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कुंभलगढ़ की दीवार
करीब 36 किलोमीटर लंबी दीवार जहां से अरावली पर्वत श्रृंखला 10 किलोमीटर दूर तक दिखाई देती ,13 पहाड़ियों से
घिरी हुई, समुद्र की सतह से 1,914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार ,जिसकी चौड़ाई करीब 15 मीटर है, इस पर एक साथ करीब 10 घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं,जो पहाड़ की चोटी से घाटियों तक फैली हुई है और सैकड़ों साल पहले बनी होने के बावजूद आज भी वैसे की वैसी ही खड़ी है, कहीं से भी क्षतिग्रस्त नहीं है,उस दीवार के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं,यह है भारत की 'महान दीवार' ,कुंभलगढ़ की दीवार।
यह दीवार राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।दरअसल कुंभलगढ़ एक किला है, जो 'अजेयगढ़' भी कहलाता था, क्योंकि इस किले पर विजय पाना बेहद ही मुश्किल काम था।मुगल शासक अकबर भी इस किले की दीवार को नहीं भेद पाया था।
कुंभलगढ़ किले का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। इसे बनने में 15 वर्ष लगे थे। महान शासक महाराणा प्रताप का जन्म इसी किले में हुआ था।महाराणा सांगा का बचपन भी इसी किले में बीता था। कहा जाता है कि हल्दी घाटी के युद्धके बाद महाराणा प्रताप काफी समय तक इसी किले में रहे थे।
इस किले के भीतर 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें से 300 प्राचीन जैन मंदिर और शेष हिंदू मंदिर हैं।इनमें से अब बहुत से मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए हैं। इस किले के अंदर एक और किला है, जिसे 'कटारगढ़' के नाम से जाना जाता है। कुंभलगढ़ किला सात विशाल द्वारों से सुरक्षित है।किले में प्रवेश के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमानपोल और विजयपाल आदि दरवाज़े हैं।
अबुल फजल लिखते हैं, 'यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।'
कुंभलगढ़ किले की दीवार के निर्माण से जुड़ी एक बेहद ही रहस्यमय कहानी है। कहते हैं कि सन् 1443 में महाराणा कुंभा ने जब इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ तो इसमें बहुत सी अड़चनें आने लगीं। इससे चिंतित होकर राणा कुंभा ने एक संत को बुलवाया और समाधान जानना चाहा।उस संत ने कहा कि, यदि स्वेच्छा से कोई व्यक्ति खुद की बलि देगा दीवार तभी बन सकेगी।
यह सुनकर राणा कुंभा चिंतित हो गए, लेकिन तभी एक अन्य संत खुद की बलि देने को तैयार हो गए। उन्होंने कहा कि, उन्हें पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां भी वह रुकें, उन्हें मार दिया जाए और वहां देवी का एक मंदिर बनाया जाए। कहते हैं कि वह संत 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गए। इसके बाद वहीं पर उनकी बलि दे दी गई। इस तरह दीवार का निर्माण कार्य पूरा हो सका ।
कुंभलगढ़ का किला इस दीवार से चारों तरफ से घिरा है, इसे कुंभलगढ़ की 'सिटी वॉल' कहा जाता है। रात में दीवार के चारों तरफ मशालें जलाई जाती हैं, जिसकी रौशनी से पूरी दीवार जगमगा उठती है। यह अद्भुत नज़ारा देखने के लिए बड़ी संख्या में यहां सैलानी आते हैं और पर्वत की चोटी से इस नज़ारे का लुत्फ़ उठाते हैं।