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Sahitya Arpan - Amrita Pandey

कविताअतुकांत कविता

क्यूंकि तू ग़म है...

  • Edited 2 years ago
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  • 142
  • 2 Mins Read

इत्तेफाक है महज़, मुझसे मिलना तेरा
मैं खिलखिलाती सुबह, तू घनी रात का डेरा,
मैं गुनगुनाती धूप, तू तम-स्याह  का घेरा
मैं आस की किरण, तू निशा-तृष्णा का बसेरा,
नहीं जानता मुस्कुराना, गीत गाना, गुनगुनाना
मैं
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क्यूंकि तू ग़म है...,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत ख़ूब..!

लेखआलेख

आइए, मन के सूरज को जगाएं।

  • Edited 2 years ago
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  • 324
  • 8 Mins Read

'आइए, मन के सूरज को जगायें।'

सुप्त पड़े दिल के तारों को झंकृत कर दें,
आइये, हर दिल को खुशियों से अलंकृत कर दें...।
   सावन का मौसम आने वाला है। सूरज की गरम उष्मा के बीच बारिश की बूंदे तन को राहत देती है‌।
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आइए, मन के सूरज को जगाएं।,<span>आलेख</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत सुन्दर, सामयिक और प्रेरक..!

Meeta Joshi

Meeta Joshi 2 years ago

समयानुकूल महत्त्वपूर्ण लेख👏👏👍

Amrita Pandey2 years ago

धन्यवाद मीता जी।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 2 years ago

बहुत अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर 🙏🏻

Amrita Pandey2 years ago

पढ़ते रहिए। अच्छा महसूस करते रहिए।😊

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत सुन्दर और आज की स्थितियों में प्रेरणादायक..!

Amrita Pandey2 years ago

धन्यवाद सर, आपकी प्रतिक्रियाएं मेरा उत्साहवर्धन करती हैं।

कविताअतुकांत कविता

जी चाहता है।

  • Edited 2 years ago
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  • 106
  • 3 Mins Read

जी चाहता है कभी कभी
अलसाई सी पड़ी रहूं बिस्तर में
कुछ और देर सोती रहूं
सूरज के निकलने तक
भले नींद खुल भी गई हो
पर आंखें मूंदकर लेटी रहूं

बिस्तर में ही चाय दे जाए कोई
मां के घर की तरह कभी-कभी....
मगर
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जी चाहता है।,<span>अतुकांत कविता</span>
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लेखआलेख

सकारात्मकता की नमी

  • Edited 3 years ago
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  • 152
  • 10 Mins Read

पॉजिटिविटी यानि सकारात्मकता एक सुंदर और सुखद शब्द है। हमें सदा सकारात्मक व्यवहार बनाए रखना चाहिए। नकारात्मक व्यक्ति, नकारात्मक बातें और नकारात्मक व्यवहार का हमेशा दुष्प्रभाव देखा गया है।
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सकारात्मकता की नमी,<span>आलेख</span>
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Meeta Joshi

Meeta Joshi 3 years ago

👍👍

Amrita Pandey2 years ago

😊🌺🌺

Amrita Pandey3 years ago

😊🌺

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर और सारगर्भित..!

Amrita Pandey3 years ago

सादर धन्यवाद।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर पोस्ट आपने सभी के मन की बात कह दी।

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद आपका।

कविताअतुकांत कविता

अब जाग ए इन्सान।

  • Edited 3 years ago
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  • 209
  • 6 Mins Read

अब जाग इंसान।

फिर पतंग उड़ने लगी हैं आसमान में
बच्चे दिखने लगे फिर ज़रा परेशान से,
स्कूल जाने की उम्मीद धूमिल होने लगी
आना जाना कहीं नहीं,बस कैद हो गए घर में।

फिर कर्फ्यू लगने लगा है शाम से
सलामती
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अब जाग ए इन्सान।,<span>अतुकांत कविता</span>
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Amrita Pandey

Amrita Pandey 3 years ago

सर धन्यवाद।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

आज की वास्तविकता दर्शाती.. अच्छी रचना..!

कविताअतुकांत कविता

बच्चों से बतियां

  • Edited 3 years ago
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  • 290
  • 5 Mins Read

बाहर कोरोना की मार
बच्चों रहना होशियार
वायरस है यह एक नन्हा सा
मगर करे छुप-छुपकर वार......

बार-बार हाथ तुम धोना
दूर रहेगा जिद्दी कोरोना
बिना काम बाहर मत जाना
कोई चीज भीतर ना लाना......

स्कूल बंद है पार्क
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बच्चों से बतियां,<span>अतुकांत कविता</span>
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Amrita Pandey

Amrita Pandey 2 years ago

धन्यवाद 😊

Rashmi Sharma

Rashmi Sharma 3 years ago

वाह

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत बढ़िया

Amrita Pandey2 years ago

धन्यवाद 😊

कविताअतुकांत कविता

मां से गुहार

  • Edited 3 years ago
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  • 394
  • 3 Mins Read

नवरात्र आए हैं फिर इस बार
पर महामारी का हाहाकार,
मैंने यह संकल्प लिया है
अपना धर्म निभाऊंगी,
मां का लहंगा नहीं खरीदा
ना अपनी चूड़ी श्रृंगार,
भूखे प्यासों का चेहरा
आंखों में आए बारंबार,
छोटा सा जो
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मां से गुहार,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

जै मां🙏

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

वाह बहुत खूब

Amrita Pandey3 years ago

आभार नेहा जी

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर भाव..!

Amrita Pandey3 years ago

आभार सर।🙏

कहानीलघुकथा

आ घर लौट चलें...

  • Edited 3 years ago
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  • 189
  • 8 Mins Read

एक नन्हे से वायरस ने तमाम जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी थी। पार्वती के लिए कोरोना बिल्कुल नया नाम था, पर वह कुछ कुछ समझ रही थी कि क्या परिणाम होने वाला है,जब उस दिन उसके पति ने घर आकर कहा कि कल से फैक्ट्री
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आ घर लौट चलें... ,<span>लघुकथा</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

करौना की विभीषिका के भयावह परिणाम..! लौट जाना ही एकमात्र विकल्प.

कविताअतुकांत कविता

कविता का दरबार

  • Edited 3 years ago
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  • 99
  • 4 Mins Read

यूं ही चलते चलते एक दिन
पहुंचे हम कविता की नगरी
सुंदर सा दरबार सजा था
कवियों का अंबार लगा था,

मन में भी जागा उत्साह
रुकते रुकते कदमों से
धीरे-धीरे आगे बढ़कर
पहुंच गए हम भी सीमा द्वार,

भिन्न भाव भंगिमा
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कविता का दरबार,<span>अतुकांत कविता</span>
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लेखआलेख

मेरा दसवीं का परीक्षाफल

  • Edited 3 years ago
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  • 120
  • 10 Mins Read

आज एक बहुत पुरानी घटना जो डायरी के पन्नों में लिखी थी आप सभी के साथ साझा कर रही हूं।   
          हर वर्ष जब भी दसवीं और बारहवीं  के परीक्षा परिणाम आते हैं तो कहीं खुशी कहीं गम का माहौल छा जाता है। मुझे
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मेरा दसवीं का परीक्षाफल,<span>आलेख</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

वास्तव में. नाम न मिलने से आघात लगा होगा. गनीमत है, आपने उसे उचित प्रकार से सह लिया और प्रतीक्षा की. पहले परिणाम ऐसे ही आते थे. मेरी प्रथम श्रेणी तो आयी लेकिन मार्क्स आशा से कुछ विषय में कम, मैं डबडबायी आंखों से घर आया. 😊रास्ते मेंर'' झील भी पड़ी..! स्कालरशिप भी मिल गयी थी.

Amrita Pandey3 years ago

जी, कई बार अधीरता से दुष्परिणाम भी सामने आ जाते हैं लेकिन यह ईश्वर की कृपा रहे कि शायद इस तरह का कोई भी विचार उस वक्त मन में नहीं आया और घर वालों के सहयोग पूर्ण रवैये ने भी शायद काम किया

लेखआलेख

जीवंतता के पर्याय हमारे लोक पर्व

  • Edited 3 years ago
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  • 208
  • 10 Mins Read

उत्तराखंड एक छोटा सा पर्वतीय राज्य है उमंग और उल्लास से भरा हुआ। यहां पर कई स्थानीय त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें फूलदेई चैत के महीने में मनाया जाने वाला एक बालपर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार
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जीवंतता के पर्याय हमारे लोक पर्व,<span>आलेख</span>
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कविताअतुकांत कविता

आज कुछ नया लिखूंगी

  • Edited 3 years ago
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  • 177
  • 4 Mins Read

आज कुछ नया लिखूंगी

बहुत लिखा सजनी पर, साजन पर
मौसम पर, बादल पर
चूड़ी, बिंदिया, घूंघट पर
रिश्तो की मर्यादा पर,
आज कुछ नया लिखूंगी....

दहेज रूपी दानव
जो सुरसा की तरह
मुंह खोले आए दिन
निगल जाता है
मेरी
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आज कुछ नया लिखूंगी,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

sach hai Dahejpratha ko khatam karne ke liye Shiksha Anivarya hai

Amrita Pandey3 years ago

Ji..

कहानीलघुकथा

संकल्प

  • Edited 3 years ago
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  • 226
  • 7 Mins Read

सामने लगे बड़े से पर्दे में किसी नृत्यांगना का नृत्य चल रहा था। हरिप्रिया चाची अपने अतीत को याद करने लगीं, जब छोटी सी उम्र मे ही छुप छुप कर बहुत अच्छा मृत्य करने लगी थीं। उनकी इस रूचि को देखते हुए 
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संकल्प,<span>लघुकथा</span>
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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद।

कवितागीत

मधुर मिलन

  • Edited 3 years ago
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  • 148
  • 6 Mins Read

ना जाने किसकी तलाश थी
किससे बातें करता था तनहाई में
दफ्न हो गयीं थीं खुशियां सारी
  मानो सागर की गहराई में,
ना दिन को सुकून था, ना रात में चैन
उदास- उदास  से दिन थे,
तन्हा तन्हा रातें,
अपने ही खयालों
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मधुर मिलन,<span>गीत</span>
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Ritu Garg

Ritu Garg 3 years ago

बहुत बढ़िया

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत ही खूबसूरत मेम..!👌👌

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर रचना आदरणीया

कविताअतुकांत कविता

परिवर्तन

  • Edited 3 years ago
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  • 119
  • 5 Mins Read

‌ परिवर्तन

यह बसंत......
कुछ अलग है ना उस बसंत से।
जब डोलते थे पात से हम,
झूमकर अनंत में
सागर की गहराई,
आकाश की ऊंचाई
मानो हम ही हम थे...
पीला अंबर, पीत पताका
पकड़े आंचल स्वर्णलता का
पाने को  जग सारा आतुर
कितने
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परिवर्तन,<span>अतुकांत कविता</span>
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कहानीप्रेरणादायक

इक़रार

  • Edited 3 years ago
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  • 160
  • 10 Mins Read

ऑफिस में लंच टाइम था। अंजलि डाइनिंग हॉल में बैठी थी। जाड़े का मौसम था और इन दिनों सर्दी कुछ ज़्यादा ही थी। वह कैबिन में जाकर गोभी पराठे ऑर्डर दे चुकी थी। वह सोच ही रही थी कि आज चाय की जगह कॉफी पी ली
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इक़रार,<span>प्रेरणादायक</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

एक ख़ूबसूरत और सुखद इकरार..!!

लेखआलेख

कुमाऊं का उत्तरायण पर्व

  • Edited 3 years ago
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  • 216
  • 8 Mins Read

कुमाऊं का उत्तरायणी पर्व

मकर संक्रांति को देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इसे उत्तरायणी कहते हैं। क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में
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कुमाऊं का उत्तरायण पर्व,<span>आलेख</span>
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कहानीलघुकथा

मेरा चांद

  • Edited 3 years ago
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  • 223
  • 6 Mins Read

पेंटिंग का बहुत शौक था रोहन को। इतना शौक कि पेंटिंग को ही अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। इसके अलावा कुछ और उसे सोचता ही नहीं था। जब भी देखो, प्रकृति के विभिन्न नज़ारों को निहारता रहता और अपनी नज़रों
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मेरा चांद,<span>लघुकथा</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अपात्रा से प्रेम..!

कविताअतुकांत कविता

अलविदा 2020

  • Edited 3 years ago
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  • 190
  • 6 Mins Read

खट्टी मीठी यादों का संसार रच गया
ये जाने वाला साल इतिहास रच गया
इंसान को बना कैदी घर में हलकान कर गया
मेहमां बन आया था कोविड, अब तक ठहर गया,

सुख का पलड़ा कुछ हल्का, दुख का भारी कर गया
बैठे बिठाए मौत
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अलविदा 2020,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर, लयबद्ध और सटीक रचना.! 2020.. बहुत कुछ ले गया और प्रकृति के कुछ सन्देश दे गया.. जैसे समय की गति ठहर गयी हो..! ..

कविताअतुकांत कविता

जाड़े की धूप

  • Edited 3 years ago
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  • 227
  • 5 Mins Read

जाड़े की नर्म धूप का आनंद, मुझ पहाड़ी से पूछिये,
ठिठुर जाते हैं हाथ-पैर, गर्म कपड़ों का सहारा होता है।
सामने पहाड़ी से सूरज के निकलने का इंतजार करते
मानव, फूल-पौधे, पंछी, तितली, भंवरे, चराचर सारे।
पेड़ों
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 जाड़े की धूप,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

लौटता बचपन

  • Edited 3 years ago
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  • 97
  • 5 Mins Read

शीर्षक लौटता बचपन ....

चाचा को जब भी फोन पर बात करो या घर पर मिलने जाओ तो हमेशा ही अपनी नासाज़ तबीयत का जिक्र करते नहीं थकते थे। कई बार डॉक्टर को भी दिखा चुके थे पर बीमारी का कोई अता पता ना था। एक बेटी
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लौटता बचपन,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

गुलाबी ठंड मेरे द्वार

  • Edited 3 years ago
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  • 444
  • 5 Mins Read

गुलाबी ठंड मेरे द्वार

हौले हौले दस्तक हुई आज मेरे दरवाजे में सुबह
खोला दरवाजा तो मुस्कुराते हुए खड़ी थी वह,
मैं थोड़ा सकुचाती, घबरायी, उसे पहचान ना पायी
छुआ उसने प्यार से मेरे नरम-नरम गालों को,
भर
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गुलाबी ठंड मेरे द्वार,<span>अतुकांत कविता</span>
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लेखसमीक्षा

मेरे द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा

  • Edited 3 years ago
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  • 141
  • 13 Mins Read

सभी मित्रों को मेरा अमृता पांडे का नमस्कार।

'साहित्य अर्पण एक पहल' परिवार का बहुत-बहुत धन्यवाद। विजेता होने का पुरस्कार मुझे प्राप्त हुआ। पुरस्कार छोटा बड़ा कैसा भी हो हमेशा खुशी देता है और हौसला
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मेरे द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा,<span>समीक्षा</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर..!

Amrita Pandey2 years ago

जी धन्यवाद।

Narendra Singh

Narendra Singh 3 years ago

बहुत सुन्दर । पुस्तक की विशेषताओं को समेटने का सार्थक प्रयास। बधाई।

Amrita Pandey2 years ago

जी आभार।

Amrita Pandey3 years ago

जी धन्यवाद।

Rashmi Sharma

Rashmi Sharma 3 years ago

वाह बहुत खूब

Amrita Pandey2 years ago

धन्यवाद रश्मि जी

Pallavi Rani

Pallavi Rani 3 years ago

बहुत सुंदर समीक्षा

Amrita Pandey

Amrita Pandey 3 years ago

जी धन्यवाद।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर समीक्षा..!! ?

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद सर।

लेखआलेख

अल्मोड़ा का दशहरा

  • Edited 3 years ago
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  • 270
  • 15 Mins Read

अल्मोड़ा का दशहरा

विजयदशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है।
भारत के हर शहर और प्रांत में इसे अपने ढंग से मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं में बसा एक पहाड़ी शहर है अल्मोड़ा जो कुमाऊ की सांस्कृतिक
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अल्मोड़ा का दशहरा,<span>आलेख</span>
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कविताअतुकांत कविता

नवरात्रि और श्रद्धा

  • Edited 3 years ago
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  • 100
  • 3 Mins Read

नवरात्र आए हैं फिर इस बार
पर महामारी का हाहाकार,
मैंने यह संकल्प लिया है
अपना धर्म निभाऊंगी,
मां का लहंगा नहीं खरीदा
ना अपनी चूड़ी श्रृंगार,
भूखे प्यासों का चेहरा
आंखों में आए बारंबार,
छोटा सा जो
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नवरात्रि और श्रद्धा,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

खामोशी बातों में

  • Edited 3 years ago
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  • 99
  • 2 Mins Read

#खामोशी बातों में

ये मिलना भी कैसा मिलना...?
जो दिल के बंद दरवाजे़ खुलते नहीं,
इधर भी लगाम जु़बां पर
उधर भी चुप्पी होठों पर,
खामोशी बातों में, हया मुलाकातों में
नाउम्मीदी दिन में, बेख़याली रातों में,
बीत
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खामोशी बातों में,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

कल और आज

  • Edited 3 years ago
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  • 141
  • 4 Mins Read

बिना क़ागज क़लम के भी कभी बन जाती है कविता
दिल की बंजर जमीं पर फसल सी लहलहाती है कविता,
कर देती है हरा भरा मन का एक एक कोना
जुबां से निकला हर एक शब्द लगता है जैसे खरा सोना,
एकांत की गोद में, झुरमुटों
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कल और आज,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

काश

  • Edited 3 years ago
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  • 74
  • 5 Mins Read

काश...!

गुलाबी ठंड का एहसास कराता
अक्टूबर का माह आ गया है,
मैं खुश हूं.....
सूरज के रुख में थोड़ी नरमी है
अब कम हो गयी गर्मी है,
मैं खुश हूं....
प्रकृति में खिलने वाले फूलों ने
अपनी छटा बिखेरने शुरू कर दी
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काश,<span>अतुकांत कविता</span>
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक

प्रेरणा

  • Edited 3 years ago
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  • 173
  • 8 Mins Read

प्रेरणा

कई महीनों से फैक्ट्री बंद थी। दो-तीन महीने तो मालिक ने तनख्वाह दी। जब काम ही नहीं था तो वह भी कब तक वेतन देता। एक दिन उसके घर मालिक की ओर से नोटिस आया कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। पिछले
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प्रेरणा,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

स्वस्थ सोच..!

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद

कविताअतुकांत कविता

दो कप चाय और हम

  • Edited 3 years ago
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  • 202
  • 5 Mins Read

इस बंद कमरे की परिधि को छोड़कर
चलो आज बैठे कुछ देर बाहर
घर के इस छोटे से आंगन में
कुछ फूल खिलाये हैं मैंने
जिन्हें देखने की फुर्सत कभी हुई नहीं तुम्हें
आज एक बार निहार लो उन्हें
दिल चाहता है कभी-कभी
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दो कप चाय और हम,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

हमारा अभिमान हो हिन्दी

  • Edited 3 years ago
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  • 157
  • 4 Mins Read

अभिनय नहीं हमारा अभियान हो हिंदी
अभियान क्यों हमारा अभिमान हो हिंदी
अभिमान है यह देश का, सिरमौर इस परिवेश का
मात्र भाषा ही नहीं, हमारी पहचान हो हिंदी...

मां भारती के वैभव का गुणगान हो हिंदी
हिंदुस्तान
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हमारा अभिमान हो हिन्दी,<span>अतुकांत कविता</span>
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Amrita Pandey

Amrita Pandey 3 years ago

जी हां

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

निज भाषा उन्नति आहे,सब उन्नति को मूल,सच ही कहा गया है।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

कविताअतुकांत कविता

नज़रिया

  • Edited 3 years ago
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  • 168
  • 6 Mins Read

ए जिंदगी तुझको मैंने क्या-क्या नहीं कहा
कभी दर्द, कभी बोझ, कभी बेवफा कहा
कई मुकाम आए, जब नागवार गुजरी है तू
रुसवाई और जुदाई के लम्हों की दास्तां रही है तू
दिल टूट गया था, चिराग-ए -उम्मीद बुझ गया था
बहुत
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नज़रिया,<span>अतुकांत कविता</span>
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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

Behtarin

Amrita Pandey3 years ago

बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीय

लेखनिबन्ध

संभल ए मानव !

  • Edited 3 years ago
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  • 156
  • 4 Mins Read

शीर्ष स्थान पर मस्तिष्क को धारण करने वाला एकमात्र प्राणी मानव ही तो है पर यह इतना स्वार्थी, लालची और संकुचित मानसिकता वाला क्यों हो चला है...? अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी कर बैठने से परहेज़
Read More

संभल ए मानव !,<span>निबन्ध</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

समझेगा कौन हर बार प्रश्न यही आ जाता है।

Amrita Pandey3 years ago

जी, आप जैसे चंद लोगों को देखकर कभी-कभी आशा भी जगती है

Anil Dhawan Sirsa

Anil Dhawan Sirsa 3 years ago

सुन्दर

Amrita Pandey3 years ago

आभार आपका

Amrita Pandey3 years ago

आभार आपका

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर..!

Amrita Pandey3 years ago

जी धन्यवाद

कविताअतुकांत कविता

कोविड आया है....

  • Edited 3 years ago
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  • 89
  • 9 Mins Read

नमस्कार मित्रों, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। दूसरों से मिलना, बातें करना उसे हमेशा से ही अच्छा लगता है और उसकी जरूरत भी है। मगर इधर लंबे समय से आपस में मेलजोल सब कुछ बंद है। लगता है कि हम इंसान ही
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कोविड आया है....,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

aapki ye rachna bahut sundar hai

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

Amrita Pandey3 years ago

धन्यवाद

कविताअतुकांत कविता

महल और झोपड़ी

  • Edited 3 years ago
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  • 202
  • 5 Mins Read

ये महलनुमा अट्टालिकाएं, बड़े-बड़े झरोखे
मगर सब बंद पड़े हैं, हर कमरे में ए सी जो लगे हैं।
ये छोटी-छोटी झोपड़ियां, घास फूस और लट्ठों से बनी हुई
छोटे-छोटे झरोखे सांस लेने के वास्ते
जहां बेधड़क आते जाते
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महल और झोपड़ी,<span>अतुकांत कविता</span>
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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत ही खूबसूरत सृजन,कोई मुकाबला नहीं महल और झोंपड़ी में, जहां तक खुशियों का ताल्लुक है।

Amrita Pandey3 years ago

जी धन्यवाद, सही बात

कविताबाल कविता

अब आया है पन्द्रह अगस्त

  • Edited 3 years ago
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  • 159
  • 5 Mins Read

अब आया है पन्द्रह अगस्त

बच्चे, बूढ़े, जवां सभी हैं आज मस्त
अब आया है पन्द्रह अगस्त......
अहा ! पर्व यह कैसा सुंदर, अजब यह त्योहार
कहां-कहां से लोग जुड़े हैं, देखो अब की बार
करें तिरंगे ध्वज को अर्पण, श्रद्धासुमनों
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अब आया है पन्द्रह अगस्त,<span>बाल कविता</span>
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