कवितालयबद्ध कविता
वो अनमोल नगीना साँसों का उनके छल्ले में था।
आज इश्क़ बदनाम उनके मोहल्ले में था।
वो बेख्याली में गुजर रहे थे दिल की गलियों से।
मेरे प्यार का निशान उनके गले में था।
खिलाफत की जमाने ने बड़ी हिमाकत थी उनकी।
पर मेरा घर भी उनके घर से अगले में था।
बड़ी खुद्दार थी निगाहें उनकी जो हम पर टिकी
कमबख्त दिल उस पर बस फिसलने में था।
तमाशा बना दिया उसने मोहब्बत का सरे आम
बेईमान इश्क़ न बिल्कुल सम्भलने में था।
अब जादूगर बन न करना कोई जादु मुझ पर तु
तू आगे रही मैं अभी ख्वाब पिछले में था।
करके देख तू फना एक बार खुद को मुझ पर न कहना
एक वो आशिक था चला गया जिसका नाम दिल के हर पन्ने में था। - नेहा शर्मा