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कवितानज़्म
आलमे-इब्तिदा-ए-सफ़र ये था कि उमंग थी हौसले थे और साथ था बेशुमार उम्मीदों का हुजूम, हाल-ए-इंतेहा-ए-सफ़र ये है कि मायूसियों के घुप्प अंधियारों में खुद के साये से भी हैं महरूम!! © "बशर" بشر.