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न्याय इतनी दूर क्यों ? - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

न्याय इतनी दूर क्यों ?

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न्याय इतनी दूर क्यों ?
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न्याय की तकरीर बनती है शब्दों के तकरार से
पर लिखे जाते हैं फैसले आज भी तलवार से |
लिखी जाती इबारतें कलम से पन्नों पर |
पर उस कलम की भी कीमत होती है |
लिखनेवाले हाथ यूँ ही नहीं चलते
उन हाथों में ऊर्जा भरने की मिन्नत होती है |
इन इमारतों की दीवारें बेहद सख्त पत्थरों के बने हैं
जिनके दरवाजे हीरे की चाबी से खुलते हैं |
न्याय खरीदा नहीं जा सकता
पर बिकता है |
न्याय चल नहीं सकता
पर रूकता है |
कौन कहता है न्याय के पलड़े झुकते नहीं
यह ताकत के आगे आज भी झुकता है |
कौन कहता है आवाज दबती नहीं
ताकत. से आवाज दबायी जाती है |
पैसों की परछायी से
हर साक्ष्य मिटायी जाती है |
अगर तुम मजबूर हो तो
न्याय तुमसे उतनी ही दूर है |
कमजोरों को कहाँ मिलता यह
यह बलशालियों का गुरूर हैं |
बिगाड़ के डर से
अभी भी ईमान की बात कहनेवाले कम हैं |
न्याय के ये बड़े बड़े मंदिर
और उसमें प्रतिस्थापित ये मूर्तियाँ अभी भी भ्रम हैं |

कृष्ण तवक्या सिंह
26.03.2021.

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