मेरा नाम इंदर भोले नाथ है मैं उत्तर प्रदेश के बागी बलिया जिले का रहने वाला हूँ, मैंने Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith University से स्नातक किया हुआ है, मैं एक Accountant हूँ, मुझे बचपन से ही कविता, कहानी, शेरो शायरी और ग़ज़ल लिखने का शौक़ है
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London is the capital city of England.
कवितागीत
पिय मिलन की आस में,सुध बुध सब बिसराइ है
बावरी हो चली बिरहन, मदमस्त चली पुरवाई है
आंगन से दहलीज तलक
भ्रमण कई कई बार किया
कंगन,बिंदी,चूड़ी, काजल
उसने सोलह श्रृंगार किया
आईने में देख छवि खुद की,खुद
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कविताचौपाई, अन्य
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिये
रणभूमि भी सनी हुई है रक्त की आगोश में
कुरुक्षेत्र भी खड़ा है शांत गोद में समर लिये
बाण सा है दौड़ रहा धमनियों का खून
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कविताअन्य
ढ़ेरों गुंजाइश होती थी
घर में मयार आने की
खुले आसमां से
बारिश की फुहार आने की
मिट्टी की बनी दीवार
खपड़ै लों का छज्जा था
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
ऊपर नीम का दरख़्त पसरा
नीचे फूलों
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सुविचारअनमोल विचार, भक्तिमय विचार, प्रेरक विचार
मेरी अब तक की सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना जो मैं आप सबसे साझा कर रहा हूं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सबको भी मेरी रचना अच्छी लगेगी,
महाभारत युद्ध का अंतिम चरण-
युद्ध में दानवीर कर्ण के रथ का पहिया जमीन
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कविताअन्य
1-
जिनके खातिर सुख चैन सब लुटाये बैठे हैं
वो लोग ही मुझे नजरों से गिराये बैठे हैं
मेरे अपने ही मेरे खिलाफ हैं मेरे जायज होने पे
उसकी गलतियाँ उसके शहर वाले भी छुपाये बैठै हैं
2-
लंबी लिस्ट मे तैयार
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कवितागजल
मुझ में ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
उसके रूठने का यारों मस्अला भी कमाल का है
करने लगा है परेशां वो हिचकियों से आज कल
किसी पे हक जताने का ये कला भी कमाल का है
एक ही शख्स लिये फिरे है दो चेहरे
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कवितागजल
रुको न तुम करते रहो सवालों का सिलसिला
मुसलसल रहेगा जारी जवाबों का सिलसिला
था हकीकत को कब गवारा वो ठहरे आँख मे
बस आते और जाते रहें,ख्वाबों का सिलसिला
रहता हूँ आजकल,खुद मे,खोया खोया सा मै
किसी
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कवितागजल
वो अब पूछते हैं हाल, कमाल ही तो है
कर गयें ज़िंदगी बे-हाल,कमाल ही तो है
जो पोंछा करते थे आँसू मेरी कमीज से अपनी
अब वो रखने लगें रुमाल, कमाल ही तो है
इक हम हैं जिसे सुकूँ का कोई दर नहीं मिला,
वो दर-दर
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कवितागजल
लौटेगा यकीन है वो जिद्द पे अड़ा हो, बेशक
मुझ से दूर जाने को वो खुद से लड़ा हो,बेशक
के शर्त है दिलों दिमाग पे खुमारी मेरी ही रहेगी
वो शख़्स किसी की बाहों मे भी पड़ा हो, बेशक
आयेगा थक हार के उसी दरख़्त
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कविताअन्य
यथार्थ जानकर भी,हाँ,बना मैं अत्याचारी था
राज्य मोह नहीं,केवल,मित्रता का अभारी था
चिरहरण पे मौनता का,मुझसे प्रश्न करने वालों
मैं क्यूँ न कर मौन रहूँ जब रखवाला ही जुआरी था
~ इंदर भोले नाथ
©®इंदर
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गजल
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
कई ख्वाब हमने पलकों पे उधार रखा है
जरा सलीके से पढ़ना तुम खत का हरेक हर्फ
हमने खत में अपने दिल को उतार रखा है
सुना है कि तुम्हें इल्म चारा-गरी का आता है
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कवितागजल
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
कई ख्वाब हमने पलकों पे उधार रखा है
जरा सलीके से पढ़ना तुम खत का हरेक हर्फ
हमने खत में अपने दिल को उतार रखा है
सुना है कि तुम्हें इल्म चारा-गरी का आता है
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कवितागजल
वो तो था, फरिस्तों का दौर,वो जमाना छोड़ दो
बीती बातें,फिर,कभी और, वो जमाना छोड़ दो
छोड़ दो कि उस दौर की किस्से कहानी परियों की
गुजर गया तितलियों का दौर वो जमाना छोड़ दो
कि इसी दस्त में बयां है कई
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कवितागजल
फिर रहे हैं दर बद्दर, तुम, दर दर से पूछ लो
कि मेरे सफर का निशां हर शहर से पूछ लो
न खत लिखा कोई न किसी की याद आई है
मिले अरसा गुजर गया, मेरे घर से पूछ लो
बिखर गई हैं टूट कर कितनी जिस्म से शाखें
तुफां
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कवितानज़्म, गजल, गीत
गिरना फिसलना खुद को उठाना पड़ता है
हमें मर्द होने का कर्ज़ चुकाना पड़ता है
घर छोड़ने का संताप हमने भी किया है
हां दहलीज का त्याग हमने भी किया है
कई बार टूटकर भी न जाहिर होने दिया
किंतु अकेले
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कवितागजल
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
पुराने दरख़्त पे नया आशियाना लगा अच्छा
दिल नादान सा है मेरा जल्दी मान जाता है
मुझे इग्नोर करने का तेरा बहाना लगा अच्छा
कुछ पल के लिये सही सुकूँ मिलता
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कवितागजल
डर किस बात का,कौन सा,हकीकत मे आना था
ढल के हर्फ हर्फ मे तुम्हें बस खत में आना था
तुम्हें आना था मेरे जिस्म को फिर ज़िंदगी देने
मैंने कब कहा था तुमको मेरी मय्यत मे आना था
उड़ रहे हो आसमान में फ़िर
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कवितानज़्म, गजल, गीत
तुम,से है,हमें मोहब्बत, ये बात और है
तेरी जाति और है हाँ मेरी जाति और है
तुम,से है,हमें मोहब्बत ये बात और है
तुं चाँद है फ़लक का मैं हूँ जमीं का जुगनू -2
तेरी निशा की बात और मेरी रात और है
तुम,से है,हमें
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कवितानज़्म, गजल, गीत
उदास चेहरे की सभी बलाएँ उतार लूँ तेरी -2
तुं चुपके से आ दरवाजे पे सूरत निहार लूँ तेरी
तेरी नम उदास आँखों में
इक ख्वाब सजा दूँ चुपके से-2
हँसी सजा के होठों पर सारे गुबार लूँ तेरी
उदास चेहरे की सभी
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कवितानज़्म, गजल, गीत
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते-2
आँखों की प्यास मिट जाये,दीदार भी नहीं देते
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते
मैं चौंक कर उठ जाता हूँ रोज रातों को अक्सर-2
ख्वाबों में आने
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कवितागजल
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
बारिस मे भीगता रहा कोई छत नहीं आया
जो बाँटता था, घर घर, खुशियां कागजों में
उस डांकिये के घर कोई खत नहीं आया
आया नहीं जमीं पे वो परिंदा उड़ने वाला
क्या रास्ते में
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कविताअन्य
शोख़ चंचल हवा दरिया की पानी लगती हो
तुम खिलते हुए बहारों की रवानी लगती हो
जिसे बचपन मे नानी हमें सुनाया करती थी
तुम सच में उसी कहानी की रानी लगती हो
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश
कवितागजल
वो अब भी वफा निभा रहा है,पास आ रहा है
जब भी कोई गम सता रहा है,पास आ रहा है
मैं उस की रवानगी को कैसे रवानगी कह दूं
कि वो जितना दूर जा रहा है, पास आ रहा है
किसी खत की खुशबू है फिर हवाओं में बिखरी
फिर, कोई
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कवितागजल
न ख्वाब न हिचकियों का सिलसिला है,मस्अला क्या है
न वो आया ना कोई खत मिला है, मस्अला क्या है
मस्अला था तभी तो बरसों नज़र अंदाज किया हमको
क्या बात,आज,अचानक से,गले मिला है,मस्अला क्या है
रोज कई यादों
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कवितागजल
मन बावला हो चला है,इसे समझाये कोई
फिर उसी रस्ते चला है,इसे समझाये कोई
इसे समझाये कोई ये क्यों जिद्द पे अड़ा है
मोहब्बत इक बला है, इसे समझाये कोई
वो गुजरा है फिर आज हमारी गली से होकर
फिर कोई साज़िश
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कवितागजल
कर लो प्यार से रुखसत, टकरार क्या करना
मैंने जला दिये सब खत, टकरार क्या करना
हमने कब कहा कि हम कुसुरवार नहीं हैं
वाज़ीब है तुम्हारा शक़, टकरार क्या करना
तुम्हें मोहब्बत है तब्दीली से तुम ठहर नहीं
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कवितागजल
कहाँ की कली थी कहाँ वो खिली है
उमड़ती नदी सी होके सरपट चली है
मैं जिसको अपना समझने लगा था
वो है कि किसी और के दर पे मिली है
भटकती वो फिरती हर भंवरे के पीछे
है वो चंचल हसीना वो मनचली है
तोड़ेगी दिल
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अन्य
कुछ तो लम्हां रहने दो
हमारी भी निगरानी में
कई किरदार निभाये हैं
हमने भी जवानी में
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश
कवितागजल
अब न कोई शिकवा न गिला है , उसे कोई सूचित करो
दिल अब किसी और का हो चला है, उसे कोई सूचित करो
उसे कोई सूचित करो कि वो अब तो मुझे आज़ाद करे
अब भी हिचकियों का सिलसिला है,उसे कोई सूचित करो
वो रूठा हुआ है,जो
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