कवितागजल
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
बारिस मे भीगता रहा कोई छत नहीं आया
जो बाँटता था, घर घर, खुशियां कागजों में
उस डांकिये के घर कोई खत नहीं आया
आया नहीं जमीं पे वो परिंदा उड़ने वाला
क्या रास्ते में उसके कोई दरख़्त नहीं आया
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
बारिस मे भीगता रहा कोई छत नहीं आया
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश