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Sahitya Arpan - Basudeo Agarwal "Naman"
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Basudeo Agarwal "Naman"

'Naman'

नाम - बासुदेव अग्रवाल "नमन"
जन्म - 28 अगस्त, 1952
निवास - तिनसुकिया (असम)

रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी आदि।

सम्मान - देश की प्रतिष्ठित वेब साइट पर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।

Blog -
www.nayekavi.blogspot.com

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    Section Genre Rank
    कविता छंद Second
    कविता भजन 4th

    कविताछंद

    रास छंद "कृष्णावतार"

    • Edited 2 years ago
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    • 173
    • 5 Mins Read

    रास छंद "कृष्णावतार"

    हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ।
    घोर घटा में, कड़क रहीं थी, दामिनियाँ।
    हाथ हाथ को, भी नहिं सूझे, तम गहरा।
    दरवाजों पर, लटके ताले, था पहरा।।

    यमुना मैया, भी ऐसे में, उफन पड़ी।
    विपदाओं
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    कविताछंद

    बरवै छंद "शिव स्तुति"

    • Edited 2 years ago
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    • 153
    • 4 Mins Read

    बरवै छंद "शिव स्तुति"

    सदा सजे शीतल शशि, इनके माथ।
    सुरसरिता सर सोहे, ऐसो नाथ।।

    सुचिता से सेवत सब, है संसार।
    हे शिव शंकर संकट, सब संहार।

    आक धतूरा चढ़ते, घुटती भंग।
    भूत गणों को हरदम, रखते संग।।

    गले रखे
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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

    Sunder ..!

    कविताछंद

    प्लवंगम छंद "सरिता"

    • Edited 2 years ago
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    • 170
    • 6 Mins Read

    प्लवंगम छंद "सरिता"

    भूधर बिखरें धरती पर हर ओर हैं।
    लुप्त गगन में ही कुछ के तो छोर हैं।।
    हैं तुषार मंडित जिनके न्यारे शिखर।
    धवल पाग भू ने ज्यों धारी शीश पर।।

    एक सरित इन शैल खंड से बह चली।
    बर्फ विनिर्मित
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    कविताछंद

    कण्ठी छंद "सवेरा"

    • Edited 2 years ago
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    • 167
    • 2 Mins Read

    कण्ठी छंद

    हुआ सवेरा।
    मिटा अँधेरा।।
    सुषुप्त जागो।
    खुमार त्यागो।।

    सराहना की।
    बड़प्पना की।।
    न आस राखो।
    सुशान्ति चाखो।।

    करो भलाई।
    यही कमाई।।
    सदैव संगी।
    कभी न तंगी।।

    कुपंथ चालो।
    विपत्ति पालो।।
    सुपंथ
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    Anil Mishra Prahari

    Anil Mishra Prahari 2 years ago

    Bahut sunder.

    कविताछंद

    कामदा छंद

    • Edited 2 years ago
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    • 267
    • 4 Mins Read

    कामदा छंद

    स्वार्थ में सनी राजनीति है।
    वोट नोट से आज प्रीति है।
    देश खा रहे हैं सभी यहाँ।
    दौर लूट का देखिये जहाँ।।

    त्रस्त आज आतंक से सभी।
    देश की न थी ये दशा कभी।
    देखिये जहाँ रक्त-धार है।
    लोकतंत्र भी
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    कामदा छंद ,<span>छंद</span>
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    Kamlesh  Vajpeyi

    Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

    बहुत बधाई

    कविताछंद

    चौपइया छंद *राखी*

    • Edited 2 years ago
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    • 107
    • 6 Mins Read

    (चौपइया छंद)

    पर्वों में न्यारी, राखी प्यारी, सावन बीतत आई।
    करके तैयारी, बहन दुलारी, घर आँगन महकाई।।
    पकवान पकाए, फूल सजाए, भेंट अनेकों लाई।
    वीरा जब आया, वो बँधवाया, राखी थाल सजाई।।

    मन मोद मनाए, बलि बलि
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    चौपइया छंद  *राखी*,<span>छंद</span>
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    कविताछंद

    गीतिका छंद "चातक पक्षी"

    • Edited 2 years ago
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    • 229
    • 6 Mins Read

    (गीतिका छंद)

    मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।
    मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।
    देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।
    बूँद पाने स्वाति की पक्षी हृदय हैं आस में।।

    पूर्ण दिन किल्लोल करता
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    Kumar Sandeep

    Kumar Sandeep 2 years ago

    रचना के संग रचना लिखने की जानकारी भी हार्दिक आभार सर।

    कविताछंद

    शालिनी छन्द "राम स्तवन"

    • Edited 2 years ago
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    • 167
    • 4 Mins Read

    (शालिनी छन्द)

    हाथों में वे, घोर कोदण्ड धारे।
    लंका जा के, दैत्य दुर्दांत मारे।।
    सीता माता, मान के साथ लाये।
    ऐसे न्यारे, रामचन्द्रा सुहाये।।

    मर्यादा के, आप हैं नाथ स्वामी।
    शोभा न्यारी, रूप नैनाभिरामी।।
    चारों
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    Gita Parihar

    Gita Parihar 2 years ago

    वाह,वाह बेहतरीन रचना!

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत सुंदर 👌🏻

    Basudeo Agarwal "Naman"2 years ago

    आभार

    कविताछंद

    पुट छंद "रामनवमी"

    • Edited 2 years ago
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    • 207
    • 4 Mins Read

    (पुट छंद)

    नवम तिथि सुहानी, चैत्र मासा।
    अवधपति करेंगे, ताप नासा।।
    सकल गुण निधाना, दुःख हारे।
    चरण सर नवाएँ, आज सारे।।

    मुदित मन अयोध्या, आज सारी।
    दशरथ नृप में भी, मोद भारी।।
    हरषित मन तीनों, माइयों का।
    जनम
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    कविताछंद

    पुण्डरीक छंद "राम-वंदन"

    • Edited 2 years ago
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    • 144
    • 5 Mins Read

    (पुण्डरीक छंद)

    मेरे तो हैं बस राम एक स्वामी।
    अंतर्यामी करतार पूर्णकामी।।
    भक्तों के वत्सल राम चन्द्र न्यारे।
    दासों के हैं प्रभु एक ही सहारे।।

    माया से आप अतीत शोक हारी।
    हाथों में दिव्य प्रचंड चाप
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    कविताछंद

    बिंदु छंद "राम कृपा"

    • Edited 2 years ago
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    • 112
    • 4 Mins Read

    (बिंदु छंद)

    सत्यसनातन, ये है ज्ञाना।
    भक्ति बिना नहिं, हो कल्याना।।
    राम-कृपा जब, होती प्राणी।
    हो तब जागृत, अन्तर्वाणी।।

    चक्षु खुले मन, हो आचारी।
    दूर हटे तब, माया सारी।।
    प्रीत बढ़े जब, सद्धर्मों में।
    जी
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    शिवम राव मणि

    शिवम राव मणि 2 years ago

    वाह सुंदर

    छंद, गीत

    लावणी छंद आधारित गीत "आओ सब मिल"

    • Edited 2 years ago
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    • 176
    • 4 Mins Read

    लावणी छंद आधारित गीत

    आओ सब मिल कर संकल्प करें।
    चैत्र शुक्ल नवमी है कुछ तो, नूतन आज करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

    मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
    सिखलाएँ इस में रहना हम, तोड़े कोई इसको
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    कवितागजल

    ग़ज़ल

    • Edited 3 years ago
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    • 171
    • 4 Mins Read

    ग़ज़ल (आपने जो पौध रोपी)

    बह्र:- 2122  2122  2122  212

    आपने जो पौध रोपी वो शजर होने को है,
    देश-हित के फैसलों का अब असर होने को है।

    अब तलक तय जो सफ़र की ख़ार ही उसमें मिले,
    आपके साये में अब आसाँ डगर होने को है।

    अपना
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    ग़ज़ल,<span>गजल</span>
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    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    सुंदर

    Basudeo Agarwal "Naman"3 years ago

    आभार

    कविताभजन, छंद, गीत

    सार छंद आधारित गीत "शिव बिन कौन"

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 328
    • 3 Mins Read

    सार छंद आधारित गीत

    शिव बिन कौन सहारा मेरा।
    आशुतोष तुम औघड़दानी, एक आसरा तेरा।।

    मैं अनाथ हूँ निपट अकेला, चारों तरफ अँधेरा।
    जीवन नौका डोल रही है, जगत भँवर ने घेरा।।
    शिव बिन कौन सहारा मेरा।।

    काम क्रोध
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    Gita Parihar

    Gita Parihar 2 years ago

    ऊं नमः शिवाय,वाह!

    कविताछंद

    कुण्डलियाँ "बसंत और पलाश"

    • Edited 2 years ago
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    • 195
    • 5 Mins Read

    (कुण्डलियाँ छंद)

    दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
    मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
    आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
    संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
    लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
    लख बसंत
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    शिवम राव मणि

    शिवम राव मणि 2 years ago

    सुंदर

    कवितादोहा

    फागुन दोहे

    • Edited 2 years ago
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    • 163
    • 3 Mins Read

    (दोहा छंद)

    फागुन की सब पे चढ़ी, मस्ती अपरम्पार।
    बाल वृद्ध सब झूम के, रस की छोड़े धार।।

    फागुन में मन झूम के, गाये राग मल्हार।
    मधुर चंग की थाप है, मीठी बहे बयार।।

    दहके झूम पलाश सब, रतनारे हो आज।
    मानो खेलन
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    फागुन दोहे,<span>दोहा</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    👌🏻

    Basudeo Agarwal "Naman"3 years ago

    आभार