कवितानज़्म
अपने ही लगे हैं भुलाने में हमको भूल क्या हम से हुई,
हयात में अपनीतो हरेक बातकी शुरूआत ग़म से हुई।।
बहुत की पहल हमने आगे बढ कर फासले मिटाने की,
हमारे हबीब की तरफ़ से हर पहल कमतर से कम हुई।।
राह-ए-सफ़र जोभी क़दम उनका उठा फासले का उठा,
कोशिश-ए-वस्ल जो भी हुई हमारे ही अपने दम से हुई।।
उम्मीद का दामन हम ना कभी छोड़ेंगे जीते-जी "बशर",
गो इब्तिदा-ए-सफ़र वहम से हुई इन्तेहा भी भ्रम से हुई।।
@"बशर"