कविताअन्य
अबकी बार कन्हैया
मेरे घर भी आ जाना
कब से बाट निहारु मोहन
अबकी ना तरसाना
अबकी बार कन्हैया
मेरे घर भी आ जाना
माखन मिश्री सजा के थाली
कैसे भोग लगाऊ मैं
मां की ममता तड़प रही है
कैसे छतिया लिपटाऊं मैं ।
ना जाने कितनी है बेड़ियां
कितने ताले जीवन में ,
रोज बकासुर कागासुर
घेरे रहते हैं जीवन में ।
तुम बिन कोई बेड़िया तोड़ न पाए,
टूटे हुए दिल को जोड़ न पाए
मेरे मोहन मेरे कान्हा
एक-एक पल अब बीता जाए ।
आके दरश दिखा जा छलिया
कब तक यूं भरमायेगा
मेरी ममता तरस रही है
कब आके गले लगायेगा
अबकी बार कन्हैया
मेरे घर भी आ जाना ।।।।।।।
@अंजनी त्रिपाठी
स्वरचित मौलिक
11/08/2020