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"तुम्हें"
कविता
याद है तुम्हें
क्या जानती हो
किसकी आज़ादी...
उठो तुम
आना मेरी गली
माँ ...जो मैंने तुम्हें कभी न बताया
तुम्हें कब मना किया है
बिन बोले
शमा तू फिर भी जल
तुम छोड़ गये पद का निशान
तुम्ही बताओ
कुछ बात तुम्हें सुनाते हैं
Kya neend aati hai tumhe
जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो
क्या तुम्हें याद है?
अपनी शक्ति पहचानो
अपनी शक्ति पहचानो
सोचते रहना
राम तुम्हें फिर आना होगा
मां की ममता
अपनी शक्ति पहचानो
ख़ुद पर विश्वास
मुझे याद है
हैवान की हैवानियत
हैवान की हैवानियत
अपनी शक्ति को पहचानो
मेरा शहर
नेताजी
संवेदना *
कौन हो तुम
अंखियों के झरोखों से
मन तन के पार
मन तन के पार
एक झिलमिलाती सुबह
यह प्रकृति एक सुंदर पुस्तिका
माँ भारती के गहने
रात की बात
एक लहराते पंछी सी
फूल, तितली और पत्तियां
ऐ सूरजमुखी के फूल
अपनी शक्ति पहचानो
मैं पानी हूँ
तुम हो ही नही
तुम्हें कैसे समझाऊं...
मंजूर न था
पता ही नहीं
पल पल तुम्हें पुकारा
चाहता हूं
Samaaj
झरोखे यादों के
दुश्मन तुम्हारे अंदर बैठा है
पार्थ तुम्हें भी बनना होगा
टकरार क्या करना
डर किस बात का,कौन सा,हकीकत मे आना था
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
ज़रूरत क्या है
माँ सरस्वती तुम्हें हमारा नमन
लाख आवाजें लगाया करना
कहानी
एक बार फिर
बरसात
अनाथ भाग-3
लेख
शिक्षक का खत विद्यार्थी के नाम
मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं
ढूंढा करते हैं तुम्हें
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