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मैंडी का ढाबा - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

लेखसमीक्षा

मैंडी का ढाबा

  • 89
  • 12 Min Read

एक पाठकीय समीक्षा

'' मैंडी का ढाबा  " (एक कहानी संग्रह)
लेखक : अजय कुमार
प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, नयी दिल्ली


अजय कुमार जी की रचनाएं मै बहुत समय से फ़ेसबुक पर पढ़ रहा हूँ, उनकी प्रारम्भिक रचनाओं से ही मैं उनके लेखन से बहुत प्रभावित हुआ. इतना अच्छा और संवेदनशील लेखन कम ही देखने को मिलता है..

उनकी कोई भी रचना पढ़ने का अनुभव हमेशा बहुत सुखद और मन मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ देने वाला होता है.

सभी रचनाओं में लेखक के गाम्भीर्य, हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य के अत्यंत विस्तृत और  दीर्घकालीन अध्ययन की छाप स्पष्ट दिखती है.
फ़ेसबुक पर भी लेखक की रचनाओं की भूरि भूरि प्रशंसा हुयी है.

'' मैंडी का ढाबा  '' उनकी ग्यारह ख़ूबसूरत कहानियों का संकलन है. लेखक ने पुस्तक अपने परमपूज्य  '' बाऊ जी  '' और अपने एक प्रिय मित्र उमेश जी को समर्पित की है.

"टाइम मशीन " में लेखक का '' आत्मकथ्य है. पुस्तक की प्राप्ति अत्यंत सुखद अनुभव था..! समझ में नहीं आ रहा था कि पहले क्या पढ़ू..
फ़ेसबुक पर भी मैं अजय जी की रचनाएं धीरे-धीरे, बहुत आराम से पढ़ता था जिससे उसे पढ़ने का सुख देर तक पा सकूं.. अजय जी का लेखन अद्भुत तथा बहुत ही आकर्षक है.लेखन पर उनके साहित्य और कला के ज्ञान की स्पष्ट छाप है. उनके वर्णन इतने सुन्दर, सजीव और आकर्षक होते हैं कि चकित रह जाना पड़ता है.

अतः उनकी कहानियां भी धीरे-धीरे ही पढ़ीं..!!
मैने प्रारम्भ '' टाइम मशीन '' से किया..! उनके " अपने मन की बात.''
'' सुबह के पहले " को पढ़ कर कुछ-कुछ '' आपका बंटी '' याद आ जाता है .

'' दो बहनें '' की नटखट किन्तु संवेदनशील 'नीतू' अपनी बड़ी बहन के लिए अपने प्रेम का मूक, निशब्द बलिदान दे देती है.
'' अनामिका : एक डायरी '' एक चौदह वर्षीय प्रतिभाशाली किशोरी की संघर्ष-यात्रा है. जिसमें वह अन्ततः विजयी होती है.

अजय जी के वर्णन बहुत स्वाभाविक और बिल्कुल सजीव होते हैं. मैंने बहुत स्थानों पर अनुभव किया है..

'' पैरोल '' एक अलग कहानी है.. उसके प्रारंभ की पंक्तियों में एक '' एबन्डंड चर्च '' से होकर ग्रेवाल काटेज तक जाता रास्ता.. वैसी ही अजीत की ज़िन्दगी भी....

'' क्या मैं अब भी दिल में हूँ '' एक बहुत ही छोटी सी
कहानी है. एक शादी में ' वह ' अपनी पूर्व प्रेमिका से मिलता है. केवल इतना ही जानना चाहता है. कि क्या अभी भी वह उसके दिल के किसी कोने में है? वह सिक्का फेंकती भी है, स्वीकारोक्ति में. लेकिन दुर्भाग्य से वह उसे नहीं मिलता.. निराश हो कर बहुत दुखी मन से वह बोझिल कदमों से वह वापस चला जाता है...






सभी कहानियाँ अपने आप में विशिष्ट और उच्चकोटि की हैं.
मैं तो एक सामान्य पाठक  हूं लेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि '' अजय कुमार '' जी का लेखन अद्भुत है और दिल को छू लेने वाला है.

कमलेश वाजपेयी
नौएडा

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सीमा वर्मा

सीमा वर्मा 2 years ago

बहुत सुंदर शब्दों के चयन आपके द्वार ा की गयी समीक्षा में मैंनें भी पढ़ी है पुस्तक

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत धन्यवाद और आभार 🙏

समीक्षा
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