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London is the capital city of England.
कविताअतुकांत कविता
इत्तेफाक है महज़, मुझसे मिलना तेरा
मैं खिलखिलाती सुबह, तू घनी रात का डेरा,
मैं गुनगुनाती धूप, तू तम-स्याह का घेरा
मैं आस की किरण, तू निशा-तृष्णा का बसेरा,
नहीं जानता मुस्कुराना, गीत गाना, गुनगुनाना
मैं
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लेखआलेख
'आइए, मन के सूरज को जगायें।'
सुप्त पड़े दिल के तारों को झंकृत कर दें,
आइये, हर दिल को खुशियों से अलंकृत कर दें...।
सावन का मौसम आने वाला है। सूरज की गरम उष्मा के बीच बारिश की बूंदे तन को राहत देती है।
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समयानुकूल महत्त्वपूर्ण लेख👏👏👍
धन्यवाद मीता जी।
बहुत अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर 🙏🏻
पढ़ते रहिए। अच्छा महसूस करते रहिए।😊
बहुत सुन्दर और आज की स्थितियों में प्रेरणादायक..!
धन्यवाद सर, आपकी प्रतिक्रियाएं मेरा उत्साहवर्धन करती हैं।
कविताअतुकांत कविता
जी चाहता है कभी कभी
अलसाई सी पड़ी रहूं बिस्तर में
कुछ और देर सोती रहूं
सूरज के निकलने तक
भले नींद खुल भी गई हो
पर आंखें मूंदकर लेटी रहूं
बिस्तर में ही चाय दे जाए कोई
मां के घर की तरह कभी-कभी....
मगर
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लेखआलेख
पॉजिटिविटी यानि सकारात्मकता एक सुंदर और सुखद शब्द है। हमें सदा सकारात्मक व्यवहार बनाए रखना चाहिए। नकारात्मक व्यक्ति, नकारात्मक बातें और नकारात्मक व्यवहार का हमेशा दुष्प्रभाव देखा गया है।
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अत्यंत सुन्दर और सारगर्भित..!
सादर धन्यवाद।
बहुत सुंदर पोस्ट आपने सभी के मन की बात कह दी।
धन्यवाद आपका।
कविताअतुकांत कविता
अब जाग इंसान।
फिर पतंग उड़ने लगी हैं आसमान में
बच्चे दिखने लगे फिर ज़रा परेशान से,
स्कूल जाने की उम्मीद धूमिल होने लगी
आना जाना कहीं नहीं,बस कैद हो गए घर में।
फिर कर्फ्यू लगने लगा है शाम से
सलामती
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कविताअतुकांत कविता
बाहर कोरोना की मार
बच्चों रहना होशियार
वायरस है यह एक नन्हा सा
मगर करे छुप-छुपकर वार......
बार-बार हाथ तुम धोना
दूर रहेगा जिद्दी कोरोना
बिना काम बाहर मत जाना
कोई चीज भीतर ना लाना......
स्कूल बंद है पार्क
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कविताअतुकांत कविता
नवरात्र आए हैं फिर इस बार
पर महामारी का हाहाकार,
मैंने यह संकल्प लिया है
अपना धर्म निभाऊंगी,
मां का लहंगा नहीं खरीदा
ना अपनी चूड़ी श्रृंगार,
भूखे प्यासों का चेहरा
आंखों में आए बारंबार,
छोटा सा जो
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कहानीलघुकथा
एक नन्हे से वायरस ने तमाम जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी थी। पार्वती के लिए कोरोना बिल्कुल नया नाम था, पर वह कुछ कुछ समझ रही थी कि क्या परिणाम होने वाला है,जब उस दिन उसके पति ने घर आकर कहा कि कल से फैक्ट्री
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कविताअतुकांत कविता
यूं ही चलते चलते एक दिन
पहुंचे हम कविता की नगरी
सुंदर सा दरबार सजा था
कवियों का अंबार लगा था,
मन में भी जागा उत्साह
रुकते रुकते कदमों से
धीरे-धीरे आगे बढ़कर
पहुंच गए हम भी सीमा द्वार,
भिन्न भाव भंगिमा
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लेखआलेख
आज एक बहुत पुरानी घटना जो डायरी के पन्नों में लिखी थी आप सभी के साथ साझा कर रही हूं।
हर वर्ष जब भी दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम आते हैं तो कहीं खुशी कहीं गम का माहौल छा जाता है। मुझे
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वास्तव में. नाम न मिलने से आघात लगा होगा. गनीमत है, आपने उसे उचित प्रकार से सह लिया और प्रतीक्षा की. पहले परिणाम ऐसे ही आते थे. मेरी प्रथम श्रेणी तो आयी लेकिन मार्क्स आशा से कुछ विषय में कम, मैं डबडबायी आंखों से घर आया. 😊रास्ते मेंर'' झील भी पड़ी..! स्कालरशिप भी मिल गयी थी.
जी, कई बार अधीरता से दुष्परिणाम भी सामने आ जाते हैं लेकिन यह ईश्वर की कृपा रहे कि शायद इस तरह का कोई भी विचार उस वक्त मन में नहीं आया और घर वालों के सहयोग पूर्ण रवैये ने भी शायद काम किया
लेखआलेख
उत्तराखंड एक छोटा सा पर्वतीय राज्य है उमंग और उल्लास से भरा हुआ। यहां पर कई स्थानीय त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें फूलदेई चैत के महीने में मनाया जाने वाला एक बालपर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार
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कविताअतुकांत कविता
आज कुछ नया लिखूंगी
बहुत लिखा सजनी पर, साजन पर
मौसम पर, बादल पर
चूड़ी, बिंदिया, घूंघट पर
रिश्तो की मर्यादा पर,
आज कुछ नया लिखूंगी....
दहेज रूपी दानव
जो सुरसा की तरह
मुंह खोले आए दिन
निगल जाता है
मेरी
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sach hai Dahejpratha ko khatam karne ke liye Shiksha Anivarya hai
Ji..
लेखआलेख
कुमाऊं का उत्तरायणी पर्व
मकर संक्रांति को देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इसे उत्तरायणी कहते हैं। क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में
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कविताअतुकांत कविता
खट्टी मीठी यादों का संसार रच गया
ये जाने वाला साल इतिहास रच गया
इंसान को बना कैदी घर में हलकान कर गया
मेहमां बन आया था कोविड, अब तक ठहर गया,
सुख का पलड़ा कुछ हल्का, दुख का भारी कर गया
बैठे बिठाए मौत
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बहुत सुन्दर, लयबद्ध और सटीक रचना.! 2020.. बहुत कुछ ले गया और प्रकृति के कुछ सन्देश दे गया.. जैसे समय की गति ठहर गयी हो..! ..
कविताअतुकांत कविता
जाड़े की नर्म धूप का आनंद, मुझ पहाड़ी से पूछिये,
ठिठुर जाते हैं हाथ-पैर, गर्म कपड़ों का सहारा होता है।
सामने पहाड़ी से सूरज के निकलने का इंतजार करते
मानव, फूल-पौधे, पंछी, तितली, भंवरे, चराचर सारे।
पेड़ों
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कविताअतुकांत कविता
शीर्षक लौटता बचपन ....
चाचा को जब भी फोन पर बात करो या घर पर मिलने जाओ तो हमेशा ही अपनी नासाज़ तबीयत का जिक्र करते नहीं थकते थे। कई बार डॉक्टर को भी दिखा चुके थे पर बीमारी का कोई अता पता ना था। एक बेटी
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कविताअतुकांत कविता
गुलाबी ठंड मेरे द्वार
हौले हौले दस्तक हुई आज मेरे दरवाजे में सुबह
खोला दरवाजा तो मुस्कुराते हुए खड़ी थी वह,
मैं थोड़ा सकुचाती, घबरायी, उसे पहचान ना पायी
छुआ उसने प्यार से मेरे नरम-नरम गालों को,
भर
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लेखसमीक्षा
सभी मित्रों को मेरा अमृता पांडे का नमस्कार।
'साहित्य अर्पण एक पहल' परिवार का बहुत-बहुत धन्यवाद। विजेता होने का पुरस्कार मुझे प्राप्त हुआ। पुरस्कार छोटा बड़ा कैसा भी हो हमेशा खुशी देता है और हौसला
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बहुत सुन्दर । पुस्तक की विशेषताओं को समेटने का सार्थक प्रयास। बधाई।
जी आभार।
जी धन्यवाद।
लेखआलेख
अल्मोड़ा का दशहरा
विजयदशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है।
भारत के हर शहर और प्रांत में इसे अपने ढंग से मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं में बसा एक पहाड़ी शहर है अल्मोड़ा जो कुमाऊ की सांस्कृतिक
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कविताअतुकांत कविता
नवरात्र आए हैं फिर इस बार
पर महामारी का हाहाकार,
मैंने यह संकल्प लिया है
अपना धर्म निभाऊंगी,
मां का लहंगा नहीं खरीदा
ना अपनी चूड़ी श्रृंगार,
भूखे प्यासों का चेहरा
आंखों में आए बारंबार,
छोटा सा जो
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कविताअतुकांत कविता
#खामोशी बातों में
ये मिलना भी कैसा मिलना...?
जो दिल के बंद दरवाजे़ खुलते नहीं,
इधर भी लगाम जु़बां पर
उधर भी चुप्पी होठों पर,
खामोशी बातों में, हया मुलाकातों में
नाउम्मीदी दिन में, बेख़याली रातों में,
बीत
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कविताअतुकांत कविता
इस बंद कमरे की परिधि को छोड़कर
चलो आज बैठे कुछ देर बाहर
घर के इस छोटे से आंगन में
कुछ फूल खिलाये हैं मैंने
जिन्हें देखने की फुर्सत कभी हुई नहीं तुम्हें
आज एक बार निहार लो उन्हें
दिल चाहता है कभी-कभी
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कविताअतुकांत कविता
अभिनय नहीं हमारा अभियान हो हिंदी
अभियान क्यों हमारा अभिमान हो हिंदी
अभिमान है यह देश का, सिरमौर इस परिवेश का
मात्र भाषा ही नहीं, हमारी पहचान हो हिंदी...
मां भारती के वैभव का गुणगान हो हिंदी
हिंदुस्तान
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लेखनिबन्ध
शीर्ष स्थान पर मस्तिष्क को धारण करने वाला एकमात्र प्राणी मानव ही तो है पर यह इतना स्वार्थी, लालची और संकुचित मानसिकता वाला क्यों हो चला है...? अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी कर बैठने से परहेज़
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समझेगा कौन हर बार प्रश्न यही आ जाता है।
जी, आप जैसे चंद लोगों को देखकर कभी-कभी आशा भी जगती है
सुन्दर
आभार आपका
आभार आपका
कविताअतुकांत कविता
नमस्कार मित्रों, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। दूसरों से मिलना, बातें करना उसे हमेशा से ही अच्छा लगता है और उसकी जरूरत भी है। मगर इधर लंबे समय से आपस में मेलजोल सब कुछ बंद है। लगता है कि हम इंसान ही
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aapki ye rachna bahut sundar hai
धन्यवाद नेहा जी
धन्यवाद
कविताअतुकांत कविता
ये महलनुमा अट्टालिकाएं, बड़े-बड़े झरोखे
मगर सब बंद पड़े हैं, हर कमरे में ए सी जो लगे हैं।
ये छोटी-छोटी झोपड़ियां, घास फूस और लट्ठों से बनी हुई
छोटे-छोटे झरोखे सांस लेने के वास्ते
जहां बेधड़क आते जाते
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बहुत ही खूबसूरत सृजन,कोई मुकाबला नहीं महल और झोंपड़ी में, जहां तक खुशियों का ताल्लुक है।
जी धन्यवाद, सही बात
कविताबाल कविता
अब आया है पन्द्रह अगस्त
बच्चे, बूढ़े, जवां सभी हैं आज मस्त
अब आया है पन्द्रह अगस्त......
अहा ! पर्व यह कैसा सुंदर, अजब यह त्योहार
कहां-कहां से लोग जुड़े हैं, देखो अब की बार
करें तिरंगे ध्वज को अर्पण, श्रद्धासुमनों
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