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नव संवत्सर
त्योहार भारतीय संस्कृति के जनक हैं। त्योहार हमारे सांस्कृतिक इतिहास की रचना हैं।भारतीय जनजीवन में त्योहारों और उत्सवों का आदिकाल से ही काफी महत्त्व रहा है। हमारे त्योहार मानवीय गुणों को स्थापित कर लोगों में प्रेम, एकता व सद्भावना को बढ़ाने का संदेश देते हैं और परिवारों और समाज को जोड़ते हैं।
वैदिक युग में ही हमारे ऋषियों ने संवत्सर की महिमा को कालचक्र के विज्ञान और जीवन के उल्लास से जोड़कर उत्सवों की नींव रख दी थी।ये उत्सव ही हैं जो मनुष्य के संघर्ष भरे जीवन खुक हैं। जीवन की एकरसता मैं रंग भरते हैं।
ऐसा ही दिन है चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा।यह दिन विशेष ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व रखता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाने वाले इस उत्सव को सबसे प्राचीन त्यौहार कहा गया है। सृष्टि का आरंभ इसी दिन हुआ। कहते हैं, लंका विजय कर अयोध्या लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक इसी दिन किया गया था।तरफ। -तरह की कथाओं को माने तो विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।यह तो सत्य है कि यह दिन मालव गणराज्य की अविस्मरणीय जीत की खुशी मनाने का दिन है।
भारत के अनेक राज्यों में यह दिन परंपरागत शैली में उत्साह पूर्वक मनाया जाता है।घर- घर, द्वार- द्वार गुडी बांधने की परंपरा के कारण यह दिन गुड़ी पड़वा भी कहलाता है। गुडी को उल्लास की देवी माना जाता हैं जो नए संवत्सर का शुभ संदेश लाती हैं।
तिथि पत्र और पंचांग के अनुसार यह विक्रम संवत के आरंभ होने का दिन है। वैदिक काल से लेकर उपनिषद काल और रामायण, महाभारत काल से लेकर सम्राट अशोक के काल तक कई संवत हुए जिनमें से कुछ ही नाम बचे हैं। विक्रमादित्य ईसा से 57 वर्ष पहले हुए, किंतु हमारी इतिहास की पुस्तकों ने काल गणना के लिए विक्रम संवत कहने की अपेक्षा ईसा पूर्व या ईसा के बाद का ही इस्तेमाल किया।
इस संवत के मास ,पक्ष और तिथियों का हममें से अधिकतर को कोई ज्ञान नहीं है। जबकि हमारे रीति- रिवाज, जन्म, विवाह, मृत्यु से संबंधित सामाजिक आचारजी विचार, दशहरा ,दिवाली ,होली, रक्षाबंधन सहित सारे पर्व और त्योहार विक्रम संवत के तिथीपत्र पर तय होते हैं।
अपने शुरुआती दौर में यह कृत संवत कहलाता था। कालांतर में उज्जयिनी के मालव नरेशों की लोकप्रियता के कारण यह संवत मालव संवत के नाम से जाना गया।अब से ठीक २०७८ वर्ष पहले मालव गणराज ने शकों को परास्त किया और हिंदू नरेश होने का गौरव स्थापित किया ।विक्रम संवत ने हमें हिंदू कैलेंडर दिया।सम्राट विक्रमादित्य से लेकर राजा भोज के काल तक कि लगभग 10 सदियों में भारत जिस ऊंचाई पर था, वह भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ में दर्ज है।
हम भारतीयों की उत्साह धर्मिता का क्या कहना! हम घोर विपत्ति में भी पर वह मना लेते हैं, हंस लेते हैं,नाच लेते हैं, गा लेते हैं।अभाव और असुविधाओं में रहकर भी संतोष से जीवन यापन करते हैं।
तो आए हम सब मिलकर नववर्ष का स्वागत करें अपना नव संवत्सर मनाएं।
गीता परिहार
अयोध्या
👌🏻
जी, धन्यवाद
आपका हार्दिक धन्यवाद