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"अपनों"
कविता
सम्भल जा ज़रा
अपनों से दूर
जब हम किसी के प्यार में होते हैं तो
काश ! मुड़कर देख लेते
समय
अलविदा 2020
अपनों को अपना हाल बताना मुश्किल हो जाता है
अलविदा 2020
अच्छा हुआ
खो गये दिन मुहब्बत के
सपनो के वास्ते
सुकूँ से बशर हम सैर करें
*कदमों में जमाना होता है*
अपनों का हर मुमकिन ए'तिमाद करें एहतराम करें
सबने अपने-अपने देखे
गैरों और बेगानों पर भी ऐतिबार किया
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
सपने देखा करो
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
हैरत नहीं होती है
अपनों के ही सुख में अपना सुख देखा
कोई अपनों से दूर न रहे
गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले
सुकून-ए-क़ल्ब असल सरमाया
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