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सागर जैसी आंखों वाली - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

सागर जैसी आंखों वाली

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  • 23 Min Read

सागर जैसी आंखों वाली


जब से कॉलेज से रीयूनियन का मेल आया था रोशनी का मन कैसा कैसा हो रहा था। जाने क्या क्या तो याद आ गया था। कॉलेज कैंपस की सारी मस्तियां याद आ गई। वो क्लास रूम में दोस्तों से इशारों इशारों में बात करना, ध्यान ना देने पर चॉक से एक दूसरे को मारना। स को श बोलने वाले तिवारी सर की क्लास बंक करके कैंटीन में समौसे और कोक की महफ़िल जमाना, या फिर ग्रुप स्टडीज़ के नाम की हुड़दंग सब कुछ आंखों के आगे एक फिल्म की तरह घूम गया। पर सबसे ज्यादा याद आया दीपक और उसकी वो खूबसूरत, ज़िंदगी से भरी, झील सी नीली आंखें। दीपक की आंखों के प्रति रोशनी की दीवानगी का आलम कुछ ऐसा था कि उसने पूरा रजिस्टर आंखों का स्कैच बना कर भर दिया था।
दीपक की खूबसूरत आंखों पर केवल वही नहीं कॉलेज की और भी ना जाने कितनी ही लड़कियां फ़िदा थीं, पर वह रोशनी पर फ़िदा था और यह रोशनी जानती थी। रोशनी अपना पूरा जीवन दीपक के साथ मुस्कुराते हुए बिताना चहती थी। पर अफसोस उसके जीवन में खुशियों के फूल खिल कर भी नहीं खिले। बारात भी सजी रोशनी की और डोली भी पर गृहस्थी का सुख क्या होता यह पता नहीं चला। शादी के बाद दहेज की बलिवेदी में सारी खुशियां होम हो गई। बरसों तक कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने के बाद एकेडमिक डिग्रियों और पदकों के साथ तलाकशुदा का तमगा भी जुड़ गया।
इसके बाद उसके दिल में भरा भावनाओं का सोता भी रीत गया। अपनी छोटी बहनों के साथ ऐसा कुछ ना होने दूंगी अब बस यही उसके जीवन का एकमात्र ध्येय बचा था। स्थानीय डिग्री कॉलेज की नौकरी ने रोशनी को सहारा दिया और रोशनी ने अपने मां पापा को! ज़िंदगी के दिन कटने लगे। इतना सब होने के बाद भी उसकी आंखों से आंसू नहीं गिरे थे, या तो सूख गए थे या वादे की अहमियत समझने लगे थे।
रीयूनियन में जाऊं ना जाऊं की कशमकश के बीच रोशनी ने आखिर खुदको मना ही लिया। सालों बाद गुलाबी रंग का चिकन की कढ़ाई वाला सूट पहना था, यह रंग दीपक को भी तो पसंद था। कॉलेज पहुंची तो देखा बहुत सारे पुराने दोस्त आए थे। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उसकी सारी सहेलियां अपने पतियों के साथ थीं जबकि वह अकेली। उम्र ने लगभग सभी के चेहरों पर अपनी छाप छोड़ रखी थी फिर भी सब एक दूसरे को पहचान ही गए। महिलाएं सबसे अपने पतियों का परिचय करवा रही थीं। सभी व्यस्त थे सिवाय रोशनी के, वह तो जैसे भीड़ में अकेली थी।
रोशनी का उस रौनक में मन नहीं लग रहा था, वह एक कोने में कुर्सी पर बैठ गई। रोशनी की आंखें हर तरफ़ बस दीपक को ही ढूंढ रही थीं, यह जानते हुए भी कि वह यहां नहीं है, हो ही नहीं सकता। वह तो कब का जा चुका था। रोशनी ने आसमान की ओर देखा जगमगाते चांद में काले धब्बे सा वह काला दिन आज भी पहाड़ सा रखा था रोशनी के दिल पर।
कॉलेज ट्रिप पर घर से तो सभी हंसते खेलते निकले थे। कितनी खुश थी रोशनी कि उसे दीपक के साथ पूरे दो दिन बिताने का मौका मिल रहा है। हां! वह ऋतु और पूरब की तरह उसके साथ बैठने की हिम्मत नहीं कर पाई थी। तो क्या! दीपक पास तो था ना उसके। अंताक्षरी का दौर चल रहा था, दीपक गा रहा था'

चेहरा है या चाँद खिला है
ज़ुल्फ़ घनेरी शाम है क्या
सागर जैसी आँखों वाली
ये तो बता तेरा नाम है क्या ...


दीपक अक्सर यह गाना गुनगुनाया करता था और वह हंस कर कहती, 'सागर तो नीला होता है पर मेरी आंखें बादामी हैं।'
'तो क्या हुआ जो तुम्हारी आंखें नीली नहीं, मेरी हैं ना और मेरी हर चीज़ तुम्हारी ही तो है।'
'तो क्या मुझे अपनी आंखें भी दे दोगे?' रोशनी खिलखिला कर हंस देती और दीपक हौले से मुस्कुरा देता।
अब रोशनी का उस फंक्शन में मन नहीं लग रहा था, वह ऋतु को बता कर घर चली आई। उसके कानों में अब भी दीपक की गिटार गूंज रही थी, उस दिन भी तो वह ऐसे ही दीपक के सुरों में खोई हुई थी कि वह धमाका हुआ! जोरदार धमाका! उस धमाके ने रोशनी की ज़िंदगी से रोशनी का अस्तित्व ही मिटा दिया। अब उसके जीवन में बस दुख और अंधेरा ही बचा था। जब उसे होश आया तो एकबारगी तो समझ ही नहीं आया क्या हुआ है, जब समझने लायक हुई तो पाया सब कुछ तो लुट गया अब बचा ही क्या था समेटने को। दीपक की मां आईं थी उस दिन उसे देखने। पापा उनके सामने हाथ जोड़ कर रो दिए थे।
दीपक की मां बस इतना ही कह सकीं, 'भाईसाहब मैं तो दीपक और रोशनी को एक करना चाहती थी पर नीयती को यह मंजूर नहीं था। मेरे मन की वह चाह तो मन में ही रह गई पर दीपक की सबसे कीमती अमानत मैं रोशनी को सौंप कर जा रही हूं। रोशनी मुझसे वादा करो मेरे दीपक की धरोहर का मान रखोगी, हमेशा वैसे ही हंसती मुस्कुराती रहोगी जैसे दीपक तुम्हें देखना चाहता था। कभी अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दोगी।' दीपक की मां ने रोशनी की ओर अपनी हथेली फैला दी और रोशनी ने उनकी हथेली पर अपना हाथ रख दिया। दीपक की मां उसका सर सहला दिया। उस पल सबकी आंखों में आंसू थे बस रोशनी की आंखें सूखी थीं। वह उसके बाद आज तक कभी नहीं रोई।
रोशनी घर आ कर सीधे अपने कमरे में चली गई और आंखें बंद कर बेड पर लेट गई। घर में सभी उसके दिल की हालत समझ रहे थे। छोटी बहन ने रोशनी की उदासी दूर करने के लिए मोबाइल पर एफ एम रेडियो चला दिया। रेडियो पर उस वक्त आपकी पसंद प्रोग्राम में किसी ने अपने प्रिय के लिए गाना डेडिकेट किया था, 'सागर जैसी आंखों वाली, ये तो बता तेरा नाम है क्या,' चौंक कर रोशनी ने आंखें खोलीं तो सामने आइने में अपनी नीली आंखें देख कर अपना किया हर वादा भूल गई और आज बरसों बाद फूट फूट कर रो पड़ी।

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

विलक्षण

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

Anju Gahlot

Anju Gahlot 3 years ago

बेहतरीन कहानी अंकिता ....

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया मैम

दादी की परी
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