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"आ अब लौट चलें " - कुलदीप दहिया मरजाणा दीप (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

"आ अब लौट चलें "

  • 306
  • 7 Min Read

" आ अब लौट चलें"
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हैं चारों ओर वीरानियाँ
खामोशियाँ, तन्हाईयाँ,
परेशानियाँ, रुसवाईयाँ
सब ओर ग़ुबार है !
आ अब लौट चलें.....................

चीत्कार, हाहाकार है
मृत्यु का तांडव यहाँ,
है आदमी के भेष में
यहां भेड़िये हजार हैं !
आ अब लौट चलें...................

खून से सनी यहाँ
इंसानियत की ढाल है,
नफ़रतों के ज़हर से
भरी आँधियाँ बयार हैं !
आ अब लौट चलें.................

ज़मीर मिट चला यहाँ
क़ायनात शर्मसार है,
घोर अंधकार में यहां
गुमनामियाँ सवार हैं !
आ अब लौट चलें................

कस्तियां यहाँ डूब रही
लहरों में उभार है
है डूबता वही यहाँ
गुमाँ का जिसमें ख़ुमार है !
आ अब लौट चलें....................

मुफ़लिसी के दौर में
मजबूरियां बेशुमार हैं,
नज़र जहां भी पड़े
अंगार ही अंगार हैं !
आ अब लौट चलें......................

मंज़र ये कैसा यहाँ
फ़िक्र में जहान है
ना सरहदें महफ़ूज यहाँ
सब दिलों में ख़ार हैं !
आ अब लौट चलें.....................

स्वार्थ की बेड़ियों से बंधे
सब गुमनामियों की कैद में,
सब्र है किसे यहाँ पे
तंग सोच से बीमार हैं !
आ अब लौट चलें...................

विश्वास के पनपते बूटों पे
दगाबाज़ इल्लियाँ सवार हैं,
कब तलक जलेगा "दीप" यूँ
दामन सभी दाग़दार हैं !
आ अब लौट चलें.............!

रचनाकार
कुलदीप दहिया " मरजाणा दीप"
शिक्षक एवं साहित्यकार
हिसार ( हरियाणा )
संपर्क सूत्र -9050956788
मेल :- ddeep935@gmail.com

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