कवितागजल
वो अब पूछते हैं हाल, कमाल ही तो है
कर गयें ज़िंदगी बे-हाल,कमाल ही तो है
जो पोंछा करते थे आँसू मेरी कमीज से अपनी
अब वो रखने लगें रुमाल, कमाल ही तो है
इक हम हैं जिसे सुकूँ का कोई दर नहीं मिला,
वो दर-दर गला चुके हैं दाल, कमाल ही तो है
उन्हें चस्का है नुमाइश का वो मसहूर ही होंगे "इंदर"
इज्जत, किमत हो बहरहाल, कमाल ही तो है
~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश