Writer & Singer
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लेख | अन्य | 5th |
London is the capital city of England.
कवितागजल
क्यों मेरे लब ख़ामोश हैं?
क्यों दिल में मचा है शोर?
ये सूखे मेरे होंठ क्यों है?
क्यों तूंफा है चारो ओर?
क्यों मन को कुछ भाता नहीं?
कोई अपना नज़र आता नहीं।
क्यों काले बादल छाए हैं?
क्यों बन के सजा
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कवितागजल, गीत
तेरी राहों में मैं पत्थर,
अब और नहीं बनना चाहूं।
तेरे सीने पर बन खंज्जर,
अब और नहीं रहना चाहूं।
मैंने तो बिन सोचे समझे,
सिर्फ तुम्ही से प्यार किया।
पर तुम समझ सकी न मुझको,
रुसवा मुझको यार किया।
तेरी
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कवितागीत
जिसकी चाहत थी मुझको,
वो आज मिली है।
मन के कण-कण में बन गुल,
वो आज खिली है।
गूंज रही है बनकर स्वर,
वो अंतरमन में।
धड़क रही है बनकर दिल,
दिल की धड़कन में।
मैं पागल हूं उसके ख़ातिर,
अब होश नहीं है।
उससे
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लेखअन्य
जिस मोहब्बत पर मुझे नाज़ था,
आज पता चला कि बस एक मज़ाक था।
कवितागजल
खता किसी और की थी, गिला मुझसे किया।
चोट किसी और से मिली, रास्ते से हटा मुझको दिया।
मैंने तो सिद्दत से तुम्हें चाहा, और चाहेंगे हरदम।
वो बात अलग है..
भुलाना ज़माने को था, और भुला मुझको दिया।
कविताअन्य
हमें भी नाज़ था अपनी मोहब्बत पर,
जब उन्हें बदलते देखा, तो दिल टूट गया।
कविताअन्य
वो खुशी कहीं खो सी गई है,
तेरे जाने के बाद।
जो खुशी मिलती थी दिल को,
तेरे मुस्कुराने के बाद।।
कविताअन्य
जमाने की नज़र में..
जमाने की नज़र में, मैं भी गुनहगार हूं
मुझेसे किसी को प्यार है, और मैं भी किसी का प्यार हूं
ख्वाबों में मेरे खोई वो, जागी है सारी रातों में
खुद से सवाल कर - कर वो, उलझी है खुद की बातों
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कविताअन्य
कलाकार बनूं, या ना भी बनूं।
पर इंसान तो अच्छा बन जाऊं।
हॅंस कर मैं चुरा लूं ग़म सारा..
चाहूं बस यही, हरपल चाहूं।।
- आकाश त्रिपाठी (जानू)
कविताअन्य
कितना सताती हैं यादें तेरी,
जब-जब अकेला होता हूं मैं।
कैसे दिखाऊं मैं हाल-ए-जिगर,
छुप - छुप कर तन्हा रोता हूं मैं।।
- आकाश त्रिपाठी (जानू)
कवितागजल
उस पल का क्या बखान करूँ,
जिस पल उसका दीदार किया।
वो पल मैं कैसे बतलाऊं,
किस पल मैं उससे प्यार किया।
जब भीगी-भीगी जुल्फों ने,
जब बिन काज़ल की आँखों ने,
जब मीठी-मीठी बातों ने,
था उस पल मुझपे वार किया।
वो
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कवितागजल
आज मिलेगी वो मुझसे, मिलने मुझे बुलाया है ।
शायद, आज उसे मेरा वो पहला प्यार याद आया है ।
एक पल था, जब साथ-साथ हम, दोनो खेला करते थे ।
एक पल था, जब साथ-साथ हम, मेला जाया करते थे ।
एक पल था, जब वो सर पर, ऊंगुलिया
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बहुत ही सुंदर बचपन का पहला प्रेम 👌🏻
धन्यवाद् जी 😊🙏
कविताअन्य
तेरी दरियादिली का बखान कैसे करूँ,
जो तू ज़ख्म पे ज़ख्म, दिल खोल के लुटा देती है ।
-आकाश त्रिपाठी (जानू)
कवितागजल
क्युं होंठों पर है ख़ामोशी, क्युं मायूसी सी छाई है
बोलो न ज़रा कुछ बोलो न, क्युं आँख तेरी भर आयी है
किस सोच में खोये बैठे हो, किस याद में डूबे हो आख़िर
क्या दिल पे लगी है चोट कोई, या सीने में उठी तन्हाई
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कवितागजल
कल मिलोगी जब तुम मुझसे,
तो शायद मैं कुछ कह पाऊं।
हो सकता है ऐसा भी,
कि कहते-कहते रुक जाऊं।
पर दिल की सारी बातें,
मेरी ये आंखें बोलेंगी।
जब तेरी प्यारी दो आंखें,
दिल का दरवाजा खोलेंगी।
मेरी लफ़्ज़ों
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कविताअन्य
खुश है वो देखो कितना,
मेरे टूटने के बाद ।
देखा भी न मुड के पीछे,
मेरे रूठने के बाद ।
-आकाश त्रिपाठी (जानू)
कवितागजल
रो पड़ता हूं ये सोच-सोच,
किस हाल में जीती होगी तुम
होकर तन्हा, हो होकर हताश,
मेरी याद में होती होगी गुम
सुनो जान न रुठो ऐसे
मैं तो हरपल हूं पास तेरे
आंखें मूंदो, महसूस करो
तेरे हांथों में हैं हाथ मेरे
ना
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लेखअन्य
मैं अपने जज़्बात लिखूं,
या, मैं अपने हालात लिखूं।
मैंने तो मोहब्बत दिल से किया,
फिर मैं, क्यूं ? अपनी औकात लिखूं।
मोहब्बत की शुरुआत लिखूं ,
या उसकी बातें खास लिखूं।
पर जो चोट लगी है दिल पर आज ,
इस दिल
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लेखअन्य
क्यूं बयां करूं, मैं कैसा हूं
मैं जानता हूं, मैं जैसा हूं।
मुझे नहीं सफाई देनी है,
मुझे नहीं गवाही देनी है,
मैं जैसा हूं सब जानता हूं।
मैं खुद को खूब पहचानता हूं,
मैं सही हूं, खुद की नज़रों में।
मैं
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लेखअन्य
था वहम मेरा, कि वो भी प्यार करते हैं।
चाहत भरे दिल से, वो इन्त्ज़ार करते हैं।
वो फ़िर जाएंगे फ़िर, ये सोचा नहीं मैंने,
मतलब के बने लोग, कहाँ प्यार करते हैं।
- आकाश त्रिपाठी (जानू)
लेखअन्य
लोग हमसे कुछ इस कदर जलने लगे हैं
महफ़िल खुद की सजा कर, चर्चे हमारे करने लगे हैं
खुश हूँ मैं ये जानकर.. कि नफरत से ही सही,
पर उनकी जुबां पर मेरा नाम तो है
वैसे तो निठल्ले थे वो,
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लेखअन्य
हैं शिकायतें बहुत इस ज़माने को मुझसे,
पर वक्त ज़ाया करना मुझे आता नहीं।
- आकाश त्रिपाठी (जानू)
कवितागजल
मोहब्बत की कुछ बूंदें, यूँ ही लुटा देता हूँ मैं।
उसके हर सितम को, हस कर भुला देता हूँ मैं |
माना की उसे गुरूर है, अपने हसीं होने का..
दिल की प्यारी बातों से, दिल फिर भी चुरा लेता हूँ मैं।।
- आकाश त्रिपाठी
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कविताअन्य
वो भी एक दौर था..
जब माँ के आँचल में आकर,
हम छुप जाया करते थे |
वो भी एक दौर था..
जब अपनी तोतली भाषा में,
माँ को समझाया करते थे |
वो भी एक दौर था..
जब लगा कर माथे पर काज़ल,
माँ मुझको चूमा करती थी |
वो भी एक दौर
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सुंदर रचना आकाश जी मगर मेरे ख्याल से इसे लेख की अपेक्षा कविता कहना ज्यादा उचित होगा
जी , बहुत बहुत धन्यवाद! 🙏🥰
लेखअन्य
गुनाह हो गया है, इज़हार करना
हुई है मोहब्बत , मुझे माफ करना
समझा है सब ने, सच को भी झूठा
क्योंकी सच ही जता कर, है लोगों ने लूटा
है दिल में मोहब्बत, उसके लिए पर
मैं कैसे कहूँ, जो समझे मुझे वो
डरता हूँ, कहीं
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लेखअन्य
दिल की लिखूं, तो क्या-क्या लिखूं?
क्या भूलूं , क्या याद करूं?
तेरी बातें, या तेरा चेहरा,
या फिर तेरा, अंदाज़ लिखूं?
तेरी आंखों की मस्ती को,
या जुल्फ़ों में ढली वो रात लिखूं?
लिख दूं गर कहो तो, दिल मेरा,
या
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लेखअन्य
चलो मेरे साथ
चलो मेरे साथ, अब दूर जाना नहीं।
मैं सिर्फ़ तुम्हरा हि हूँ, ये भूल जाना नहीं।
रूठो मगर, मान जाया करो।
ये हक़ है तुम्हारा, न घबराया करो।
उठो,
चलो मेरे साथ, ज़िद न करो मान जाया करो।
मैं सिर्फ़
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लेखअन्य
ऐ कलम मेरी, मेरे अल्फाज़ लिख दो।
दिल में दबी जो बात है, वो राज़ लिख दो।
कहने को हूं बेचैन, पर कैसे कहूं मैं..
अनकही वो बात, वो आवाज़ लिख दो।।
जिंदगी का ग़म, उन टूटे दिलों को।
खुशियों का वो कल, उन बीते पलों
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