कवितागजल
कर लो प्यार से रुखसत, टकरार क्या करना
मैंने जला दिये सब खत, टकरार क्या करना
हमने कब कहा कि हम कुसुरवार नहीं हैं
वाज़ीब है तुम्हारा शक़, टकरार क्या करना
तुम्हें मोहब्बत है तब्दीली से तुम ठहर नहीं सकते
तुम्हें मुबारक हो ये लत्त, टकरार क्या करना
तुम अब जो करो,उचित,हमें सहना है बहरहाल
तुम्हें हमने ही दिया ये हक़, टकरार क्या करना
आँधियों से ख़फ़ा रहें ये उचित नहीं "इंदर"
जब उजड़ गया दरख़्त, टकरार क्या करना
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश