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"रहने"
कविता
मासूम परिंदे
आम सी ज़िन्दगी
जीने का चाव
"अब हमें प्रखर रहने दो "
इश्क़
मसरूफ़ ओ मश्ग़ूल तो रहने दो
जख़्म-ए-जिगर को बशर मेरे हरा अभी कुछ रोज रहने दे
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
चांद पर बसने की बात करते हैं
अंधेरा रहने दो
आदमी को आदमी हि रहनेदो
*शाद रहने की वज़ह ढूंढ लेने का नाम हयात है*
बचकर रहने का तरीक़ा है
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
*खुश रहने में भी कुछ जाता है क्या*
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
शाम रहने दी ना सवेरा रहने दिया
तेरा ही रहने दिया ना मेरा ही रहने दिया
सबब चुप रहने का
साथ रहने को मकीं घर समझ लेते हैं
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
हद होती है
आपको अपनी खूबियाँ मुबारक
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते
शेर
रहने दे तुझ को पास मेरे
तन्हा भी नहीं रहने देतीं
तन्हा रहने की आदत डाल लीजिए
कहानी
धरती कहे पुकार के
जिन्दगी की डायरी के पन्ने
बड़े भाई साहब
लेख
झोपड़ी और महल
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