कविताअन्य
1-
जिनके खातिर सुख चैन सब लुटाये बैठे हैं
वो लोग ही मुझे नजरों से गिराये बैठे हैं
मेरे अपने ही मेरे खिलाफ हैं मेरे जायज होने पे
उसकी गलतियाँ उसके शहर वाले भी छुपाये बैठै हैं
2-
लंबी लिस्ट मे तैयार शिकवे गिले नहीं दूंगा
तुम मौज में रहो मैं तुम्हें मुश्किलें नहीं दूंगा
तुम्हें जरूरत है खुद को सही साबित करने की
मैं अब बे-वजह की कोई दलिले नहीं दूँगा
3-
मैं अभी हुआ नहीं किसी और का,गौर कीजिए
दिल मुरीद है उसी दौर का गौर कीजिए
गौर कीजिए कहीं आप लिक से हट तो नहीं गए
हमारी फ़ितरत है वही बतौर का, गौर कीजिए
4-
जिद्द रहे सर आंखों पर जिंदगी ज़ाया भी गर हो
लौटना मुझे मंजूर नहींं उसने बुलाया भी गर हो
रूठ कर मान जाना बहोत आसान है "इंदर"
बात तो तब है,हठ की,और हठ निभाया भी गर हो
इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश