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खुद के साये से भी हैं महरूम - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

खुद के साये से भी हैं महरूम

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आलमे-इब्तिदा-ए-सफ़र ये था कि उमंग थी हौसले थे और साथ था बेशुमार उम्मीदों का हुजूम,
हाल-ए-इंतेहा-ए-सफ़र ये है कि मायूसियों के घुप्प अंधियारों में खुद के साये से भी हैं महरूम!!

© "बशर" بشر.

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