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गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले

  • 31
  • 1 Min Read

सुकून भरे दिन हयात में किसीको ज्यादा किसीको कम मिले
पर येह सच है कि सब को गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले

© "बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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