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Start Date 13-Apr-21
End Date 25-Apr-21
Writer | Rank | Certificate |
---|---|---|
Basudeo Agarwal "Naman" | Certificate |
Competition Information/Details
नवरात्रि चल रही हैं तो आप सभी क्यों न एक रचना माँ के उन नौ रूप पर संजोए। या फिर माँ के चरणों में नतमस्तक होकर प्रार्थना करें अपनी लेखनी के माध्यम से। आइये लिखते हैं दिए गए विषय पर।
ऐड एंट्री में जाकर अपनी रचना दर्ज कराएं।
आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
धन्यवाद
साहित्य अर्पण कार्यकारिणी
कविताअतुकांत कविता
कुष्मांडा मात
🌹🚩🌹🚩🌹🚩🌹🚩
जब नहीं जी सृष्टि किया आह्वान
सूर्य प्रभा मुख पर देदीप्यमान।
हास्य से किया सृजन संसार ।
दुष्टों का कुष्मांडा करती संघार
कल्याणी मां विश्वरूपा कहलाए
कुष्मांड बली
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कविताअतुकांत कविता, भजन
हे माता रानी!
आपका आशीर्वाद, साथ बना रहे उनके ऊपर
जो करते हैं दिन-रात अथक श्रम
प्रतिकूल क्षण में, हर मौसम में।।
हे माँ दुर्गा!
अपनी कृपा बनाएं रखिएगा उनके ऊपर
जो तपती धूप में कपकपाती ठंड में भी
हमारी
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कविताभजन
नवदुर्गा माँ जगदंबा
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चैत्र नवरात्रि नव संवत्सर,
माँ जगदंबे आयीं घर ।
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माँ शैलपुत्री का रूप निराला
चहूँ ओर फैला उजियारा ।
🌺
माँ ब्रह्मचारिणी का निर्मल स्वरूप
माँ चन्द्रघण्टा
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कवितागीत
#नमन_साहित्य_अर्पण
#आयोजन :- #नवरात्री
प्रतिभागी का नाम :- पं.संजीव शुक्ल 'सचिन'
शहर का नाम :- मुसहरवा (मंशानगर), पश्चिमी चम्पारण, बिहार
रस का नाम :- भक्ति रस
विधा:- आल्हा छंद (वीर छंद)
विधान:- 👉🏻 यह चार चरण
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जय माता दी
सादर अभिवादन स्वीकार करें सादर
बहुत खूब बहुत ही बढ़िया 👌🏻
सादर अभिवादन सहित नमन आदरणीया
कविताभजन
कर लो विनती मेरी अब स्वीकार मेरी माँ
तेरे चरणों में लाखों प्रणाम मेरी माँ 🙏
मईया का मुखड़ा बड़ा प्यारा प्यारा
देता टूटे दिलों को सहारा 🤝
अब बिगड़ी मेरी तू संवार मेरी माँ
कर लो विनती मेरी अब
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कविताअतुकांत कविता
नवरात्र आए हैं फिर इस बार
पर महामारी का हाहाकार,
मैंने यह संकल्प लिया है
अपना धर्म निभाऊंगी,
मां का लहंगा नहीं खरीदा
ना अपनी चूड़ी श्रृंगार,
भूखे प्यासों का चेहरा
आंखों में आए बारंबार,
छोटा सा जो
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कविताअतुकांत कविता
शक्तियों की प्रतीक देवियां
नवरात्रि में ये महा देवियां
निज स्वरूपों के देती संदेश
इनके आचरण के पालन से
सुधर जाता अपना परिवेश
पार्वती कर देती है परिवर्तन
विस्तार को बना देती है सार
पीहर व ससुराल
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कविताअतुकांत कविता
माँ त्रिपुर सुंदरी
जीवन में तुम्हारी स्पर्शमणि से
परम तत्व की प्रतिच्छाया
प्रकाशित होती
और संसार चक्र के
धुँधियाले में भयविह्वल
साधनारत मैं
जीवनोत्सर्ग को आतुर
मुक्ति की सँकरी पगडंडी पर
चलने
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