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उनको - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

उनको

  • 188
  • 4 Min Read

बहुत नाजुक हूँ सोचकर मुझसे वो नाता तोड़ लेता है।
मेरे घर से कुछ कदम की दूरी पर ही कमर मोड़ लेता है।
ना समझ है वो नही समझता है मेरी कमजोरी को।
डरता है खुद से तभी तो हर बात को आसानी से छोड़ लेता है।
बदनामियों के गलियारों से गुजरता आधी रात चुपके से वो।
सूरज की किरण के साथ उजले कपड़ों में चुप्पी तोड़ लेता है।
होकर मेरा वो मेरे नाम के कलमें कुछ यूं पढ़ता है जालिम
पाक साफ दामन उसका और हिम्मत मेरी तोड़ देता है।
उसने देखा खरोंचा बदन मेरा, जितनी उसकी औकात थी।
मेरे घर के मंदिर को मैंने बड़ा ही पावन करके छोड़ा है।
कहता है सबको उन वैश्याओं की गलियो में मत जाना।
उन्हें क्या पता हमने ही उनको इंसान बनाकर छोड़ा है। - नेहा शर्मा

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

खूबसूरत..!

नेहा शर्मा3 years ago

ji bahut bahut shukriya

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

वाह बहुत खूब

नेहा शर्मा3 years ago

aapka bahut bahut shukriya

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