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मैं जीवन हूँ - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मैं जीवन हूँ

  • 162
  • 16 Min Read

( नवरात्र की दिव्य ज्योति के अलौकिक आलोक में प्रस्तुत की जीवन का एक अद्भुत, चैतन्यपूर्ण परिचय )

दुनिया के इस मेले में
अद्भुत से इस खेले में

बूँद-बूँद
घटती रहती,
पर कदम-कदम
बढ़ती रहती
उम्र के इस रेले में

धुँधले या उजले
पिछले और अगले
कुछ लमहों से घिरते-घिरते

नियति के हाथों से
पल-पल बिछती रहती
कुछ अनजानी,
कुछ पहचानी सी
राहों की इस चादर पर
चलते-फिरते

पर फिर भी सबसे अलग-थलग
ना जाने क्यूँ विलग-विलग
यूँ छिटका सा
कुछ ठिठका सा
हाँ, दूर कहीं,
मजबूर कहीं
मन में, कहीं अकेले में
तनहाई की गोदी में मैं
पल-पल पलता रहता हूँ

हमसफर बन चलती
हर एक मौज से
ना जाने किस जोश में
मदहोशी के आगोश में
छला कभी और कभी-कभी
छलता रहता हूँ

मैं जीवन हूँ
रुकना मेरी मौत है,
थकना मेरी शाम है
चलता रहता हूँ

मैं जीवन हूँ,
चलना मेरा काम है
चलता रहता हूँ

मैं जीवन हूँ,
चलना मेरी शान है,
चलता रहता हूँ

चलता तो सबके साथ हूँ
पर तनहा हूँ

वक्त की मैं
एक अद्भुत सौगात हूँ,
मैं लमहा हूँ

बहते दरिया की तरह हूँ
मैं ही जीने की वजह हूँ
हर दिन नयी-नवेली सी
एक सुबह हूँ

कभी रात का अँधियारा
तो कभी सुबह की किरण हूँ
कभी विरह हूँ,
कभी मिलन हूँ

आकाश के उस वरदहस्त से
बिखरा एक प्रकाश हूँ

धरती की हरी-भरी गोदी में
क्षण-क्षण, कण-कण
बिखरा-बिखरा,
निखरा-निखरा
नवजीवन का विकास हूँ

मैं नित-नूतन पहचान पाता,
जीने का एक अरमान पाता,
सैलाब में मैं तिनके की तलाश हूँ

पल-पल की बगिया में
फलता-फूलता
सुख-दु:ख को जीता,
खुद को पल-पल में
छलता-भूलता
पिछले कल और
अगले कल की जंजीरों से
बढ़ते कदमों को रोकती सी
इन लकीरों से
हर पल खुद को मुक्त कर
अस्तित्व को आजाद कर,
उन्मुक्त कर
हर रोज नयी कहानी लिखता
हर मौज पर रवानी लिखता
हर बीते-रीते कल से बाहर
आकर एक जवानी लिखता
आज हूँ
जीने का एक अंदाज हूँ
उल्लास का आगाज़ हूँ

नित खोजता नवपरिभाषा
पल-पल चलती रहती
साँसों की भाषा
क्षणभंगुर इस जीवन में
पल-पल पलती रहती सी
जीने की एक आस हूँ

मत समझो,
मैं ठहरा-ठहरा,
वक्त की हर थिरकन से
इसके यौवन की धड़कन से
हो अंधा-बहरा,
कुछ टूट चुके
कुछ छूट चुके
अवसर में सिमटा " काश " हूँ

बिखरा-बिखरा हूँ बूँद-बूँद
हर लमहा मैं बिंदास हूँ
हूँ तनहा मैं
फिर भी
सबके पास हूँ

हर पडा़व पे,
हर उतार के,
हर चढा़व के झूले में
मैं झूलता हूँ

कानों में पड़ती रहती
मौत के कदमों की
हर एक आहट को
भूलता हूँ

पीता हूँ जीवन की बूँदें
घूँट-घूँट भर
आँख मूँदकर

हर बचपन का चहका-चहका
अल्हड़पन हूँ
पलकों के साये में पलते
अहसासों का आमंत्रण हूँ
यौवन की भूलभुलैया में
बहका-बहका अंधापन हूँ

मैं कान्हा की मुरली से छिटका
राधा का नूपुर बन थिरका
महारास का सरगम हूँ
मैं यमुना-जल,
कण-कण सुरभित
महका-महका वृंदावन हूँ

मैं हर उधड़न की सीवन हूँ
हर रूठती सी आस में
अंतिम उखड़ती,
टूटती सी साँस में
खुद को तलाशता जीवन हूँ

हर एक पतझड़ में
खुद को तलाशता मधुबन हूँ
संकल्पों की पैनी-पैनी छेनी से
राह के हर पत्थर पर
खुद को तराशता जीवन हूँ

हर अवसर की सीपी में ढल-ढल
मोती बनने को आतुर पल-पल
स्वातिबिंदु छलकाता सा
एक काल-पात्र हूँ

हर श्राद्धपक्ष की निद्रा से
बार-बार फिर जागृत
माँ की पाँवों की आहट से
होता रहत पल-पल झंकृत
जगदंबा का शुभ आगमन
नवरात्र हूँ

हर पत्थर में छिपा हुआ
शिवलिंग हूँ
मैं महाकाल का शिव-सुंदर
मंगलमय प्रतिबिंब हूँ
हर पथ के
कण-कण में
क्षण-क्षण
अंकित उसका
पदचिह्न हूँ

हर जड़ता में चैतन्य का
उद्दीपन हूँ
काल की हर कालिमा में
अपनी जगह बनाता सा
संजीवन हूँ
मैं जीवन हूँ
मैं जीवन हूँ

द्वारा : सुधीर अधीर

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