कविताअन्य
तुम छोड़ गये पद का निशान
मैं निर्निमेष कर साम गान ।।
विश्वस्त रहा तुम आओगे,
आकर के गले लगाओगे।
न आत्मभावना फलित हुयीं
सब आशायें पददलित हुयीं।।
तुम वही जो मेरे आँसू को
अपने आंखों से तोले थे ।
गर अलग हुये मर जायेंगे
कन्धे पर रख सिर बोले थे ।।
तुम चांद में अक्स ढूंढते थे
मैं तुम्हें देखते जगा रहा ।
तुम अभिव्यक्ति में सक्षम थे
मैं अनुभूति में लगा रहा ।।
एक रिश्ते का आधार बने
मैं था शरीर तुम प्राण बने ।।
तुम चले गए विस्तीर्ण रहा,
मैं प्राण विहीन शरीर रहा ।।
मैं लिखता कल्पित हृदयभार
मैं लिखता वसुधा का श्रृंगार,
मैं लिखता प्रेम प्रसंगों को
मैं लिखता अपनी अश्रुधार ।।
अब आँखें नहीं ठहरती हैं
पहचान तुम्हें मैं कितना लूं,
अब प्रेम उपज से बाहर है
अनुमान तुम्हें मैं कितना लूँ।
हैं वृथा प्रेम उसके प्रमाण
मैं निर्निमेष कर साम गान...।।