कवितागजल
अब न कोई शिकवा न गिला है , उसे कोई सूचित करो
दिल अब किसी और का हो चला है, उसे कोई सूचित करो
उसे कोई सूचित करो कि वो अब तो मुझे आज़ाद करे
अब भी हिचकियों का सिलसिला है,उसे कोई सूचित करो
वो रूठा हुआ है,जो उसके घर पे, फकत चिंगारियाँ गई
यहाँ सारा शहर राख हो चला है, उसे कोई सूचित करो
मै खुद ही रहा "इंदर" अपनी बरबादियों का सबब
वो तो कब का बरी हो चला है, उसे कोई सूचित करो
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश