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सूत पुत्र संबोधित कर मुझे तिल तिल कर मारा गया - INDER BHOLE NATH (Sahitya Arpan)

सुविचारअनमोल विचारभक्तिमय विचारप्रेरक विचार

सूत पुत्र संबोधित कर मुझे तिल तिल कर मारा गया

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मेरी अब तक की सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना जो मैं आप सबसे साझा कर रहा हूं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सबको भी मेरी रचना अच्छी लगेगी,

महाभारत युद्ध का अंतिम चरण-
युद्ध में दानवीर कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धँस जाने के बावजूद भी अर्जुन उन पर बाण से प्रहार करते हैं, बाण लगने के बाद कर्ण बस भगवान कृष्ण की तरफ देखते हैं और उनसे आंखों ही आंखों में कई प्रश्न कर देते हैं l
भगवान कृष्ण तो सर्वव्यापक थे, करण के मन में उठ रहे प्रश्नों को वह वह भली भाँति जान जाते हैं, और अपने रथ से उतरकर वह कर्ण के समीप आते हैं l
करण के समीप आकर भगवान कृष्ण कर्ण से कहते हैं...
हे कुंतेय...
उनके मुंह से अपने प्रति यह संबोधन सुनकर कर्ण अचंभित हो भगवान कृष्ण की तरफ देखते हैं, हालांकि कर्ण को पता था कि वह भी कुंती के पुत्र हैं l
किन्तु इससे पहले भगवान कृष्ण ने जब भी उन्हें संबोधन किया था तो मित्र कर्ण या राधेय कहकर संबोधित किया था, आज पहली बार भगवान कृष्ण ने उन्हें कुंतेय कहा था, जो कर्ण को अच्छा नहीं लगा l

भगवान कृष्ण कहते हैं....
मित्र कर्ण मैंने तुमसे पहले ही कहा था तुम अर्जुन का पक्ष यानी सत्य का पक्ष चुनो, किंतु तुमने असत्य का पक्ष चुना अतः हे मित्र यह तो होना ही था क्योंकि तुमने असत्य का मार्ग जो चुना l

भगवान कृष्ण की बात काटते हुए कर्ण ने जो कहा वो मैं अपनी पंक्तियों में आपके समक्ष रखता हूँ.....

कर्ण...

सूत पुत्र संबोधित कर मुझे तिल तिल कर मारा गया
मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

शौर्य अगर परखा जाता फिर कहाँ पार्थ सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होता
भरी सभा मे विद्वानों द्वारा न मैं दुत्कार का पात्र अगर होता

मिला होता अवसर यदि हमको नष्ट पार्थ का गुरुर कर देता
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का भरम मैं पल भर मे चूर कर देता

पांडवों पर ही दिनमान रहे क्यों मेरे लिये तुम हुए भगवान नहीं
क्यों मौन रहे मेरे अपमान पे बोलो हे मुरलीधर क्या मैं इंसान नहीं

साथ न देता दुर्योधन का मैं,कभी,महाभारत नहीं करता,अगर
भरी सभा मे सखा मान सर पे अंगराज का मुकुट नहीं धरता

हर बार नीच अधम कहकर शब्दों का बाण हृदय मे उतारा गया
हाँ मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

सोचो कितना अछुत था मैं जो माँ ने भी मुझको त्याग दिया
ममता की देवी भी निष्ठुर बन मुझे सूत पुत्र का दाग दिया

इतनी नफ़रत इतना घृणा बोलो क्यूँ मुझको ही सरकार मिला
तुम्हे भी तो माँ यशोदा ने पाला फिर तुम्हे क्यूँ नहीं दुत्कार मिला

एक पुत्र के लिए दूजे पुत्र का प्राण मांगती है क्या
बोलो हे कन्हैया कोई माँ ये हद्द भी लाँघती है क्या

एक सखा दुर्योधन को छोड़ सभी ने मुझ से छल किया
कवच और कुंडल माँगकर था इंद्र ने मुझको निर्बल किया

पग-पग पर अभिशाप मिला किस्मत से भी मात मिला
सुर्यदेव भी पड़े पार्थ मोह मे,पिता का भी नहीं साथ मिला

बस अपनों के ही हाथों सदैव सर्वस्व उजाड़ा गया, हाँ
मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

नारी को दांव पे रख कर तनिक भी नहीं संताप किया
हमने मित्रता का लाज रखा तो कौन सा पाप किया

जुए मे हार गया पत्नी को वो मर्द भी तो लोभी था
फिर बोलो हे मुरलीधर क्या केवल दुर्योधन ही दोषी था

छल से पितामह को मारा शिखण्डी को रण मे खड़ा करके
जयद्रथ को भी तुमने भर्माया सूर्य को मेघ मे छिपा करके

बोलो तुम्हारी छलता का मैं और कितने प्रमाण गिनाउँ
रण मे मुझे विवश किया घटोत्कच पे अमोघ बान चालउँ

था जीत ने भी मातम किया जब मैं छल से हारा गया
हाँ मैं वो अभागा कर्ण हूँ जिसे हर बार दुतकारा गया -2

© इंदर भोले नाथ
बागी बलिया,उत्तर प्रदेश
#6387948060
धन्यवाद

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