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पुस्तक परिचर्चा:कुंवर नारायण सिंह - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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पुस्तक परिचर्चा:कुंवर नारायण सिंह

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पुस्तक परिचर्चा
विधा- सामुहिक
विषय: कुंवर नारायण: बहुमुखी प्रतिभा के धनी

नमस्कार,मैं मृणालिनी दुबे, आकाशवाणी अयोध्या से अपने युवा मंच के विशेष कार्यक्रम में अपने सभी श्रोताओं का स्वागत करती हूं।आज हम गत सप्ताह शुरू हुए 'एक और शख्सियत' परिचर्चा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज सर्वप्रथम आप से परिचय कराते हैं, परिचर्चा के प्रतिभागियों से।सरल शेषाद्री जी, जाने-माने मूर्धन्य लेखक, कमलेश गुप्ता जी, आप गोरखपुर से पाक्षिक पत्रिका नंदिनी के संपादक हैं, श्रीमती उमा जोगलेकर एक जानी-मानी समीक्षक और मशहूर कवियत्री हैं। स्वागत है आप सभी का आज की इस परिचर्चा में जिस का विषय है कुंवर नारायण बहुमुखी प्रतिभा के धनी।
आज की इस परिचर्चा का प्रारंभ हम करते हैं श्रीमती उमा जोगलेकर को निमंत्रण देकर..
उमा जो.: नमस्कार, पहले तो मैं हृदय से अभिवादन और आभार व्यक्त करूंगी आयोजकों का, जिन्होंने मुझे अपने प्रिय रचनाकार पर अपनी प्रतिक्रिया रखने का अवसर दिया।कुंवर नारायणजी ने जिन्होंने छह दशकों तक अपनी रचनात्मकता साहित्य की विभिन्न विधाओं में दिखाई ,उनके काव्य, कथा संसार, गद्य ,अनुवाद, सीने- समीक्षा सभी मूल्यांकन और समावेशी विवेचन के उपयुक्त हैं।
सरल शेषाद्री: नमस्कार साथियो, मुझे भी इस आमंत्रण ने अभिभूत कर दिया।यह मेरा सौभाग्य है। मैं प्रयास करूंगा कि मैं इस परिचर्चा में उचित भूमिका निभा सकूंगा। मेरा ऐसा मानना है कि एक विशेष कालखंड में घटने के बावजूद आपकी कविताओं का कथानक सर्वकालिक महत्व का है। हर परिस्थिति में उस कविता की ऐतिहासिकता, राजनीति और शुद्ध भावनात्मकता दृष्टिगोचर होती है।आपने हर रचना की संवेदनात्मक अवधारणाओं से भी सीधे जुड़े हैं।
कमलेश गु.: आप सभी महानुभावों का अभिवादन, मैं आप दोनों से पूरी तरह सहमत हूं। कुंवर नारायण जी की रचनाओं में सजग दृष्टि देखी जा सकती है। जिनमें बहुत ही जिम्मेदाराना ढंग से मानवता के प्रति संलग्नता देखी जा सकती है।
मृणालिनी दु.:उनकी कविताओं में हमें मानवीय मूल्यों के प्रति उनकी कोमलता, शास्त्रीय संयम और रोमांटिक ऊर्जा, तीनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, यह विशेषता अन्यत्र लगभग दुर्लभ है।
सरल शेषाद्री:कुंवर नारायण हमेशा एक आत्म सर्जक रचनाकार के रूप में पहचाने गए।अतिवाद से बचने के लिए उन्होंने अपना साहित्य संसार कई परतों में उखाड़ कर नए सिरे से बुना। उनका रचनाकार उस समय के प्रासंगिक और वैज्ञानिक पड़ताल करता रहा है।
कमलेश गु.:ऐतिहासिकता, मिथकीय सत्य एवं जीवन के जटिल व समावेशी परिपेक्ष उन जैसे सृजक को हिंदी ही नहीं भारतीय भाषाओं के एक अप्रतिम मुर्गन के रूप में स्थापित करते हैं।
उमा जो.:परमानंद श्रीवास्तव उन्हें 'विश्व दृष्टि रखने वाला' कवि कहते हैं ,तो गिरधर राठी उनकी कहानी 'सीमा रेखाएं'के बारे में प्रस्तावित करते हैं कि यह कहानी घर-घर में पढ़ी जानी चाहिए।
सरल शे.:अधिकतर लेखक उन्हें सम्यक के रूप में याद करते हैं। उनके भीतर के मानवतावादी चिंतक, लेखक, कवि और उनकी जीवन दृष्टि को परखने की जानदार कोशिश की सराहना करते हैं।
कमलेश गु.:उन्होंने अपने लेखन को छपाने में सदैव संकोच किया। जब तक वह उससे संतुष्ट नहीं हुए उसे पाठकों के समक्ष लाने में बचते रहे।
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। कुंवर नारायण जैसे विलक्षण सृजक की रचनात्मक उपस्थिति का लेखा-जोखा संजोना इतना आसान नहीं था।आप सभी ने उनके भीतर के मानवतावादी चिंतक, लेखक और कवि के उज्जवल रूप को प्रकाशित किया है।

समय की बाध्यता हमें यहीं रोक रही है।आप सब का पुनः धन्यवाद।
गीता परिहार
अयोध्या

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