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मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है - INDER BHOLE NATH (Sahitya Arpan)

कवितागजल

मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है

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मुझ में ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
उसके रूठने का यारों मस्अला भी कमाल का है

करने लगा है परेशां वो हिचकियों से आज कल
किसी पे हक जताने का ये कला भी कमाल का है

एक ही शख्स लिये फिरे है दो चेहरे मेरे शहर में
बेइमानी का गुरु भी है वो चेला भी कमाल का है

न ये जीने देता सुकूँ से न हमें मरने ही देता है
रहमत भी है ये इश्क़ तो बला भी, कमाल का है


इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश

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