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चुनावी मौसम बनाम चूना फ्री मौसम - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

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चुनावी मौसम बनाम चूना फ्री मौसम

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आज के इस हाई प्रोफाइल और फ्री स्टाइल लोकतंत्र में देश और काल के अनुसार मौसम को दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं :  
           चुनावी मौसम और चूना-फ्री मौसम. 
      चुनावी मौसम में एक आचार संहिता होती है. हर दर्शन-दुर्लभ चेहरा शिष्टाचार, नमस्कार, मंदहास और कभी-कभी तो बत्तीसी-फाड़ हास से लदा-फदा होता है. हर सरकारी जनकल्याण योजना " आप "मुद्रा में प्रकट हो जाती है. चूना-फ्री मौसम में यह "आफ" मुद्रा में लौट जाती है. भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन जाता है और नमस्कार तिरस्कार में बदल जाता है. चुनावी मौसम में कुछ प्रशासनिक अधिकार चुनाव आयोग के हाथ में आ जाते हैं.चूना-फ्री मौसम में ये फिर फिसलकर मुक्त बाजार में लुप्त हो जाते हैं. आचार संहिता बाजार संहिता में बदल जाती है.
और सरकार हाथ खड़े करके लाचार संहिता में बँध जाती है. छप्पर-फाड़, धुआँधार जनकल्याण बंटाधार शरसंधान में बदलकर जेब हल्की और हालत पतली करने लगता है. थाली खाली होकर और भी जोर से बजने लगती है और ताली बजाकर पिछली सरकार को गाली बकने लगती है.  हर फरमाइश " यूपी टाइप" जोर आजमाइश या फिर विदेशी साजिश की पैदाइश लगने लगती है. जो बातें अब तक पुलकित करती थी, वही अब टूलकिट सी लगती है जिसे कुचलने के लिए लूटकिट की जरूरत पड़ने लगती है. वित्त मंत्री निराहार मूद्रा में जाकर जनता से भी देशहित में वैसा ही कुछ करने की अपेक्षा करने लगती हैं. निर्मला के भय से उज्ज्वला सहमकर ना जाने किस कोने में छिप जाती है. हर किसी को घर के पास ही अच्छा रोजगार देने के लिए संकल्पबद्ध नेता राष्ट्रवादी आत्मनिर्भर विश्वगुरु का चोला धरकर पकौडा़, भगौड़ा और कटोरा को रोजगार समझने के लिए प्रेरित करने लगते हैं. लोकतंत्र से लोक का लोप, हो जाता है और सिर्फ तंत्र ही शेष रह जाता है  जो बारी बारी-बारी से जोंकतंत्र, ठोकतंत्र, शाक तत्र, भौंकतंत्र  रोकटोक तंत्र, जोड़तोड़ तंत्र और तोड़ फोड़ तंत्र बनकर सामने आता है.  गणतंत्र गनतंत्र, जनतंत्र धनतंत्र, छलतंत्र, बलतंत्र बन जाता है. प्रजातंत्र किसी के लिए मजातंत्र और बाकी सबके लिए सजातंत्र हो जाता है. 

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वैल्यूज में बिखर जाती है.

      मौसम तो मौसम ही ठहरा. धूप- छाँव जैसा. मालूम नहीं कब, कहाँ, कैसे बदल जाये. तेलुगु भाषा में मौसम का अर्थ धोखा होता है. मगर राजनीति की तो हर एक भाषा में इसका यही अर्थ निकल जाता है. कब चुनावी मौसम चूना-फ्री मौसम में बदल जाये, कोई भरोसा नहीं. इसलिए इस पाँच साल बनाम पाँच दिन वाले इस खेल में जेब को सेव रखने के लिए मत को हर तरह के मद से दूर रखें.

द्वारा : सुधीर अधीर

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