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बेलजियम की चॉक्लेट... - Ajay Bajpai (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

बेलजियम की चॉक्लेट...

  • 234
  • 17 Min Read

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जेट एयरवेज की फ्लाइट. चेन्नई से. अलसुबह 3.40 पर डिपार्चर. रात 12 बजे पहुंच गया. इमिग्रेशन की बहुत सारी कार्यवाहियाँ होती हैं, सो.
पत्नी नें पूरा टिफ़िन तैयार रखा था. वही रेलगाड़ी वाला जैसा. पूड़ियाँ, आलू की सब्जी बिना नमक की, नमक की पुड़िया अलग से, नींबू-मिर्ची अचार, कुछ उसकी प्रिय चटनियाँ...सेव, नमकीन पोहे वाला च्यूडॉ,आंवला बटी, परमल, चने, चनाजोर...न जाने क्या क्या... मेरे लिए... मेरी पसंद का...
रात कोई डेढ़ बजे तक सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी थीं... हम चेन्नई टू ब्रुसेल्स वाली फ्लाइट के लिए अंतर राष्ट्रीय डिपार्चर गेट नंबर-42 के सामने बैठ बोर्डिंग अनाउंसमेंट के इंतेज़ार में बैठे थे...
फ़िर भी कुछ वक्त शेष था सो मैं उससे बोल कुछ ड्यूटी फ्री शॉप्स की तरफ़ बढ़ा. मैट्रिक्स की सिम ली, कुछ ड्राई फ्रूट्स, कुछ ड्रिंक्स का सामान लिया, एक अच्छा सा स्कार्फ दिखा सो वो लिया...
और भी देखा कि क्या क्या रख लिया जाए. एक महंगे देश में जा रहा हूँ. वहाँ से पैंतालीस गुना कम कीमत की किसी चीज़ की जरूरत ही हो तो यहीं ले ली जाए...!
बड़ी उमस भरी अप्रैली शाम से परेशान बड़ा सुकून था यहां एयरपोर्ट पर और तभी बोर्डिंग का उदघोष हो चुका था.
बैठते ही पत्नी नें अपनी मन पसंद मूवी लगाई... विद्या बालन, नसीरुद्दीन शाह की फ़िल्म (डर्टी).
वेलकम ड्रिंक्स आये, सूप-ड्रिंक्स-स्नैक्स-ब्रंच-लंच---न जाने क्या क्या, और फ़िर एक मीठी सी नींद का झोंका...
पत्नी ने ब्लैंकेट मांग लिया था. मैं चेन्नई की याद कर कुछ कम तापमान में भी सहन कर सीट को पूरा झुका दो तीन घंटे की नींद ले चुका था...
सामने ही स्क्रीन पर साफ़ दिखाई दे रहा था कि ब्रुसेल्स आने में चालीस मिनट हैं...
मैंने पत्नी को जगाया. बताया, दो ब्लैक कॉफी बुलवाइं...जब तक हम दोनों व्यवस्थित हुवे तब तक जहाज लैंड कर चुका था.
सारी औपचारिकताएं पूरी कर बाहर आते ही डीएफएल के दफ़्तर के सामने गाड़ी खड़ी थी और बैठते ही निकल पड़ी हमें बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स घुमाने... आज का दिन पूरा ब्रुसेल्स के नाम...
तापमान कोई बारह से चौदह डिग्री... कन टोपा, ग्लोव्स, स्वेटर, ओवरकोट,न जाने क्या क्या पहनने के बाद भी ठिठुरते हुवे यह सोच कि क्या अप्रैल आख़िरी में भी ऐसा होता है...!पता नहीं यहां अगस्त-सितंबर, नवंबर-दिसम्बर में क्या होता होगा...? रगों में ख़ून या कि बर्फ़ होती होगी... उफ़ कितनी सर्द रहती होगी...
मैंने उसे बड़ी शिद्दत से चूमते हुवे कहा कि "मैडम, अभी बारह घंटे पहले तो चेन्नई में बड़ी परेशान थीं गर्मी से, अब यहां हैरान हो ठंडी से...!
एटॉमिक स्ट्रक्चर संग्रहालय को देखने बाद हम जूलियस मार्ट एरिया में पहुंचे... बड़ी प्यारी प्यारी सी दुकानें, छोटी-बड़ी, चॉक्लेट ही चॉक्लेट... एक से बढ़ कर एक... स्ट्रीट साइड रेस्तौरण्ट्स,सब के सब हँसते, मुस्कुराते,हाथ मिलाते, उत्सव मनाते...
ब्लूबेरी-चोको फलैक्स चॉक्लेट ट्रे एक पौंड दस यूरो... मैंने पूछा-"बिट्टू, गुड़िया, पांडे जी, डॉ. चिले, और एस के सिंह साब समेतअपने लिए ले लें...
छः छः...! पूरे साठ यूरो...दो हजार सात सौ रुपया की चॉक्लेट...!अपना दो महीने का किराना आ जाता है इतने में... फ़िज़ूल खर्ची... रहने दो... छोड़ो... यहां घूमने आए हैं... चॉक्लेट खरीदने थोड़े ही... ये तो मैं लौट के दमोह में घंटाघर पर लाला की दुकान से भी सौ पचास रुपया में ले आऊंगी...
अच्छा चलो एक गरमा गरम कॉफी तो ली जाए, आठ यूरो तो खर्च कर सकते हैं...
मेरे हाथों में कॉफी का गरम क्लेरो ग्लास था... एक सिप मार मैंने उसे थमाया... गटगट पी गई...
मैं अब हिसाब लगा रहा था... तीन सौ साठ रुपये की कॉफी...
ख़ैर, मजा बहुत आया, हम ख़ूब घूमे, नई नई जगह, लोग, संस्कृति देखी, आनंद लिया...
दुःख आज सचमुच हो रहा है कि जिसे देख मैं बोल उठा था-"अमिनस्तो... अमिनस्तो...
वो अब जल रहा है... क्या अमिनस्तो का मतलब आग, धुवाँ, हिंसा और उन्माद होता है...
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत ही बढ़िया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

BAHOT KHUBSURAT AUR DILCHASP..!

दादी की परी
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