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अनाथ भाग-3 - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कहानीसस्पेंस और थ्रिलरउपन्यास

अनाथ भाग-3

  • 487
  • 14 Min Read

राज अचानक से एक घर के गलियारे में खुद को पाता है। मद्धम मद्धम रोशनी लिए वह गलियारा उसे बिल्कुल अनजान लगा। तभी एक बच्ची के रोने की आवाज आई। वह मुड़ा तो सामने बाहर बालकनी की ओर एक पालकी रखी थी। राज़ उसकी तरफ धीरे धीरे बढ़ता है ।बच्ची का रुदन उसे उसी दिन की याद दिलाता है जब वह पैकेट लेने के लिए निखिल के घर गया था। वह उसके करीब जाने वाला ही होता है की पीछे से उसे कोई रोकता है।

'क्या तुम इसे जानते हो?'
' तुम कौन हो?' राज ने पूछा
' मुझे अपना ही दोस्त समझ लो । मेरा नाम गायत्री वल्लभ है'
' यह कौन सी जगह है?'
' चिंता मत करो यह तुम्हारा ही अवचेतन मन है। तुम इस वक्त अपने ख्यालों में हो राज।'
' क्या मतलब तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?'
' मैंने कहा ना मैं तुम्हारा ही दोस्त हूं। क्या तुम उस पालकी को देख रहे हो…. लगता है उसमें कोई ऐसा है जो तुम्हें परेशान कर रहा है।
' नहीं... शायद, पर तुम्हें इससे क्या'
' तुम मेरी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे राज। एक बार उस पालकी के पहियों को देखो, वह धीरे धीरे किनारे की ओर मुड़ रहे हैं अगर तुमने उसे नहीं बचाया तो वह पालकी नीचे गिर जाएगी। तुम्हें उसे बचाना ही होगा राज ...तुम्हें उसे बचाना ही होगा राज'

राज़ पालकी की तरफ देखता है। वह धीरे-धीरे किनारे की ओर बढ़ रही होती है। उसे बचाने के लिए लगातार गुहार करती आवाज उसके कानों में गूंजने लगती है। वह जैसे ही उसे रोकने के लिए आगे बढ़ता है एक अजीब सी पीड़न के साथ हैं उसकी आंखें खुल जाती हैं। वह उठता है तो उसका सर बिल्कुल भारी; आधी रात के 2:43 बज रहे होते हैं। तेज दर्द के कारण वह दवाई ढूंढने के लिए अलमारी में रखे बक्से को खंगालने लगता है। तभी उसके हाथ एक सफेद पाउडर की पुड़िया लगती है, वह समझ नहीं पाता और दवाई लेकर सो जाता है। अगली सुबह धीरज राज के घर पहुंचता है तबीयत का पता चलते ही वह उससे मिलने के लिए कमरे में चला जाता है।

'कैसे हो राज तुम नहीं आए इसलिए मैं तुमसे मिलने चला आया। कुछ जरूरी बातें करनी थी।'
' हां बस वो थोड़ा सर भारी था। वैसे क्या बात करनी थी?'
' यहां नहीं मेरे घर पर ही। वैसे आमिर के मर्डर को लेकर एक खबर मिली है'
' क्या खबर है?'
' सभी बड़े अधिकारी हमारा नाम आते ही शांत तो हो गए लेकिन एक परिंदा है जो अपनी नजरें गड़ाए हुए हैं हमें उसे रोकना होगा।'
' उसका नाम क्या है?'
' शशि, सब- इंस्पेक्टर है'
' क्या! सब- इंस्पेक्टर, जब उसके मालिक हमारे गुलाम है तो इसमें डरने वाली क्या बात है।'
' बात वह नहीं है अगर यह बात सुर्खियों में, अखबारों में आ गई तो उन्हें मजबूरन एक्शन लेना ही होगा जिससे हमारे धंधे पर असर पड़ सकता है। वैसे तुम अकेले क्यों नहीं रहते तुम्हें अपनी वाइफ को खुद से दूर कर देना चाहिए।'
' हां मगर अकेले रहा तो शक ज्यादा हो सकता है, फैमिली मैन पर कौन शक करेगा'
' अच्छा ठीक है शाम को मेरे घर पर मिलते हैं'
' ठीक है ...अच्छा 1 मिनट आमिर की एक बच्ची भी थी उसका क्या हुआ'
' हाँ….उसकी बच्ची। चिंता मत करो, वह मेरे देखरेख में है इस वक्त।'
' देखरेख में मतलब?'
' हां, मुझे उस बच्ची की जरूरत है इसीलिए तो आमिर को मरवाया गया।वेसे तुम क्यों पूछ रहे हो?'

राज़ सोच में पड़ जाता, उसे धीरज पर कुछ छुपाने का शक होने लगता है
' नही ऐसे ही, मैं तुमसे शाम को मिलता हूँ'
.
.
...जारी है

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Pratik Prabhakar

Pratik Prabhakar 2 years ago

Nice, waiting for next part

शिवम राव मणि2 years ago

शुक्रिया सर। जरूर

दादी की परी
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