कविताछंद
कण्ठी छंद
हुआ सवेरा।
मिटा अँधेरा।।
सुषुप्त जागो।
खुमार त्यागो।।
सराहना की।
बड़प्पना की।।
न आस राखो।
सुशान्ति चाखो।।
करो भलाई।
यही कमाई।।
सदैव संगी।
कभी न तंगी।।
कुपंथ चालो।
विपत्ति पालो।।
सुपंथ धारो।
कभी न हारो।।
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कण्ठी छंद विधान-
"जगाग" वर्णी।
सु-छंद 'कण्ठी'।।
"जगाग" = जगण, गुरु - गुरु
(121 2 - 2), 5 वर्ण, 4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया