कविताअन्य
ढ़ेरों गुंजाइश होती थी
घर में मयार आने की
खुले आसमां से
बारिश की फुहार आने की
मिट्टी की बनी दीवार
खपड़ै लों का छज्जा था
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
ऊपर नीम का दरख़्त पसरा
नीचे फूलों का कतार था
तब रौनकें ही रौनकें
घर में बेशुमार था
ना कोई दीवार आंगन में
ना दिल में कोई दरार था
रंजिश ईर्ष्या कोसों दूर
हृदय में बस प्यार था
खुशियों की एक ही किमत थी
लेमनचुस चार आने की
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश