कहानीसामाजिकअन्य
बाल कहानी
बुलबुल
एक थी नन्हीं सी बुलबुल। नाम था भूरी। वह बड़े से इमली के पेड़ पर सबके साथ रहती थी।
एक दिन मां जब दाना चुन्नी गई तब उसने घोंसले से गर्दन निकालकर आसपास देखा। मां का सख्त निर्देश था कि वह घोंसले से बिल्कुल नहीं बाहर निकलेगी! वह निकल कहां रही थी, उसने तो केवल अपनी गर्दन निकाली थी! यह देखने के आसपास की दुनिया कैसी है मां क्यों से कहती है कि घोंसले के अंदर ही रहा कर? यहां तो उसे घना जंगल, सुदूर ऊंचे पहाड़ नज़र आए। सोचने लगी, कितनी सुंदर है दुनिया! मां क्यों मुझे इस दुनिया में जाने से मना करती हैं।
आसमान में उड़ते अन्य परिंदे भी उसे दिखाई दिए। अब तो वह मां की सारी वर्जनाओं को तोड़कर बाहर निकल कर इस रंग- बिरंगी दुनिया को देखने के लिए तैयार थी। वह लपककर नज़दीक की डालल पर बैठ गई।पास की दूसरी डाल पर बैठी कोयल ने उसे रोकना चाहा, पर वह भला अब किसकी सुनने वाली थी! उसने एक लंबी सी उड़ान ली। फिर एक नीची उड़ान और वह नीचे आने लगी।इसमें उसे बहुत मजा आने लगा। कभी ऊपर, कभी नीचे, कभी दाएं और कभी बाएं।
अब उसने एक पेड़ को अपना लक्ष्य बनाया। अपने नन्हे पंखों को तोला और उड़ान भरी।पेड़ की टहनियों में छिपे सांप को नहीं देख पाई। जैसे ही वह झूलती हुई टहनी तक पहुंची, सांप ने उसे लपक लिया। बुलबुल ने मौत सामने देखकर अपनी आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद जब उसने आँखें खोली तो देखा,वह सुरक्षित थी और सांप को मुंह में दबोचे नेवला तेजी से नीचे उतर रहा था। बुलबुल के लिए आज का इतना ही पराक्रम काफी था। वह तुरंत अपने घोंसले की ओर उड़ चली।
बुलबुल को सबक मिल चुका था। आज तो वह बच गई थी। अब कभी भी बिना मां की इजाजत के वह घोंसले से नहीं निकलेगी।