कवितालयबद्ध कविता
नवरात्र
मां दुर्गा
नौ दिनों में माता मेरी
नौ रूप दिखलाती
भक्ति भाव का संगम
हर दिलों में जगाती
सिंह सवारी कर माता
सज धज कर आती।
भक्तों को सम्मुख पाकर
मंद मंद मुस्काती
लाल चुनरिया सवा रुपैया
में माता खुश हो जाती।
भक्तों के सम्मुख माता
अमृत वर्षा बरसाती
नवरात्रों में माता आकर
सुख संपदा बरसाती।
आपस में मैत्री भाव
माता हमें सिखलाती
दुर्गुणों का संघार कर
घट को शीतल कर।
हरियाली खुशहाली संग
जीवन स्वर्ग सम बनाती
हर नौ दिनों में माता
नव रूप दिखलाती।
शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी बन
कभी चंद्रघंटा बन जाती
कूषमांडा ,स्कंदमाता , कात्यायनी,
आकर यही हमें बताती।
जीवन की में रक्षा करती
सही राह दिखाती।
कालरात्रि ,महागौरी ,सिद्धिदात्री
जीवन में रंग नए दिखलाती।
देकर नित नए वरदान
अभिलाषा पूरी कर जाती।
आंगन और वातावरण को
खुशहाली से भर जाती है।
नव दुर्गा के नौ रूपों को देख कर
हम नतमस्तक हो जाते।
माता के दर पर आकर
माता के जयकारों से
जीवन को धन्य बनाते
जीवन को धन्य बनाते।
ऋतु गर्ग
मौलिक रचना
सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल