अंजनी त्रिपाठी
मुझे लिखने का शौक है
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कविताअतुकांत कविता
सप्ताह के सातों दिन
यूं ही कट जाता है
एक आस लिए मन में
फुर्सत कब आता है
घर से बाहर तक उसको
कभी चैन नहीं आता
नारी के जीवन में
इतवार नहीं आता
कभी टिफिन बनाती है
बच्चों को जगाती है
कभी सास ससुर की चिंता
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कविताअतुकांत कविता
खोए हुए पंक्षी वापस आएंगे क्या मिलने
बीता हुआ दिन वापस आता है क्या?
एक उम्र गुजारी हो जिसके संग
उसके जाने से वक्त ठहर जाता है क्या?
कोई छोड़ चला जाए इस जग को
पर अपनों के दिल से कभी निकल पाता है क्या?
एक
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कविताअतुकांत कविता
सुबह थमी तो फिर
दोपहर में चली सर्द हवाएं
यादें थमी तो फिर
महकने लगी फिजाएं
ऐसे में कैसे तुम्हें भुला दूं
तुम्ही बताओ?
मूंगफली, गजक, बादाम,
प्याली भर चाय
तुम्हारे बिन सर्दी में
लगते सब अधूरे हैं
कैसे
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कविताअतुकांत कविता
दिन महीने हफ्ते बीते
बीत गया यह साल ।
करु दुआ में हाथ जोड़कर
नव वर्ष में सब रहे खुशहाल।
नव वर्ष सभी में
स्फूर्ति लाए
खुशियों से जन-जन
को महकाए।
सभी सलामत
रहे सदा
सुख समृद्धि
बसे सदा ।
ना कोरोना
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लेखअन्य
किस्मत की लकीरों में
ढूंढा करते हैं तुम्हें
फूलों की खुशबू हो
या हो बहती नदियां
सागर की लहरों में
ढूंढा करते हैं तुम्हें।
सूरज की लाली हो
या तारों की दुनियां
चंदा की चांदनी में
ढूंढा करते हैं
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लेखअन्य
मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं ।।
अनामिका नई नई शादी करके आई थी
बहुत सारे सपने बहुत सारे अरमान लेकर आंखों में ख्वाब सजाए ,फिल्मों की तरह सोचा करती थी मेरा पति भी फिल्मों की तरह हर पल मेरे
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कविताअतुकांत कविता
मुझको खुद से नजर मिलाएं
एक जमाना बीत गया
खोई रही दुनियां की भीड़ में
खुद की सुध को भुला बैठी
मुझको अपने गले लगाएं
एक जमाना बीत गया
हंसना रोना संग संग दोनों
जाने कैसे करती हूं
होठों पर मुस्कान सजाएं
एक
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आह, नारी की व्यथा !दिल रोता हो, होंठों पर मुस्कान रहनी चाहिए ! विडम्बना!
खुद का खुद से मिलन बेहद खूब बहुत सुंदर सृजन
धन्यवाद मैम
बहुत सुंंदर भाव के साथ लिखा है आपने ।
धन्यवाद मैम
कविताअतुकांत कविता
बड़ा सुकून सा लगता है
नवंबर तेरा आना
अब गुनगुनाती धूप भी
भाने लगी है
चाय की चुस्की भी
रास आने लगी है
मिल गई राहत
उमस भरी गर्मी से अब तो
ठंडी ठंडी हवा भी
गुदगुदाने लगी है
कविताअतुकांत कविता
आज गगन से अमृत बरसेगा
चांद का मन भी हरसेगा
चांदनी करेगी सोलह श्रृंगार
अब चकोर नहीं तरसेगा
श्याम सोलह कलाओं से
परिपूर्ण होकर
राधा गोपियों संग महारास रचाएंगे
वृंदावन में धूम मचेगी
सबका मन हरसाएंगे
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कविताअन्य
शहरी जीवन के चकाचौंध में,
मानव जब ऊब जाता है
तंग शहर की गलियों में
जब बैठ के मन घबराता है ।
तब मन का पंछी भाग
गांव की गलियों में आ जाता है, तब गांव हमें अपनाता है।।
शहरों की ये भीड़ -भाड़
ये जन समूह का
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मिट्टी की भीनी खुशबू से ओतप्रोत
धन्यवाद सर
कविताअतुकांत कविता
भारत का चतुर्थ स्तंभ है
मीडिया हमारी
जन जन की आवाज है
मीडिया हमारी
परंतु यह स्तंभ क्यों
हिलाने लगी
सच से पर्दा क्यों
सरकाने लगी
कोई शहीद हो जाए सीमा पर
बिलख रहे हो घर परिवार
कोई गरीब मदद को लगाये
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लेखअन्य
कहते हैं ईश्वर की
कोई भी रचना
अपूर्ण नहीं होती
फिर नारी अपूर्ण
कैसे रह गई?
किसी ने बांझ नाम दिया
किसी ने निसंतानी,
किसी ने कहा अरे ,
सुबह-सुबह मुंह देख लिया
आज तो दिन ही
खराब हो गया
मां की ममता
तो
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नारी जीवन पर्यन्त कार्य रत रहती है.
धन्यवाद सर
कविताअतुकांत कविता
हिंदी मेरी पहचान
हिंदी है माथे की बिंदी
भारत मां की पहचान है
हिंदी के बिन सूना लगता
मेरा हिंदुस्तान है
सूर मीरा की पहचान है हिंदी
कैसे कान्हा माखन खाते
कैसे मीरा प्रीत निभाती
जनक नंदिनी की वरमाला
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कविताअतुकांत कविता
लिखना तो बहुत कुछ चाहतीं हूँ
पर तुम ही बताओ..
तुम्हें कागज पर उतारू कैसे,
प्यार तो बहुत करती हूँ तुमसे
पर इस एहसास को जताऊ कैसे
सोचती तो रहती हूँ तुम्हें हरपल
पर तुम्हारा साथ निभाऊं कैसे,,
खुद पर नही
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लेखअतुकांत कविता
साक्षरता दिवस
आज हम सभी विश्व साक्षरता दिवस मना रहे हैं ।
और धीरे-धीरे मानवता
भूलते जा रहे हैं ।
क्या फायदा ऐसे किताबी ज्ञान का
जहां संवेदना ही मरती जा रही है।
किसी को परेशान देख हमारा दिल नहीं
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एकदम जबरदस्त कटाक्ष के साथ रचना सच में ऐसे ज्ञान का क्या फायदा जो किसी का भला हो न कर सके
कहानीअन्य
दीपा बहुत हंसमुख
और साफ दिल वाली लड़की थी, सब की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढना तो जैसे उसने अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था
दोस्त ,परिवार ,रिश्तेदार,
किसी का भी बर्थडे एनिवर्सरी,
तो उसके दिमाग के कंप्यूटर
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कविताअन्य
उस पार क्षितिज के जाना है
मन की कोमल पंखुड़ियों पर
जब हुआ कुठाराघात कोई
तब अश्रु की धारा बह निकली,
जब रहा न मेरे साथ कोई
अब खुद का संबल बन जाना है
उस पार क्षितिज के जाना है
जिन संग खुद का नाता जोड़ा
उन
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कविताअन्य
अबकी बार कन्हैया
मेरे घर भी आ जाना
कब से बाट निहारु मोहन
अबकी ना तरसाना
अबकी बार कन्हैया
मेरे घर भी आ जाना
माखन मिश्री सजा के थाली
कैसे भोग लगाऊ मैं
मां की ममता तड़प रही है
कैसे छतिया लिपटाऊं मैं
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कविताअन्य
शब्दाक्षरी अगस्त आयोजन २०२०
बारिश की फुहार आते ही,
तुम्हारा चेहरा याद आ जाता है।
कितनी खुश थी मैं
तुमसे मिलने के लिए
उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देख
मेरे मन का मयूरा भी नाचने लगा था,
उधर एक बिजली
खुले
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बहुत सुन्दर इजहार, सच यही तो है पहला प्यार
धन्यवाद मैम