Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की - INDER BHOLE NATH (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की

  • 99
  • 3 Min Read

ढ़ेरों गुंजाइश होती थी
घर में मयार आने की
खुले आसमां से
बारिश की फुहार आने की
मिट्टी की बनी दीवार
खपड़ै लों का छज्जा था
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की

ऊपर नीम का दरख़्त पसरा
नीचे फूलों का कतार था
तब रौनकें ही रौनकें
घर में बेशुमार था
ना कोई दीवार आंगन में
ना दिल में कोई दरार था
रंजिश ईर्ष्या कोसों दूर
हृदय में बस प्यार था
खुशियों की एक ही किमत थी
लेमनचुस चार आने की
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की

इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश

inbound2277245897995158161_1712737198.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg