कविताअतुकांत कविता
हाँ, मुझे याद है
आज भी वो दिन
जब मैंने प्रथम बार
तुम्हें देखा था
तुम्हारी प्यारी आँखों ने
मेरी आँखों से
मन भर बातें की थीं।।
हाँ, मुझे याद है
जब तुमने प्रथम बार
मुझसे मेरा नाम जानने की
इच्छा जाहिर की थी
और मैंने मुस्कुराते हुए
तुम्हें अपना नाम कहा था
और तुमने भी
बताया था, मुझे अपना नाम
शर्माते हुए।।
हाँ, मुझे याद है
तुम संग गुजारा गया हर लम्हा
तुम संग गुजारे लम्हों को
भला मैं भूल कैसा सकता हूँ
क्योंकि मुझे ज्ञात है प्रेम की परिभाषा
प्रेम में पूरे मन से
विश्वास का बीज बोया जाता है।।
मुझे अत्यंत अफसोस है
इस बात का, कि
तुम्हें यकीन ही नहीं हुआ
मुझ पर मेरे प्रेम पर
शायद इसीलिए तो
तुम छोड़ गई मुझे
हमेशा-हमेशा के लिए
और तुमने स्थापित कर ली
अपनी एक अलग दुनिया।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित