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नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये - INDER BHOLE NATH (Sahitya Arpan)

कविताचौपाईअन्य

नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये

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नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिये
रणभूमि भी सनी हुई है रक्त की आगोश में
कुरुक्षेत्र भी खड़ा है शांत गोद में समर लिये

बाण सा है दौड़ रहा धमनियों का खून भी
विवेकपूर्ण भाव हैं तो जीत का जुनून भी
चेतना अचेत हुई रुदन और विलाप से
बारी बारी मिट रहे हैं पाप और पुण्य भी

हर कक्ष का यक्ष ब्याकुल और अधीर है
दूत जो हैं आ रहें मौत की खबर लिये
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिए

कर्ण की ध्वजा गिरी अर्जुन के प्रहार से
दुर्योधन की गदा थकी भीम के हुँकार से
कुरु सैन्य छिन्न भिन्न किये नकुल और सहदेव ने
अधर्म दम तोड़ रहा धर्मराज की वार से

एक तरफ सच्चाई खड़ी तो एक तरफ जिद्द है
एक ओर हंसों की टोली दूजी ओर गिद्ध हैं
दो सहोदर लड़ रहें एक दूजे के विनाश को
कर्ण ने आह्वान किया अर्जुन पे ब्रह्मास्त्र को

हर दिशा शून्य शान्ति धरा और आकाश है
वायु भी अग्नि बरस रही कुरुक्षेत्र का भ्रमण किए
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खप्पर लिये

इच्छा मृत्यु का वरदान भी आज श्राप सिद्ध हो गयें
गंगा पुत्र भीष्म भी आज अपनी दुर्दशा पे रो गयें
ये कैसी गुरु दक्षिणा हुई ज्ञान के आशीष को
शिष्य ने धड़ से अलग किया गुरु के ही शीष को

हर कोई विवश हुआ है इस धर्म युद्ध मे
अपने ही खड़े हुए हैं अपनों के विरुद्ध मे
भुजाओं को खबर है ये शस्त्रों को न ज्ञात है
जीत की अनुभूति में भी दिख रहा मात है

मेघ उमड़ रहा है अश्रू बन आसमां के नेत्र मे
धरा भी है चल पड़ी रक्त का समंदर लिए
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
रक्त पी रही पिशाचनी हाथ मे खपर लिये

इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश

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