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देख ये कौन चलें हैं - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

देख ये कौन चलें हैं

  • 420
  • 7 Min Read

बाजुएँ फैलाये अपनी, देख ये कौन चलें हैं।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं।

शान में वतन की जो जान गँवा रहे।
भूलाकर गाँव अपना वो वतन बचा रहे।
क्या बेटी, क्या बेटा, क्या जात, क्या विजात
सब धूमिल हुए जब एकाएक कदम बढ़ें हैं।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं.
बाजुएँ फैलाये अपनी देख ये कौन चलें हैं।

फिर एक ईंट सरहदी दीवार से गिरी है,
क्या फर्क कि वो लड़का या लड़की है।
बचाने को सैकड़ों जान-ए-नादान
वो लड़ रहे और लड़ते जा रहें हैं।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं,
बाजुएँ फैलाये अपनी देख ये कौन चलें हैं।

छिपा नहीं शौर्य जिनका जंगे मैदान में,
चाहें हों हजार दुश्मन लम्बी कतार में।
छुपके वार करते वे मूर्ख सुबहोशाम
और वो दिनरैन, अथक, अपलक डटें हैं।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं,
बाजुएँ फैलायें अपनी देख ये कौन चलें हैं।

याद आती घर की जब उन्हें कभी भी,
देते दिलासा दिल को, रूक जा अभी भी।
खातिर उनके जो आबाद हैं हिन्दुस्तानी,
वो हाल-बदहाल में, सरहद पे खड़े हैं।।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं,
बाजुएँ फैलायें अपनी देख ये कौन चलें हैं।

मिला था एक सौगात जब अपने गाँव का,
वो खेत की मेढ़ और मचलती धूप छाँव का।
पर निकलते ही सरहद की पुकार आ गई,
कि सामने दुश्मनों के कई हुजुम निकलें हैं।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं,
बाजुएँ फैलाये अपनी देख ये कौन चलें हैं।
© शिवम राव मणि

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत.... खूब

शिवम राव मणि3 years ago

आपका शुक्रिया

Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया सर

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बेहतरीन अभिव्यक्ति

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर रचना

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया सर

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर रचना

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया आपका

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