नाम - बासुदेव अग्रवाल "नमन"
जन्म - 28 अगस्त, 1952
निवास - तिनसुकिया (असम)
रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी आदि।
सम्मान - देश की प्रतिष्ठित वेब साइट पर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
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नवरात्रि 2021 | Certificate |
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Section | Genre | Rank |
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कविता | छंद | |
कविता | भजन | 4th |
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कविताछंद
रास छंद "कृष्णावतार"
हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ।
घोर घटा में, कड़क रहीं थी, दामिनियाँ।
हाथ हाथ को, भी नहिं सूझे, तम गहरा।
दरवाजों पर, लटके ताले, था पहरा।।
यमुना मैया, भी ऐसे में, उफन पड़ी।
विपदाओं
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कविताछंद
बरवै छंद "शिव स्तुति"
सदा सजे शीतल शशि, इनके माथ।
सुरसरिता सर सोहे, ऐसो नाथ।।
सुचिता से सेवत सब, है संसार।
हे शिव शंकर संकट, सब संहार।
आक धतूरा चढ़ते, घुटती भंग।
भूत गणों को हरदम, रखते संग।।
गले रखे
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कविताछंद
प्लवंगम छंद "सरिता"
भूधर बिखरें धरती पर हर ओर हैं।
लुप्त गगन में ही कुछ के तो छोर हैं।।
हैं तुषार मंडित जिनके न्यारे शिखर।
धवल पाग भू ने ज्यों धारी शीश पर।।
एक सरित इन शैल खंड से बह चली।
बर्फ विनिर्मित
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कविताछंद
कण्ठी छंद
हुआ सवेरा।
मिटा अँधेरा।।
सुषुप्त जागो।
खुमार त्यागो।।
सराहना की।
बड़प्पना की।।
न आस राखो।
सुशान्ति चाखो।।
करो भलाई।
यही कमाई।।
सदैव संगी।
कभी न तंगी।।
कुपंथ चालो।
विपत्ति पालो।।
सुपंथ
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कविताछंद
(चौपइया छंद)
पर्वों में न्यारी, राखी प्यारी, सावन बीतत आई।
करके तैयारी, बहन दुलारी, घर आँगन महकाई।।
पकवान पकाए, फूल सजाए, भेंट अनेकों लाई।
वीरा जब आया, वो बँधवाया, राखी थाल सजाई।।
मन मोद मनाए, बलि बलि
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कविताछंद
(गीतिका छंद)
मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।
मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।
देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।
बूँद पाने स्वाति की पक्षी हृदय हैं आस में।।
पूर्ण दिन किल्लोल करता
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कविताछंद
(शालिनी छन्द)
हाथों में वे, घोर कोदण्ड धारे।
लंका जा के, दैत्य दुर्दांत मारे।।
सीता माता, मान के साथ लाये।
ऐसे न्यारे, रामचन्द्रा सुहाये।।
मर्यादा के, आप हैं नाथ स्वामी।
शोभा न्यारी, रूप नैनाभिरामी।।
चारों
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कविताछंद
(पुट छंद)
नवम तिथि सुहानी, चैत्र मासा।
अवधपति करेंगे, ताप नासा।।
सकल गुण निधाना, दुःख हारे।
चरण सर नवाएँ, आज सारे।।
मुदित मन अयोध्या, आज सारी।
दशरथ नृप में भी, मोद भारी।।
हरषित मन तीनों, माइयों का।
जनम
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कविताछंद
(पुण्डरीक छंद)
मेरे तो हैं बस राम एक स्वामी।
अंतर्यामी करतार पूर्णकामी।।
भक्तों के वत्सल राम चन्द्र न्यारे।
दासों के हैं प्रभु एक ही सहारे।।
माया से आप अतीत शोक हारी।
हाथों में दिव्य प्रचंड चाप
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कविताछंद
(बिंदु छंद)
सत्यसनातन, ये है ज्ञाना।
भक्ति बिना नहिं, हो कल्याना।।
राम-कृपा जब, होती प्राणी।
हो तब जागृत, अन्तर्वाणी।।
चक्षु खुले मन, हो आचारी।
दूर हटे तब, माया सारी।।
प्रीत बढ़े जब, सद्धर्मों में।
जी
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छंद, गीत
लावणी छंद आधारित गीत
आओ सब मिल कर संकल्प करें।
चैत्र शुक्ल नवमी है कुछ तो, नूतन आज करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
सिखलाएँ इस में रहना हम, तोड़े कोई इसको
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कविताभजन, छंद, गीत
सार छंद आधारित गीत
शिव बिन कौन सहारा मेरा।
आशुतोष तुम औघड़दानी, एक आसरा तेरा।।
मैं अनाथ हूँ निपट अकेला, चारों तरफ अँधेरा।
जीवन नौका डोल रही है, जगत भँवर ने घेरा।।
शिव बिन कौन सहारा मेरा।।
काम क्रोध
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कविताछंद
(कुण्डलियाँ छंद)
दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
लख बसंत
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कवितादोहा
(दोहा छंद)
फागुन की सब पे चढ़ी, मस्ती अपरम्पार।
बाल वृद्ध सब झूम के, रस की छोड़े धार।।
फागुन में मन झूम के, गाये राग मल्हार।
मधुर चंग की थाप है, मीठी बहे बयार।।
दहके झूम पलाश सब, रतनारे हो आज।
मानो खेलन
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