कवितानज़्मगजलगीत
उदास चेहरे की सभी बलाएँ उतार लूँ तेरी -2
तुं चुपके से आ दरवाजे पे सूरत निहार लूँ तेरी
तेरी नम उदास आँखों में
इक ख्वाब सजा दूँ चुपके से-2
हँसी सजा के होठों पर सारे गुबार लूँ तेरी
उदास चेहरे की सभी बलाएँ उतार लूँ तेरी
जिसे देख आजकल अक्सर
रश्क चाँद भी करता है-2
तुं आ कभी ख़ाबों मे भी मैं इक दीदार लूँ तेरी
उदास चेहरे की सभी बलाएँ उतार लूँ तेरी
रकीबों पे बरसता है तुं
बादल बनके खुशियों की -2
कभी रहम कर मुझपे भी,मैं भी मयार लूँ तेरी
उदास चेहरे की सभी बलाएँ उतार लूँ तेरी
गुबार - दुःख,पीड़ा
रश्क- जलन, इर्ष्या
मयार - दया
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश