठ

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 386
    • 4 Mins Read

    सिले होंठ
    """""""""""""""""""
    क्यों न उस वक्त से गिला हो
    जिसने होंठ को सिला हो
    जी चाहता है
    तुम्हारी भी आवाज सुनुँ
    तुम्हारे हृदय में उमड़ते अनुराग
    मेरी आँखों में सवाल बनकर
    उभर आए हैं |
    मैं चाहता हूँ
    तुझसे
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    सिले होंठ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 151
    • 2 Mins Read

    दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया
    """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

    किसे क्या कहूँ
    यहाँ हर कोई बीमार है |
    उपचार की तलाश में
    खटखटाते रहते द्वार हैं |
    न जाने किस दर पर
    नब्ज देखनेवाला मिल जाए |
    इश्तहार देखकर
    जहाँ
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    दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 237
    • 4 Mins Read

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
    """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

    मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
    तुम्हारा साथ भी चाहिए |
    जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
    तुमने तारीफ की,
    उसे जमीन पर उतारने के लिए |
    अभी जो शब्द बनकर सिमटा
    Read More

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 91
    • 4 Mins Read

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
    """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

    मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
    तुम्हारा साथ भी चाहिए |
    जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
    तुमने तारीफ की,
    उसे जमीन पर उतारने के लिए |
    अभी जो शब्द बनकर सिमटा
    Read More

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 127
    • 4 Mins Read

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
    """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

    मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
    तुम्हारा साथ भी चाहिए |
    जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
    तुमने तारीफ की,
    उसे जमीन पर उतारने के लिए |
    अभी जो शब्द बनकर सिमटा
    Read More

    न जाने कहाँ ले जाती ये नइया,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    तुम सुनो न सुनो

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 121
    • 5 Mins Read

    तुम सुनो न सुनो
    """"""""""""""""""""""""""""""

    तुम सुनो न सुनो हम कह जाएँगे |
    भले जुबाँ न खुले आँखों से बह जाएँगे |
    सुननेवाले तब भी सुनेंगे |
    परदे के भीतर से भी आँखों में झाँक जाएँगे |
    जरूरी नहीं कि जोर से चिल्लाऊँ |
    जिनका
    Read More

    तुम सुनो न सुनो ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 133
    • 2 Mins Read

    बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
    """""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

    कवि मौन है |
    किताबों में ही गौण है |
    अब कौन पूछता है
    तुम कौन हो ?
    सब खुद ही जान लेते हैं
    किताबों में जो लिखा है |
    उसे ही मान लेते हैं |
    सवाल सामने आने से
    Read More

    बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 153
    • 2 Mins Read

    बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
    """""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

    कवि मौन है |
    किताबों में ही गौण है |
    अब कौन पूछता है
    तुम कौन हो ?
    सब खुद ही जान लेते हैं
    किताबों में जो लिखा है |
    उसे ही मान लेते हैं |
    सवाल सामने आने से
    Read More

    बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    न्याय इतनी दूर क्यों ?

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 205
    • 5 Mins Read

    न्याय इतनी दूर क्यों ?
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    न्याय की तकरीर बनती है शब्दों के तकरार से
    पर लिखे जाते हैं फैसले आज भी तलवार से |
    लिखी जाती इबारतें कलम से पन्नों पर |
    पर उस कलम की भी कीमत होती है |
    लिखनेवाले हाथ
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    न्याय इतनी दूर क्यों ?,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    न्याय इतनी दूर क्यों ?

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 169
    • 4 Mins Read

    न्याय इतनी दूर क्यों ?
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    लिखी जाती इबारतें कलम से पन्नों पर |
    पर उस कलम की भी कीमत होती है |
    लिखनेवाले हाथ यूँ ही नहीं चलते
    उन हाथों में ऊर्जा भरने की मिन्नत होती है |
    इन इमारतों की दीवारें
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    न्याय इतनी दूर क्यों ?,<span>अतुकांत कविता</span>
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    लेखआलेख

    भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 226
    • 11 Mins Read

    भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए |
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    बहुत हो गयी ईश्वर की चर्चा और ईश्वर के नाम की पूजा | अब ऐश्वर्य की पूजा का समय है | क्योंकि हमारा ईश्वर सदा इसी ऐश्वर्य में खोया है | वहीं से वह हमे
    Read More

    भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए,<span>आलेख</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 282
    • 3 Mins Read

    तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    तेरे इनकार में ही इकरार है
    होठों पर ना के सिवा कुछ और नहीं पर दिल में हाँ के सिवा और क्या है ?
    आँखें कह देती हैं तेरा हाल
    अब आजा पास मेरे
    मत
    Read More

    तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 140
    • 3 Mins Read

    तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    तेरे इनकार में ही इकरार है
    होठों पर ना के सिवा कुछ और नहीं पर दिल में हाँ के सिवा और क्या है ?
    आँखें कह देती हैं तेरा हाल
    अब आजा पास मेरे
    मत
    Read More

    तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है,<span>अतुकांत कविता</span>
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    लेखआलेख

    विश्व महिला दिवस के बहाने

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 188
    • 9 Mins Read

    विश्व महिला दिवस के बहाने
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    आज विश्व महिला दिवस है | किसी दिन विश्व पुरूष दिवस भी मनाया जाता है | लेकिन क्या है ऐसे दिवस के मायने मुझे यह आजतक समझ में नहीं आया | क्या ऐसे दिवस मनाने से
    Read More

    विश्व महिला दिवस के बहाने,<span>आलेख</span>
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    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    सही.....

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    अपनी धारा ,अपना वेग

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 194
    • 6 Mins Read

    अपनी धारा अपना वेग
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    तुम मेरी जुबान बँद करना चाहते हो |
    क्योंकि मैं अपनी भाषा बोलने लगा हूँ |
    रंजिश बस यही है तुम्हारी कि
    अब मैं तुम्हारी भाषा का अर्थ समझने लगा हूँ |
    उन व्यर्थ की बातों
    Read More

    अपनी धारा ,अपना वेग,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कहानीसामाजिक

    चुनाव

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 104
    • 21 Mins Read

    चुनाव
    ;;;;;;;;;;;;;;;;
    चुनाव चाहे पढ़ायी के क्षेत्र में ,खेल के क्षेत्र में हो ,चाहे राजनीति के क्षेत्र मे या जीवन के अन्य किसी क्षेत्र में हो | हमें एक परीक्षा से गुजरना पड़ता है | और उस परीक्षा में अव्वल आना
    Read More

    चुनाव,<span>सामाजिक</span>
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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    आज की राजनीतिक व्यवस्थाओं पर बहुत अच्छा लिखा है..!

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद कमलेश जी !

    कहानीसामाजिक

    चुनाव

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 320
    • 21 Mins Read

    चुनाव
    ;;;;;;;;;;;;;;;;
    चुनाव चाहे पढ़ायी के क्षेत्र में ,खेल के क्षेत्र में हो ,चाहे राजनीति के क्षेत्र मे या जीवन के अन्य किसी क्षेत्र में हो | हमें एक परीक्षा से गुजरना पड़ता है | और उस परीक्षा में अव्वल आना
    Read More

    चुनाव,<span>सामाजिक</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मन तन के पार

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 164
    • 6 Mins Read

    मन तन के पार है
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    अब तुम्हारी नग्न तस्वीरों में
    मेरा मन मगन नहीं होता |
    अब शायद इसने इन तस्वीरों के पार देखना सीख लिया है |
    जो कभी देह में ही अपनी दृष्टि
    गड़ाए रखता था |
    वह सृष्टि के उन रहस्यों
    Read More

    मन तन के पार,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मन तन के पार

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 132
    • 6 Mins Read

    मन तन के पार है
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    अब तुम्हारी नग्न तस्वीरों में
    मेरा मन मगन नहीं होता |
    अब शायद इसने इन तस्वीरों के पार देखना सीख लिया है |
    जो कभी देह में ही अपनी दृष्टि
    गड़ाए रखता था |
    वह सृष्टि के उन रहस्यों
    Read More

    मन तन के पार,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    गरीबी और परायापन

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 147
    • 4 Mins Read

    गरीबी और परायापन
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    कौन बात करता है आजकल गरीब जानकर |
    लोग अपना मुँह फेर लेते हैं उसे बदनसीब मानकर |
    सबको डराती है यह गरीबी ,रूलाती है यह गरीबी |
    दूर हो जाते हैं अपने भी ,कोई रह न जाता करीबी
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    गरीबी और परायापन,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    गरीबी की मार

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 118
    • 3 Mins Read

    गरीबी की मार
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    तोड़ जाती है तुम्हारा विश्वास ,तोड़ जाती है हौसला |
    गरीबी उजाड़ जाती है ,बना बनाया घोंसला |
    अपने पराए हो जाते हैं जैसे साँप और नेवला
    हर कोई करने लगता है तुम्हारी जिंदगी का
    Read More

    गरीबी की मार,<span>अतुकांत कविता</span>
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    लेखआलेख

    लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 233
    • 11 Mins Read

    लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    क्या यह व्यवस्था व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित कर पा रही है ? मेरा उत्तर है नहीं | हम अभी भी तर्क नहीं ताकत की भाषा समझते हैं | तमाम तर्कों को ताकत
    Read More

    लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?,<span>आलेख</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    अंजान पथ

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 108
    • 2 Mins Read

    अंजान पथ
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    हम बुरे हैं ,
    हम बेसुरे हैं |
    क्योंकि हम अधूरे हैं|
    पूर्णता की आस में
    हम कहाँ कहाँ नहीं भटकते|
    कभी गलत कभी सही जगह
    कदम रखते
    अक्सर हमें पता नहीं होता
    पथ की रेखा
    चले जाते हैं
    वहाँ
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    अंजान पथ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Maniben Dwivedi

    Maniben Dwivedi 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    सृजन

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 121
    • 3 Mins Read

    सृजन
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
    सृजन बने संगीत,कर्म नाचे नित्य
    हर पल बन जाए पूजा अपनी
    तो समझो
    जग लिया हमने जीत
    फिर थकते नहीं
    कड़कते नहीं
    चलते हैं जाते हैं
    अपनी धुन में
    मिठास आ जाती है |
    फिर नहीं बदलती मिश्री की
    Read More

    सृजन,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 211
    • 9 Mins Read

    गाँव ! तुम्हारी बड़ी याद आती है
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    गाँव बहुत शिकायत है तुझसे
    पर बहुत याद आती है तुम्हारी
    शहर की इन सड़कों पर ,अभी भी तेरी गलियाँ हैं भारी |
    कुछ हैं वजह जिससे तेरे यहाँ
    जीना दुस्वार
    Read More

    गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    बदलते शक्ल

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 109
    • 3 Mins Read

    बदलते शक्ल
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    हम दर्पण लेकर आए थे |
    उन्होंने आईना दिखा दिया |
    उनकी तस्वीर देखना चाहता था
    उन्होंने मेरी शक्ल समझा दिया |
    बड़े अरमान थे उनके रूप उकेरने की
    उन्होंने मेरी शक्ल ही उकेर दी |
    जैसे
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    बदलते शक्ल,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    बहुत अच्छा

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    कैसे कहूँ सच्चाई

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 148
    • 5 Mins Read

    कैसे कहूँ सच्चाई
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    आज जब तुम्हारी तस्वीर मेरी आँखों के सामने आई |
    कुछ छुए ,कुछ अनछुए भाव प्रबल हुए
    बहना चाहते थे कलम में स्याही बनकर इन पन्नों पर
    कुछ कहना चाहते थे |
    पर रूक गये अचानक
    याद
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    कैसे कहूँ सच्चाई ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    कुछ उल्टा सीधा

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 158
    • 3 Mins Read

    कुछ उल्टा सीधा
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    कहना था थोड़ा,मैं ज्यादा ही कह गया |
    न जाने कैसे कब किस धारा में बह गया |
    सुनकर हम भौंचक्के रह गए |
    हम जो सुन न पाए वो वह कह गए |
    प्यार का अतिरेक था ,या चाहत का भँवर
    हम ड़ूबने
    Read More

    कुछ उल्टा सीधा,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    व्हा बहुत खूब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 184
    • 9 Mins Read

    गाँव ! तुम्हारी बड़ी याद आती है
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    गाँव बहुत शिकायत है तुझसे
    पर बहुत याद आती है तुम्हारी
    शहर की इन सड़कों पर ,अभी भी तेरी गलियाँ हैं भारी |
    कुछ हैं वजह जिससे तेरे यहाँ
    जीना दुस्वार
    Read More

    गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 63
    • 3 Mins Read

    जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    तूने जिंदगी को लिखा
    मैं जिंदगी को पढ़ न पाया
    डूबता उतराता ही रह गया
    सागर की इन लहरों में
    ऊपर आकाश था
    पर मैं न चढ़ पाया |
    समझ न पाया इसकी भाषा
    शायद बड़ी थी
    Read More

    जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 143
    • 3 Mins Read

    जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    तूने जिंदगी को लिखा
    मैं जिंदगी को पढ़ न पाया
    डूबता उतराता ही रह गया
    सागर की इन लहरों में
    ऊपर आकाश था
    पर मैं न चढ़ पाया |
    समझ न पाया इसकी भाषा
    शायद बड़ी थी
    Read More

    जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    बहुत अच्छा

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    कामदेव राज

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 169
    • 3 Mins Read

    कामदेव राज
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    भारत हो अमेरिका
    हर जगह कामदेव का राज एक सा |
    लक्ष्मी हर जगह दिखती हावी |
    शिवजी में हर किसी को आज
    फिर से दिखने लगी है खराबी
    सरस्वती के नाम पर
    चलता रंग गुलाबी |
    न जाने कामदेव ने
    Read More

    कामदेव राज,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मन के आईने में

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 147
    • 4 Mins Read

    मन के आईने में
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    क्यों किसी के पैरों के आहट से ही
    दिल धड़क जाता है |
    रगों में लहु तेज दौड़ जाता है |
    अजीब सी झनझनाहट होती है
    जैसे लगता है कोई बिजली सी
    कौंध गयी सारे जहन में |
    कुछ अनकहे से अल्फाज
    Read More

    मन के आईने में,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    प्यार का मर्म

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 166
    • 5 Mins Read

    प्यार का मर्म
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
    प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
    ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
    पर वादा निभाना न आया मुझे |
    वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
    प्यार जताने
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    प्यार का मर्म,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ritu Garg

    Ritu Garg 3 years ago

    व्हा व्हा

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    बहुत बहुत धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    प्यार का मर्म

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 162
    • 5 Mins Read

    प्यार का मर्म
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
    प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
    ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
    पर वादा निभाना न आया मुझे |
    वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
    प्यार जताने
    Read More

    प्यार का मर्म,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत समय बाद आपकी रचना देखकर अच्छा लगा आदरणीय। 🙏🏻

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद आदरणीया | आपने ही तो इस मंच पर लाया है |

    कविताअतुकांत कविता

    अस्तित्व की आवाज

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 143
    • 5 Mins Read

    अस्तित्व की आवाज
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    कुछ लोग मुझे तोड़ना चाहते हैं |
    कुछ लोग मेरी गरदन मरोड़ना चाहते हैं |
    जिस मिट्टी में मेरी जड़ें हैं |
    कुछ लोग उसे कोड़ना चाहते हैं |
    न जाने क्यों मुझे वे खड़े होते हुए
    Read More

    अस्तित्व की आवाज,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    अस्तित्व की आवाज

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 124
    • 5 Mins Read

    अस्तित्व की आवाज
    ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

    कुछ लोग मुझे तोड़ना चाहते हैं |
    कुछ लोग मेरी गरदन मरोड़ना चाहते हैं |
    जिस मिट्टी में मेरी जड़ें हैं |
    कुछ लोग उसे कोड़ना चाहते हैं |
    न जाने क्यों मुझे वे खड़े होते हुए
    Read More

    अस्तित्व की आवाज,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब। आशा है आपकी और भी रचनाये यूँही पढ़ने को मिलती रहेगी हमें सदैब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    एकदम ! आपका बहुत बहुत आभार

    लेखआलेख

    राजनीति के जलते प्रश्न

    • Edited 3 years ago
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    • 122
    • 8 Mins Read

    राजनीति के जलते प्रश्न
    -----------------------
    आखिर कौन सी ऐसी बात है जो हमें अपनी जाति को ही वोट देने पर मजबूर करती है | अगर राजनीति एक विज्ञान है तो क्या राजनीतिक वैज्ञानिक हमारी जाति के ही हो सकते हैं | क्या देश
    Read More

    राजनीति के जलते प्रश्न ,<span>आलेख</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    कविताअतुकांत कविता

    बदलती दुनियाँ

    • Edited 3 years ago
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    • 183
    • 3 Mins Read

    बदलती दुनियाँ
    --------------------------
    उनकी लिखावट पर हम जान देते रहे |
    उन्होंने कभी माना नहीं पर हम मान देते रहे |
    मुझे क्या पता था ये उन्होंने सजावट के लिए लिखे हैं |
    हमने जो भी लिखा उन्हें,वे कागज से मिटाते रहे
    Read More

    बदलती दुनियाँ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    वाह वाह

    कविताअतुकांत कविता

    मध्यम मार्ग

    • Edited 3 years ago
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    • 75
    • 2 Mins Read

    मध्यम मार्ग
    ------------------
    जो मृत्यु को स्वीकार करते हैं
    वही जीवन को अंगीकार करते हैं
    मध्य ही तो जीवन की राह है
    जिसने चुना यह मार्ग
    वही तो पहुँच पाते हैं
    केंद्र पर जो खड़े हैं
    उन्हें कहाँ ये धागे खींच
    Read More

    मध्यम मार्ग,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Anupma Anu

    Anupma Anu 3 years ago

    बहुत खूब

    कविताअतुकांत कविता

    वो जगह बता मुझे

    • Edited 3 years ago
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    • 157
    • 3 Mins Read

    वो जगह बता मुझे
    --------------------+
    न जहाँ आसमान हो
    न जहाँ जमीन हो
    बता दे वह जगह
    जहाँ तू नहीं मलिन हो
    देखना चाहता हूँ मैं तुम्हें
    बिना बादलों की ओट के
    धूल जिसपर ना पड़े
    कोंपलों को निकलने दे
    जहाँ बिना खोट के
    Read More

    वो जगह बता मुझे,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Anupma Anu

    Anupma Anu 3 years ago

    बहुत सुंदर सृजन

    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    बहुत सुंदर

    शिवम राव मणि

    शिवम राव मणि 3 years ago

    वाह सर बहुत सुंदर

    कविताअतुकांत कविता

    राख के ढेर

    • Edited 3 years ago
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    • 94
    • 5 Mins Read

    राख के ढेर
    -----------------------
    राख की ढ़ेर में हम चिंगारी ढ़ूँढ़ रहे हैं |
    ऊँचे लोगों से भरी सीढ़ियों पर चढ़ने की बारी ढूँढ रहे हैं |
    देखता हूँ उन्हें उकट उकट कर बार बार
    कहीं तो मिले आग की धाह
    पर इधर से उधर चढ़कर
    Read More

    राख के ढेर,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    लेखआलेख

    लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 97
    • 8 Mins Read

    लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस
    ------------------------------------------------------
    महाराष्ट्र सरकार भी इस मामले को लेकर इतना आक्रामक इसलिए हुई है क्योंकि अर्नब गोस्वामी से बदला लेना है | वरना इतने दिन में किस सरकार
    Read More

    लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस,<span>आलेख</span>
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    लेखआलेख

    यै शायर नहीं शोषक हैं

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 158
    • 12 Mins Read

    ये शायर नहीं शोषक हैं
    ---------------------------
    शायरी के नाम पर ताने ,और कुछ शब्द सुहाने | यही है शायद शायरों की पहचान जो कुछ खास खेमे में बँटे लगते हैं | ज्यादातर शायर मुस्लिम हैं इसलिए इनके ये ताने भरे अंदाज
    Read More

    यै शायर नहीं शोषक हैं,<span>आलेख</span>
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    लेखआलेख

    आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 92
    • 9 Mins Read

    आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक
    -----------------------------------------------------
    हम आस्था और विश्वास को मानव चेतना को गति और ऊर्जा देनेवाला मानते हैं पर ऐसा नहीं है | यह हमारी चेतना को जकड़ लेता है | यह हमें उस तरफ जाने से
    Read More

    आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक,<span>आलेख</span>
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    लेखआलेख

    राजनीति का पक्षपात

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 107
    • 18 Mins Read

    राजनीति का पक्षपात
    --------------------------
    हमारे इस विशाल देश में लूट,हत्या और बलात्कार जैसी कई अप्रिय घटनाएँ घटती रहती हैं | और उन घटनाओं पर लोग विरोध भी जताते हैं ,प्रतिक्रिया भी करते हैं | पर उन घटनाओं पर प्रतिक्रिया
    Read More

    राजनीति का पक्षपात,<span>आलेख</span>
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    Priyanka Tripathi

    Priyanka Tripathi 3 years ago

    सही लिखा है आपने बिल्कुल

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    लेखआलेख

    बिहार चुनाव :मुद्दे तो बहाना हैं असली बात छुपाना है

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 94
    • 11 Mins Read

    बिहार चुनाव : मुद्दे तो बहाना हैं असली बात छुपाना है |
    ----------------------------------------------------------------
    अभी एक लेख पढ़ रहा था जिसमें किसी महानुभाव द्वारा यह लिखा गया है कि तेजस्वी यादव ने दस लाख सरकारी
    नौकरियों का वादा करके
    Read More

    बिहार चुनाव :मुद्दे तो बहाना हैं असली बात छुपाना है,<span>आलेख</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मैं क्या चाहता हूँ

    • Edited 3 years ago
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    • 256
    • 8 Mins Read

    मैं क्या चाहता हूँ
    --------------
    मैं चाहता हूँ
    भूमि का न बँटवारा हो |
    भले बने कोई बाहुबलि
    पर न कोई बेचारा हो |
    बिना सहारे खड़े हो सके
    अपने जीवन को
    जिस पथ पर चाहे मोड़ सके
    अनचाहे पथ को छोड़ सके
    न कोई बादशाह
    Read More

    मैं क्या चाहता हूँ ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Priyanka Tripathi

    Priyanka Tripathi 3 years ago

    क्अच्छी चाहत है आपकी काश ऐसा हो पाता

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    क्यों नहीं हो सकता हम सबके सम्मिलित प्रयास से

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    वाह

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    वाह बढ़िया

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    लेखआलेख

    यह राष्ट्रविरोध नहीं तो और क्या है ?

    • Edited 3 years ago
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    • 92
    • 11 Mins Read

    यह राष्ट्रविरोध नहीं तो और क्या है ?
    ----------------------
    पीपुल्स एलाएंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन के अध्यक्ष मो.फारूख अब्दुल्ला कह रहे हैं कि हम राष्ट्र का विरोध नहीं कर रहे ,हम तो भाजपा का विरोध कर रहे हैं | जिसने
    Read More

    यह राष्ट्रविरोध नहीं तो और क्या है ?,<span>आलेख</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    बाहुबलि कौन

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 75
    • 3 Mins Read

    बाहुबलि कौन
    ------------
    जिसे मिला सत्ता का साथ हो |
    जिसके पैरों जाति का माथ हो |
    जो धर्म पिशाच हो
    और जो कर सकता नंगा नाच हो |
    ऊँची पदवी वाला हो |
    दिखाता खुद को लोगों का रखवाला हो |
    निहायत ही क्रूर मिजाज का
    पर
    Read More

    बाहुबलि कौन,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    लेखआलेख

    जनता का घोषणापत्र

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 221
    • 7 Mins Read

    जनता का घोषणा पत्र
    ----------------------------
    आज बात नेताओं की नहीं जनता की करते हैं | हम क्या चाहते हैं अपने द्वारा चुनी गयी सरकार से | इसका विवरण निम्न है |

    1.रोजगार के अवसर
    2.अपने आत्मसम्मान की रक्षा
    3.न्याय
    4. यातायात
    Read More

    जनता का घोषणापत्र ,<span>आलेख</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    साठ गाँठ

    • Edited 3 years ago
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    • 122
    • 5 Mins Read

    साठ गाँठ
    ------------------
    कब होंगे हमारे सपने उनके
    जिन्हें भेजते रहे हैं हम चुनके
    क्या कभी अहसास होगा उन्हें हमारी भूख की तपिश का
    हमारी प्यास की कशिश का
    नहीं |
    क्या उन्हें कभी अहसास होगा
    हमारी पीड़ा का
    जो
    Read More

    साठ गाँठ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    सत्य का दर्पण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    अन्याय की जयजयकार

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 123
    • 9 Mins Read

    अन्याय की जयजयकार
    --------------------------------
    आज भी वही दुनियाँ है
    जहाँ अन्याय की होती जयजयकार है |
    वह भी असहाय है
    जो न्याय के नाम पर बनती सरकार है |
    उसके सभी अंगों में वही बसे हैं
    जिनके नश नश में अहंकार है |
    उन्हीं
    Read More

    अन्याय की जयजयकार,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    बिना सीढ़ियों के

    • Edited 3 years ago
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    • 159
    • 4 Mins Read

    बिना सीढ़ियों के
    ----------------------
    कोई इतिहास लिखता है |
    कोई विश्वास लिखता है |
    कोई अपनी याददास्त
    कोई अपनी तलाश लिखता है |
    लिखने की जिद्द है
    कोई कलम उदास लिखता है |
    पर लिख नहीं पाता कोई अपनी प्यास
    शब्दों में
    Read More

    बिना सीढ़ियों के,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    सुंदर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 96
    • 10 Mins Read

    मैच्युरिटी
    --------
    भाग (9)

    सुश्मिता के माता पिता इतने अमीर न थे कि आज के सुजल राय की बराबरी कर सके | पर हर लड़की के माता पिता की तरह उनके भी अरमान थे कि सुश्मिता का विवाह धूमधाम
    Read More

    मैच्युरिटी,<span>उपन्यास</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मुझे हारकर जीत जाने दो

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 94
    • 4 Mins Read

    मुझे हारकर जीत जाने दो
    ---------------------------------
    मैं हारा तुम जीत गयी
    अभी अभी है हमारी प्रीत नयी
    तुम्हें मजा आया होगा
    जब तूने विफल कर दिए मेरे हर प्रयास
    परिणाम तूने तय कर रखे थे
    टूटने ही थे आस |
    बस एक तेरी बोली
    Read More

    मुझे हारकर जीत जाने दो,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    वाह वाह

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    लेखआलेख

    सच ही तो क्रांति है

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 151
    • 8 Mins Read

    सच ही तो क्रांति हैं
    ---------------
    क्रांति का निहितार्थ यही है कि इसकी ज्वाला में झूठ भस्म हो जाए और सच सामने आ जाए | जितने भी तरह की क्रांति है अगर उसका लक्ष्य इसके अलावा कुछ और है तो वह अपने आपमें ही विफलता
    Read More

    सच ही तो क्रांति है,<span>आलेख</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    लेखआलेख

    अवैज्ञानिक सोच

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 106
    • 8 Mins Read

    अवैज्ञानिक सोच
    ------------------------
    सभी पार्टियों के विज्ञान भी अलग अलग हैं क्या ? हाँ यह सत्य है कि यहाँ के उद्योगपति शोध और अनुसंधान क्या इंन्फ्रास्टक्चर तक बनाने में कोई खर्च नहीं करना चाहते | उन्हें देश
    Read More

    अवैज्ञानिक सोच ,<span>आलेख</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    झूठ का साम्राज्य

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 125
    • 3 Mins Read

    झूठ का साम्राज्य
    -------------------------
    यहाँ झूठ ही चलता ,झूठ ही पलता |
    झूठ की ही सरकार है |
    बिना वृक्ष के फल लगते हैं |
    यह झूठा संसार है |
    पैर नहीं जिसके होते
    सर के बल चलने को तैयार है
    सच के पैर काटने को
    उल्टा करता
    Read More

    झूठ का साम्राज्य,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    उलझन

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 108
    • 2 Mins Read

    उलझन
    ---------------
    हमें भी कहाँ उलझनों को सुलझाना आया |
    उलझनों में और उलझना आया
    ख्यालों में खो जाना
    थम गए वहीं पर कदम मेरे
    जहाँ प्यार ने मुझे पहचाना
    कौन है अपना कौन पराया
    इसका कहाँ हिसाब है
    तेरे सवालो्
    Read More

    उलझन ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    वाह

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    वाह वाह

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    बिहार चुनाव

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 119
    • 3 Mins Read

    बिहार चुनाव
    -----------
    बिहार में चुनाव है |
    जाति का भयंकर प्रभाव है |
    हर दल में चलता अंकगणित
    इससे ही होता सीटों का हिसाब है |
    हर जातियों का प्रतिशत
    मिलकर हो जाता सौ फीसद
    किसी चीज के लिए बचती जगह कहाँ
    बाँचते
    Read More

    बिहार चुनाव,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    इसके लिए हम अधिक दोषी है क्योंकि हम पेट से जुडे मुद्दे छोड़कर इनमें उलझ जाते है

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    शायद !

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    अतिसुंदर.... सर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    चुनाव

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 237
    • 8 Mins Read

    चुनाव
    ---------------
    चुनाव फिर से आ गया
    आँखों में नशा सा छा गया
    उतारे थे जो हमने इस बीच जो चश्में
    वह जाति और धर्म के रंगों में रंगकर
    नई खूबियाँ लैकर
    फिर हमारी आँखों पर आ गया |
    इससे अपनी जाति का रंग हरा
    और दूसरी
    Read More

    चुनाव,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    प्यार

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 101
    • 3 Mins Read

    प्यार
    -------------
    शायद प्यार इसे ही कहते हैं
    स्मृतियों को नकारता
    नये अनुभव की तलाश करता
    भरोसा है फिर भी शंका है
    बैठने नहीं देती यही शंका
    प्यार आश्वस्त नहीं करता
    यह हर पल सजग रहने को
    बाध्य कर देता है
    Read More

    प्यार ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत सुंदर परिभाषा दी है आपने प्यार की।

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    पीड़ा का विभाजन

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 126
    • 4 Mins Read

    पीड़ा का विभाजन
    --------------------
    जातियों और समाजों में हम हर पीड़ा को बाँट लेते हैं |
    एक दूसरे से हम कैसे अपने आपको काट लेते हैं |
    बस बाँटने और काटने के औजार हमने बनाए हैं |
    वर्णभेदी हथियार हमने खूब चलाए हैं
    Read More

    पीड़ा का विभाजन ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बेहतरीन सटीक ??

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 124
    • 19 Mins Read

    मैच्युरिटी
    ---------
    भाग (8)
    सुजल राय पढ़ने लिखने में तो इतने तेज न थे ,पर उनका सपना बड़ा था | वह दुनियाँ के अमीरों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने का शौक रखते थे | उन्होंने कई नौकरियों
    Read More

    मैच्युरिटी,<span>उपन्यास</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    मैं अगले भाग का इंतज़ार कर रही हूँ ??

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    जल्द आएगा

    कहानीउपन्यास

    मैच्यरिटी

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 152
    • 19 Mins Read

    मैच्युरिटी
    ---------
    भाग (8)
    सुजल राय पढ़ने लिखने में तो इतने तेज न थे ,पर उनका सपना बड़ा था | वह दुनियाँ के अमीरों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने का शौक रखते थे | उन्होंने कई नौकरियों
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    मैच्यरिटी,<span>उपन्यास</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    इंसानियत के नायक

    • Edited 3 years ago
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    • 87
    • 5 Mins Read

    इंसानियत के नायक गाँधी
    ------------------------------------
    बातें हमने बहुत की
    पर शायद समझ न सके हम गाँधी को |
    पश्चिम में जो बही ,वैसी पूरब की आँधी को |
    लाख असहमति हो ,पर विस्मृत नहीं किए जा सकते
    हृदय पटल पर जिसने अमिट छाप
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    इंसानियत के नायक ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    इंसानियत को सम्मान

    • Edited 3 years ago
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    • 138
    • 6 Mins Read

    इंसानियत का सम्मान
    --------------------------
    व्यभिचार पर लिखूँ ,
    अत्याचार पर लिखूँ
    जिस कलम से प्यार पर लिखा
    उसी कलम से कैसे बलात्कार पर लिखूँ
    पर लिखना तो पडेगा
    क्योंकि हर जगह उसका शोर है
    पूरब से ,पश्चिम से ,उतर
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    इंसानियत को सम्मान ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    लेखआलेख

    टूटती आस

    • Edited 3 years ago
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    • 110
    • 9 Mins Read

    टूटती आस
    -----------
    जब शासन से न्याय की उम्मीद टूटने लगे तो आदमी कहाँ जाए ? जब हर जगह से व्यक्ति हार जाता है तो उसे उम्मीद होती है शासन से कि वह हमारे साथ न्याय करेगा | पर उससे उम्मीद टूट जाती है तो आदमी
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    टूटती आस,<span>आलेख</span>
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    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    अब भी जनता जागरूक कब हुई है।अब भी छूट की झूठी घोषणा करने वालों की रैली की भीड़ बन जाती है।

    Gita Parihar3 years ago

    कलम की ताकत को कम मत आंकिए।

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    यही तो मुश्किल है ,हमलोग लिखते रह जाते हैं |

    कविताअतुकांत कविता

    काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते

    • Edited 3 years ago
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    • 116
    • 9 Mins Read

    काश! मृत्यु से पहले जाग जाते
    ---------------------------------
    उफ् ! ये बलात्कार घटनाएँ
    अत्याचार की कहानियाँ
    खूब छपती है अखबारों में
    जब कोई मारा जाता है
    तब हम जिंदा हो जाते हैं
    विरोध को स्वर देने के लिए
    कुछ लिखकर ,कुछ
    Read More

    काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कहानीप्रेरणादायक

    चाक पर जिंदगी

    • Edited 3 years ago
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    • 166
    • 33 Mins Read

    (लघु कथा )
    चाक पर जिंदगी
    ---------------_--------
    जावित्री अपने पिता मेवा चौधरी को चाक देखती जाती थी और सोचती जाती थी कि कहीं इन्हीं मिट्टी के बरतनों की तरह तो हमारी जिंदगी नहीं है | जब भी इन कच्ची मिट्टी के थान
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    चाक पर जिंदगी ,<span>प्रेरणादायक</span>
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    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    जी कहानी उत्कृष्ट है।लघुकथा के हिसाब से विस्तार अधिक हो गया।

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    चैतन्यपूर्ण

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    सामयिक रचना

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    Poonam Bagadia

    Poonam Bagadia 3 years ago

    अच्छी रचना

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    अंतर मिट गया

    • Edited 3 years ago
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    • 318
    • 3 Mins Read

    अंतर मिट गया
    -------------------
    क्यों सब तरफ से मुड़कर नजरें
    किसी एक पर अटक जाती है
    ये तो मैं भी नहीं बता पाउअगा
    क्यों किसी के अाने से धड़कन बढ़ जाती है |
    लगता है ठहर सा गया है सब कुछ
    उसके इर्द गिर्द
    क्यों चाहता
    Read More

    अंतर मिट गया,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

    सुन्दर

    Krishna Tawakya Singh2 years ago

    धन्यवाद!

    Kumar Sandeep

    Kumar Sandeep 3 years ago

    सुसृजन

    Krishna Tawakya Singh2 years ago

    धन्यवाद!

    Maniben Dwivedi

    Maniben Dwivedi 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Krishna Tawakya Singh2 years ago

    धन्यवाद!

    Maniben Dwivedi

    Maniben Dwivedi 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Krishna Tawakya Singh2 years ago

    धन्यवाद!

    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    बहुत अच्छे।

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    बहुत... खूब... सर

    Krishna Tawakya Singh2 years ago

    धन्यवाद!

    Anujeet Iqbal

    Anujeet Iqbal 3 years ago

    ?

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    आत्मिक रिश्ता

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो

    • Edited 3 years ago
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    • 268
    • 4 Mins Read

    जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो
    ----------------------------
    जी चाहता है
    मैं तुझे प्यार कर लूँ
    चुम लूँ तेरे माथे को
    ये जिंदगी
    जी चाहता है
    और तुझे बाहों में भर लूँ
    पर तू इतनी दूर है मुझसे
    कि यह हो नहीं सकता
    बस मन ही मन
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    जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Kumar Sandeep

    Kumar Sandeep 3 years ago

    आपकी हर रचना उम्दा होती हैं सर

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    विलक्षण

    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    जिंदगी कैसी है पहेली !इसे हल करना इतना भी आसान नहीं है।

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    कठिन तो है पर करना भी तो जरूरी है

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    जी,प्रश्न हल किए बिना सफ़ल नहीं होंगे

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    Nice....

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    बढ़िया

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    वह जो मेरे हो न सके

    • Edited 3 years ago
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    • 96
    • 4 Mins Read

    वह जो मेरे हो न सके
    ---------------------------
    कुछ सवाल भी उनके थे
    कुछ जबाब भी उनके थे
    कुछ वास्तविकता से जुड़े
    कुछ ख्वाब भी उनके थे
    उन पन्नों को मैं पलटता गया
    हर पन्नों पर उनके हस्ताक्षर थे
    मैंने तो उन शब्दों को
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    वह जो मेरे हो न सके,<span>अतुकांत कविता</span>
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    लेखआलेख

    अंधेरे में तीर चलाते लोग

    • Edited 3 years ago
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    • 161
    • 9 Mins Read

    अंधेरे में तीर चलाते लोग
    ---------------------
    वाह रे मीडिया ,वाह रे वुद्धिजीवि और वाह रे राजनीतिक दल के प्रवक्ता | बहस लंबी चली ,मीडिया ने खूब विरोध और समर्थन करते लोगों की बातें सुनवायी | और खुद भी बहुत बातें
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    अंधेरे में तीर चलाते लोग ,<span>आलेख</span>
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    लेखआलेख

    नशे में कलाकार

    • Edited 3 years ago
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    • 101
    • 9 Mins Read

    नशे में कलाकार
    -------------
    मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है | यही इसकी पहचान नहीं है | इसकी सबसे बड़ी पहचान कला नगरी से है | जहाँ देश के सबसे उत्तम और बड़े कलाकार रहते हैं | लोग इसे माया नगरी और फिल्म सिटी के
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    नशे में कलाकार,<span>आलेख</span>
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    लेखआलेख

    सृजन और विध्वंश

    • Edited 3 years ago
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    • 113
    • 11 Mins Read

    सृजन और विध्वंश

    ------------------
    जो संस्थाएँ कल सृजित की गयी थीं | जरूरी नहीं कि वे उन उद्देश्यों की पूर्ति आज भी कर रही हों | या तो वक्त के साथ उसके लक्ष्य बदल जाते हैं या उससे जुड़े लोग उसपर
    Read More

    सृजन और विध्वंश ,<span>आलेख</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब व्यंग्य अच्छा लिखा है आपने सच्चाई बयान करता हुआ

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    सराहना के लिए धन्यवाद

    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
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    • 231
    • 8 Mins Read

    मैच्युरिटी
    भाग (6)
    -------
    बारात खा चुकी थी | अब लड़के को शादी के लिए मंडप में ले जाया जा रहा था | वह क्षण अब देवेन्दु राय के जीवन में जल्द ही आनेवाला था जिसका उन्हें इंतजार था | उन्हें ही क्यों
    Read More

    मैच्युरिटी,<span>उपन्यास</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    आपकी यह कहानी मजेदार जा रही है।

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद मैडम

    कविताअतुकांत कविता

    उदासी

    • Edited 3 years ago
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    • 109
    • 4 Mins Read

    उदासी
    -------
    अपनों से दूर हर तरह से मजबूर |
    न कोई खोज खबर लेनेवाला
    न कोई अपनी खबर देनेवाला
    तब जो चेहरे पर घिर आती है
    उसे ही शायद उदासी कहते हैं |
    जब कोई अपना बिछड़ जाता है
    एक सुनसान सी गली में
    हमें छोड़
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    उदासी,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    अपनों से दूर

    • Edited 3 years ago
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    • 81
    • 3 Mins Read

    अपनों से दूर
    ------------------
    ये मत पूछो मैंने कितना दु:ख उठाया है |
    अपने साँसों से दूर अपना घर बसाया है |
    सुन नहीं पाता अपने दिल के धड़कनों को
    ये आँखों में आँसू भर देते हैं
    धूँधला सा संसार नजर आता है
    ये पलकों
    Read More

    अपनों से दूर ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Anujeet Iqbal

    Anujeet Iqbal 3 years ago

    ?

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    दर्पण की भी सीमा है

    • Edited 3 years ago
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    • 75
    • 4 Mins Read

    दर्पण की भी सीमा है
    ---------------------------

    मत देखो दर्पण
    दर्पण भी कभी कभी झूठ बोलते है
    माना कि जुड़े में तूने
    ख्याल बाँध रखे हैं
    पर ये नहीं उसके राज खोलते हैं
    दर्पण कहाँ दिखा पाते हैं
    तुम्हारे चेहरे पर उगते
    Read More

    दर्पण की भी सीमा है,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Anujeet Iqbal

    Anujeet Iqbal 3 years ago

    ?

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    मित्रता मेरी दृष्टि में

    • Edited 3 years ago
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    • 101
    • 5 Mins Read

    मित्रता मेरी दृष्टि में
    ----------------------
    नहीं जानता कब कोई
    अपना सा लगता है
    नहीं जानता कब किसी के बोल
    हृदय को प्लावित कर जाते हैं
    अगर उसे ही मित्र कहते हैं
    तो लगता है मुझे मित्र मिल गया
    जिसकी उपस्थिति
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    मित्रता मेरी दृष्टि में,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
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    • 160
    • 7 Mins Read

    मैच्युरिटी
    भाग ( 5)
    आखिर वह समय आ ही गया | बारात अपने गंतव्य पर जाने को तैयार थी | दुल्हे के लिए कहीं से बग्धी का इंतजाम हो गया था | और बारातियों में कुछ पैदल तो कुछ लोग घोड़ा गाड़ी पर चल दिए | उधर
    Read More

    मैच्युरिटी ,<span>उपन्यास</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    बदलाव की बयार

    • Edited 3 years ago
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    • 132
    • 11 Mins Read

    बदलाव की बयार
    --------------------------
    उसने बदलना तो चाहा था ,भारत की तस्वीर
    और तब स्पष्ट दिखा
    जब बदली जम्मू और कश्मीर |
    नोटों से लेकर ,चौखटों तक
    बदलाव की वह बयार गयी |
    हर टुकड़े को एक सूत्र मे बाँधने की कोशिश
    एक
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    बदलाव की बयार ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Anujeet Iqbal

    Anujeet Iqbal 3 years ago

    बहुत अच्छे

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    बहुत खूब.... सर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    क्यों पढ़ूँ अखबार

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 196
    • 7 Mins Read

    क्यों पढूँ अखबार
    ---------------------
    क्यूँ पढ़ूँ अखबार ?
    वह कहाँ करता है मेरे बारे में विचार |
    मुझे नहीं जानना किसी की कहानी
    जो मेरे बारे में कुछ नहीं कहती
    क्यों न्यायालय के चक्कर लगाऊँ
    जहाँ मेरे साथ न्याय
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    क्यों पढ़ूँ अखबार ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    क्या है आज के अखबार में

    • Edited 3 years ago
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    • 88
    • 7 Mins Read

    क्या है आज के अखबार में
    ---------------------------------
    क्या है आज के अखबार में
    कुछ बड़े लोगों के बयान
    उनके और उनके पुरखों का गुणगान |
    कुछ समयातीत हो गयी दलीलें |
    कुछ लोगों की झूठी शान |
    यही रोज की चर्चा का विषय है |
    कुछ
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    क्या है आज के अखबार में ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    शायद एक दिन बन पाउँगा कवि

    • Edited 3 years ago
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    • 210
    • 7 Mins Read

    शायद एक दिन बन पाऊँगा कवि
    ----------------------------------------
    सोचा था आज कुछ न लिखूँ
    बस पढूँ सभी को
    जानूँ कुछ और भी
    जो अबतक जान न पाया
    पर लिखना पड़ा
    रहा न गया बिन लिखे
    इस वीरान सी हुई जिंदगी में
    जब मैं खुद को
    सबसे अकेला
    Read More

    शायद एक दिन बन पाउँगा कवि ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    शायद एक दिन मैं बन पाऊँगा कवि

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 124
    • 7 Mins Read

    शायद एक दिन बन पाऊँगा कवि
    ----------------------------------------
    सोचा था आज कुछ न लिखूँ
    बस पढूँ सभी को
    जानूँ कुछ और भी
    जो अबतक जान पाया
    पर लिखना पड़ा
    रहा न गया बिन लिखे
    इस वीरान सी हुई जिंदगी में
    जब मैं खुद को
    सबसे अकेला
    Read More

    शायद एक दिन मैं बन पाऊँगा कवि,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 288
    • 15 Mins Read

    मैच्युरिटी
    ---------
    भाग (4)
    घर में सबके लिए समय बहुत जल्दी जल्दी निकलता जाता था | पर शायद इस धरती पर दो प्राणी देवेन्दु राय और मूर्ति ऐसे थे जिनके लिए समय काटे न कटते थे | दोनों के दिलों
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    मैच्युरिटी ,<span>उपन्यास</span>
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    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 133
    • 14 Mins Read

    मैच्युरिटी
    --------
    भाग (3 )
    हारमोनियम जो अबतक मखमली कपड़े से ढँका था | बाहर निकाला गया और उसपर से कपड़ा हटाया गया | शायद जब से मूर्ति की शादी की बात चलने लगी थी तबसे उसे अपने धड़कनों
    Read More

    मैच्युरिटी,<span>उपन्यास</span>
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    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    बहुत सुन्दर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    अद्भुत

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    हिन्दी

    • Edited 3 years ago
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    • 89
    • 5 Mins Read

    हिन्दी
    -------
    मैं लिखता हूँ हिन्दी में
    एतराज नहीं अगर तुम पढ़ सको इसे सिंधी में
    प्यार है मुझे अपनी भाषा से
    पर नफरत भी नहीं तुम्हारी जिज्ञासा से
    मेरी तो यही मातृभाषा है
    किसी की कोई और होगी
    तौर तरीके
    Read More

    हिन्दी ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता, लयबद्ध कविता

    शिकायत

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 212
    • 2 Mins Read

    शिकायत
    -------------------
    शिकायत करनेवाले को ही पता नहीं कि क्या शिकायत है |
    शायद इसे ही मोहब्बत कहते हैं
    कुछ कहना चाहते है् ,पर कह नहीं पाते |
    शरम आती है कहते दिल की बात
    छुपाते हैं पर छुप नहीं पाता
    कुछ
    Read More

    शिकायत,<span>अतुकांत कविता</span>, <span>लयबद्ध कविता</span>
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    Naresh Gurjar

    Naresh Gurjar 3 years ago

    बहुत खूब

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    बढ़िया

    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    अच्छी रचना है।

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    बहुत.... शानदार... सर

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    वाह वाह

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    बहुत खूब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    Sudhir Kumar

    Sudhir Kumar 3 years ago

    वाह क्या बात है

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    मातृभाषा

    • Edited 3 years ago
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    • 215
    • 6 Mins Read

    मातृभाषा
    ------
    हम सभी को अपनी भूमि और अपनी भाषा से प्यार है |
    जो जितने गहरे उतरा ,किया उसने इसका उतना ही विस्तार है |
    मत बनने दो भाषा को राजनीति का हथियार
    इसकी कोमलता कायम रखने को गहरे उतरो
    Read More

    मातृभाषा,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Kumar Sandeep

    Kumar Sandeep 3 years ago

    अति सुंदरम्

    Gita Parihar

    Gita Parihar 3 years ago

    बहुत सुंदर विचार

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    बढ़िया

    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 195
    • 26 Mins Read

    मैच्युरिटी
    --------
    भाग (2 )
    खैर ! देखते देखते वह समय भी बहुत निकट आ गया जिसे उन्होंने कौतुहल समझा था | अपने ही एक दूर के रिश्तेदार द्वारा लाए गए रिश्ते को ठुकराना उनके माता पिता
    Read More

    मैच्युरिटी ,<span>उपन्यास</span>
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    कहानीउपन्यास

    मैच्युरिटी

    • Edited 3 years ago
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    मैच्युरिटी
    -----------
    भाग (1)
    बँगाल से बिहार को अलग हुए 66 वर्ष हो गए थे | वे कुछ बँगाली परिवार जो नौकरी करने अथवा व्यापार करने कलकत्ता से दूर प्रांत के अन्य हिस्से में चले आए थे वे बँगला
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    मैच्युरिटी,<span>उपन्यास</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    मैं और वह

    • Edited 3 years ago
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    मैं और वह
    ----------------------
    न वाद में , न विवाद में
    मैं जीता आया हूँ अनहद नाद में |
    विचारों की पूँछ न जाने कब की छूट गयी
    जब डूबे थे इस भँवर में ,कोई सहारा न था |
    दूर दूर तक देखा कोई किनारा न था
    बस मैं था और थी बच
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    मैं और वह ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    पर हमें भी लिखना है

    • Edited 3 years ago
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    पर हमें भी लिखना है |
    ------------------------------
    पहाँ सबकुछ लिखा जा चुका है
    पर बाकी है
    आपको अपने आपको
    लिखने का
    खुद को इन पन्नों पर
    उतारने का |
    सब कुछ लिखा गया
    पर आपको तो कोई लिख नहीं पाया
    जो बस आप और आप ही
    लिख सकते
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    पर हमें भी लिखना है ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    लेखआलेख

    समाधान की ओर चलें श्मशान की ओर नहीं

    • Edited 3 years ago
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    समाधान की ओर चलें श्मशान की ओर नहीं
    -------------------------------------------------------
    हम हर बार समाधान के बजाए श्मशान का रास्ता क्यों चुन लेते हैं | क्या वहीं जाकर हमें समाधान के रास्ते मिलेंगे | या चिर शांति मिलेगी | बड़े बहादुर
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    समाधान की ओर चलें श्मशान की ओर नहीं,<span>आलेख</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    प्रेम विश्वास के बिना

    • Edited 3 years ago
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    प्रेम विश्वास के बिना
    ------------------------------
    हम प्रेम की बातें करने से कहीं घबरा तो नहीं जाते |
    इस पथ पर चलने में कहीं लड़खड़ा तो नहीं जाते |
    क्यों प्रेम को ब्रह्म से जोड़कर
    हम इसकी सार्थकता सिद्ध करते हैं
    जैसे
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    प्रेम विश्वास के बिना ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    शमा तू फिर भी जल

    • Edited 3 years ago
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    ाये शमा तू फिर भी जल
    ----------------------------------
    इस घोर अंधकार में भी शमा तू क्यों जलती नहीं |
    क्या तुम्हें भी अंधकार अच्छा लगने लगा है |
    या जिन्होंने अंधकार कर रखा है |
    उन्हीं ने तुम्हें बुझा रखा है |
    क्या उनकी आज्ञा
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    शमा तू फिर भी जल ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद !

    कविताअतुकांत कविता

    बिन बोले

    • Edited 3 years ago
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    बिना बोले
    -------------------
    इतने विरोधाभासों के बीच डोलती नहीं |
    क्यों तुम्हारे दर्द तुम्हें मजबूर नहीं करते |
    अपने ही बदन के छाँव से तुम्हें दूर नहीं करते |
    शब्दों में तो वे बोलते हैं जो बोलना जानते नहीं
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    बिन बोले ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब शब्दों की कहानी शब्दों की जुबानी बहुत सुंदर लिखा है आपने

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    कविताअतुकांत कविता

    झरोखे से

    • Edited 3 years ago
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    • 91
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    झरोखे से
    ----------------------
    काश मैं उस गली में ही रहता
    जिसमें तेरा घर है |
    रोज रात को खिड़की पर झाँकता
    जहाँ से तुम देखा करती हो इन वादियों को |

    थक गयी हैं आँखे इस दुनियाँ के कुरूप चेहरों को देखकर
    कभी तेरे सुंदर
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    झरोखे से,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब

    Krishna Tawakya Singh3 years ago

    धन्यवाद

    लेखआलेख

    दोहरे मापदंड़म

    • Edited 3 years ago
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    • 103
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    दोहरे मापदंड
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    जब मोदी सरकार सत्ता में आयी तब कितने लेखक,एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों को भारत रहने लायक नहीं लगने लगा था | उन्हें डर लगने लगा था अचानक भारत देश में | कई लोग तो देश छोड़कर जाने की बात
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    दोहरे मापदंड़म,<span>आलेख</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    सच छूट गया कहीं

    • Edited 3 years ago
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    सच छूट गया कहीं
    --------------------------
    मैं अपने सच को छुपाने
    और आपके सच को
    पटल पर लाने नहीं आया हूँ |
    मैं तो खोजने चला हूँ सच की
    उन खामियों को
    जिसके कारण इसे छुपाने को हम मजबूर होते हैं |
    एक आवरण की तलाश होती है
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    सच छूट गया कहीं,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कवितालयबद्ध कविता

    यादों के साथ सफर

    • Edited 3 years ago
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    यादों के साथ सफर

    सुबह से शाम
    शाम से सुबह हो जाती है
    तब भी आप की याद आ रही थी
    अ्ब भी सताती है |

    इन यादों का क्या करें
    यह तो आती जाती है
    हम जिन्हें याद करते हैं
    वह सपनों में भी आने से कतराती है |

    क्या करें
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    यादों के साथ सफर,<span>लयबद्ध कविता</span>
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    कवितालयबद्ध कविता

    आँखों की भाषा

    • Edited 3 years ago
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    आँखों की भाषा
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    बहुत अच्छा लगता है
    जब आप अपनी जुल्फें बिखेरती हैं
    होठों पर मुस्कान लिए
    आँखें तरेरती हैं |
    और कुल्हे उचकाकर कहती हैं ,ओह
    जैसे लगता है कह रही हों
    क्यों मुझे परेशान करते हो
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    आँखों की भाषा,<span>लयबद्ध कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    धुंधलापन

    • Edited 3 years ago
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    धुंधलापन
    ------------------------
    इस रात के घने अंधेरे में
    मैं देखना चाहता हूँ
    चारों ओर
    इस दुनियाँ का रंग रूप
    पर कुछ दिखता नहीं
    पर मन में एक रोशनी सी
    दिखती है |
    बस हर तरफ से नजरें हारकर
    बस उसकी तरफ मुड़ जाती है
    Read More

    धुंधलापन,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस

    • Edited 3 years ago
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    धुंधलापन
    ------------------------
    इस रात के घने अंधेरे में
    मैं देखना चाहता हूँ
    चारों ओर
    इस दुनियाँ का रंग रूप
    पर कुछ दिखता नहीं
    पर मन में एक रोशनी सी
    दिखती है |
    बस हर तरफ से नजरें हारकर
    बस उसकी तरफ मुड़ जाती है
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    धुंधलापन  ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में  मैं देखना चाहता हूँ  चारों ओर  इस दुनियाँ का रंग रूप  पर कुछ दिखता नहीं  पर मन में एक रोशनी सी  दिखती है |  बस हर तरफ से  नजरें हारकर  बस उसकी तरफ मुड़ जाती है  दिखती है वह दूर से आती हुई  पर उस,<span>अतुकांत कविता</span>
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