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London is the capital city of England.
कविताअन्य
तुमसे दूर होना मंजूर न था
यूं नाकाम होना मंजूर न था
लड़कर जमाने से चाहा था तुम्हें
फिर बर्बाद होना मंजूर न था
हम जानते हैं कसम तुम्हें भी थी
बदलने का दिखावा मंजूर न था
दरवाजा खोला मेज पर चाय रखी
बुलाने
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कविताअन्य
तुम्हारी सादगी ने इस कदर दीवाना बनाया
सुनार से एक पाजेब खरीदकर ले आया
ये हीरे, ये जेवरात फीके हैं तुम्हारे आगे
मनिहार से बिंदी, सिंदूर खरीदकर ले आया
दुप्पटा भी अच्छा है पर पल्लू की बात अलग
तुम्हारे
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कविताअन्य
सबेरा होगा इस आस में हूं
नहीं कोई संदेह विश्वास में हूं
अंधेरों से घिरा रहा बेशक अब तक
उजालों के लेकिन बहुत पास में हूं
जिंदगी में रही मुश्किलें बहुत
मुश्किलों के बीच उल्लास में हूं
बंदिशों
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कविताअन्य
सुबह नहाकर खिड़की के करीब
बाल सुखाती
याद आती हो तुम .....
माथे पर सुर्ख बिंदी मांग में मेरे नाम का
सिंदूर लगाती
याद आती हो तुम .....
नित सांझ-सबेरे नियम से पूजन-अर्चन
घर को स्वर्ग बनाती
याद आती हो
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कविताअन्य
समय बदलता है तो लोग बदल जाते हैं
इंसान नहीं रहते वो मौसम नजर आते हैं
शिकवा-शिकायत कैसी जमाने का दस्तूर है
लहलहाते पेड़ के नीचे छांव ढूंढने जाते हैं
हैसियत जरा कम क्या हुई अपनी यारों
पल-पल औकात
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कविताअन्य
सियासत....
ये जो एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं
सियासत है, मुद्दे से ध्यान भटकाते हैं।
इनके कहे पर भरोसा न कर लेना कभी
अमीरी का ख्याब दिखा, गरीबों को हटाते हैं।
पांच बरस पहले आए थे एक दिन
बस्ती वाले आज
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कवितालयबद्ध कविता
वीणावादिनी
वीणावादिनी, हंसवाहिनी
ये तुम्हारे ही तो नाम हैं
विद्या की देवी हे सरस्वती
तुम्हें हम सभी का प्रमाण है।
तुम सहज सम्भाव हो
तुम सृजन और काव्य हो
तुम विश्व वीणावादिनी
हम छंद और विराम
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प्रणाम मां सरस्वती जी को, बहुत अच्छी रचना
Dhanywad
कवितागजल
सरकार करो कुछ ऐसा राहत हो जाए,
गरीबों की सुनने की तुम्हें आदत हो जाए।
तुम्हारे अहसान तले दबकर जीते रहेंगे हम,
कहीं ऐसा न हो कि जमानत जब्त हो जाए।
कभी तुम्हारे लिए उठे हाथ, दुआएं मांगी थी,
बद्दुआ
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कविताअतुकांत कविता
संवेदना...
अपनों की दुत्कारी
एक वृद्धा
दो दिन से पड़ी थी
सड़क किनारे।
ठंड से कांपती, खांसती
नाली की बदबू
कचरे के ढेर
और मच्छरों के बीच।
राहगीर आते-जाते देखते
नाक-भौंह सिकोड़ते
मुंह बनाते निकल जाते।
बच्चे
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कविताअतुकांत कविता
संवेदना...
मानवीय संवेदनाओं को
अपनी अतृप्त लेखनी से
व्यक्त कर समेटता हूं
ढेर सारी शाबाशी
खुश होता हूं
पाकर प्रशस्ति-पत्र
गड़गड़ाहट सुन तालियों की
प्रफुल्लित होता हूं
लेकिन
कोई नहीं सोचता
सोता
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कवितागजल
सरकार करो कुछ ऐसा राहत हो जाए,
गरीबों की सुनने की तुम्हें आदत हो जाए।
तुम्हारे अहसान तले दबकर जीते रहेंगे हम,
कहीं ऐसा न हो कि जमानत जब्त हो जाए।
कभी तुम्हारे लिए उठे हाथ, दुआएं मांगी थी,
बद्दुआ
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कविताअतुकांत कविता
मासूम गांव.....
कुछ लोग निकले थे गांव से
बड़ा आदमी बनने
आज अता-पता नहीं है उनका
गांव तो वहीं है पहले से बड़ा
काफी बड़ा
कहीं जाए बिना
उन्हें आज भी लौटना गंवारा नहीं
जो कल रहना नहीं चाहते थे गांव में
गांव
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कविताअतुकांत कविता
पेड़ से बात.....
ऐ पेड़ सुनो
तुम क्यों हो
हमारे स्वभाव से ज्यादा अच्छे
तुम निर्मल क्यों हो
हमारे विचारों से ज्यादा
तुम्हारी ऊंचाई
हमारी स्वनिर्मित ख्याति से ज्यादा है
इसलिए हम मानते हैं
अपने ही जे.सी.बोस
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कविताअतुकांत कविता
सबसे बड़ी मां....
अपने
प्रथम प्रयास से आज तक
मां पर लिखी
सामान्य से सुंदर
छोटी से बड़ी कविताएं सभी
जब कभी भी गुनगुनाता हूं
मां को बड़ी
कविता को छोटी पाता हूं।
मां का यह रहस्य
समझ नहीं पाता हूं
न तो मां
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कविताअतुकांत कविता
कुछ दिनों पहले
एक कुत्ते को
नेता बनने का शौक चढ़ गया
यकीन मानो
चंद दिनों में वह
आम आदमी की मौत मर गया।
मामले की सूक्ष्म जांच के लिए
जंगली राज के तोते की सिफारिश हुई
जांच में वहज मौत की जो सबके आई
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कविताअन्य
दर्द छुपाता रहा.....
दर्द को अपने छुपाता रहा,
सभी के सामने मुस्कराता रहा।
रात के बाद आती है सुबह,
मन को धीरज बंधाता रहा।
अधरों से जो कह न पाया,
गीत वहीं गुनगुनाता रहा।
पल दो पल का है जीवन,
बस फर्ज
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बहुत सुंदर
Thanq
Thanq
Thanq
बढ़िया बात। सर यह तो छंद कविता लग रही है
Dhanywad
कवितागजल
कितने बदल गए हालात खुद ही देखिए,
हुक्मरान हुए सड़क छाप खुद ही देखिए।
उसूलों की फ्रिक न कायदों की चिंता,
संविधान बना मजाक खुद ही देखिए।
घर अपना भरकर उपदेश दे रहे,
खद्दरधारी संत यहां खुद ही देखिए।
भूख
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कविताअन्य
ऐ विदा लेते हुए साल
तेरे जैसे न हम सताएंगे,
याद रखना नहीं चाहते
लेकिन भूल न पाएंगे।
स्वागत तूने खूब कराया
दो महीने बाद सताया,
पूरे विश्व में किया अंधेरा
लाशों का फिर ढेर लगाया।
आगे तुझसे हम ही
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कविताअन्य
ऐ विदा लेते हुए साल
तेरे जैसे न हम सताएंगे,
याद रखना नहीं चाहते
लेकिन भूल न पाएंगे।
स्वागत तूने खूब कराया
दो महीने बाद सताया,
पूरे विश्व में किया अंधेरा
लाशों का फिर ढेर लगाया।
आगे तुझसे हम ही
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कवितागजल
कोरोना का दर्द
दिन पर दिन, रात पर रात भारी है
इस वर्ष का हर पल लोगों पर भारी है।
सैकड़ों वर्षों की मेहनत जैसे मिट्टी हो गई
व्यक्ति पर सृष्टि की शक्ति आज भी भारी है।
डूबती आशा थी और स्वप्न कई टूट गई
आंखें
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कविताअतुकांत कविता
तुम्हारा प्यार.....
तुम्हारे मधुमय प्यार से उपजे
अक्षर
शब्द
वाक्य
गूंज रहे हैं
आज भी यादों में
संचित है आज भी
आंखों में
तुम्हारी मोहक मुस्कान
निधि बन
धरोहर सी
क्या कभी
इस अनुपम प्यार का प्रतिदान
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कविताअतुकांत कविता
खुशफहमी.....
रात को बिस्तर पर
अकेला होता हूं
एक सन्नाटा उभरता है
तुम्हारे बोलों की तरह
हवा फुसफुसाती है
बजा के सांकल
हवा खिलखिलाती है
छूकर पैर के तलवे
हवा मुस्कराती है
ऐसे में जागता हूं
और
तुम्हारे
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कविताअतुकांत कविता
हर्षित....
पता नहीं कितनी आकांक्षाएं
कितने स्वप्न अपने में ही
सिमट कर रह गए
पता नहीं क्या है
जो कांटे सा चुभता है
सोने नहीं देता रात भर
एकांत बन जाता है
जिंदगी का सिलसिला
विवशता बनती है
जिंदगी
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कविताअतुकांत कविता
ख्वाहिश.....
मेरे शब्द तो
बार-बार मुस्कराना चाहते हैं
तुम्हारे अधरों पर
पर मैं जानता हूं
यह कभी नहीं होगा
शायद इसलिए मैं चाहता हूं
नागफनी, बबूल और
कांटे दर कांटे......
अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’
कविताअतुकांत कविता
तस्वीर....
मैंने कभी सोचा नहीं
तुम कोमल हो या सुकोमल
मैंने तो
अनुभव किए
तुम्हारे अंतर्मन के रंग
और
उनकी तरल संगीतमयता
इसलिए मैं नहीं चाहता
जिस्म के कैनवास पर
कोई तस्वीर बनाना
तुम्हें दिल के कैनवास
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कविताअतुकांत कविता
आत्मविश्वास.....
जब जब देखा तुम्हें
महसूस किया
तुम्हारे शरीर पर लगे
हरेक जख्म का दर्द।
ये दिल तुम्हारे लिए दुआ करता है
और चाहता है
उन्मुक्त गनन में विचरण करो तुम।
फिर नहीं होगी पीड़ा
उस जानवर की
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कविताअतुकांत कविता
सिसकियां.....
खामोश सिसकियां
सुन लेता हूं पर
कहता नहीं ।
भरोसा नहीं है कि
तुम अपना समझते होगे।
यकीन मानो
जिन दिन यकीन हो जाएगा,
कि तुम्हें यकीन है मुझ पर
उस दिन
पुरानी सिसकियों से छुड़ा लूंगा
नई सिसकियों
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कविताअन्य
पढ़े चलो, पढ़े चलो.....
लूट लो खसोट लो
जो मिले समेट लो,
राह में जो मिले
गर्दनों को ऐंठ लो।
वर्तमान दमक रहा
जो मिले बटोर लो,
नीति की जो बात करे
उसको बस नकेल दो।
महान लोकतंत्र में
लोक को लपेट लो,
राह में
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कविताअतुकांत कविता
अंतिम प्यार.....
समय की मोटी परत
जम गई है हमारे संबंधों पर
किंतु वे अनुभव
कभी नहीं भुला पाया
जो लगाव और व्याकुलता में
मैंने तुमसे ही पाए हैं
मेरा दिल फिर वैसा ही धड़का
तब तुम मेरे सामने आई
किंतु इस
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कविताअतुकांत कविता
तुम्हारा अहसास.....
मेरे मन मस्तिष्क में
आज तक अंकित है
तुमसे प्रथम मिलन की छवि
मुझको
अहसास कराती है
तुम्हारा
आसपास होने का
तुम्हारा यही अहसास
गर्मी की रातों में सुहानी पुरवाई
और जाड़े के दिनों
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सर आपका अंदाज़ दिलचस्प है। मैं आपकी और कविताओं को पढ़ना चाहूंगा
जरूर, जल्द ही कुछ और रचनाएं पढ़िएगा....
कविताअतुकांत कविता
तुम्हारी मुस्कान.....
मेरे जीवन की खुशियों के
चंद पलों में
जुड़ गया है नाम तुम्हारा
मेरे जीवन की
एक याद हो तुम
बंद होठों की
एक बात हो तुम
तुम्हारी मुस्कान मेरी प्रेरणा
और
तुमसे हर्षित है जीवन मेरा....
अजय
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कविताअतुकांत कविता
सांवलापन.....
तुम्हे याद होगा
उस प्रेम दिवस को
मेरा अपलक तुम्हे निहारना
मैं खो गया था जब
तुम्हारे सांवले मुखड़े में
तुम्हारा सांवलापन
उस प्रेम दिवस से ही
मुझे अच्छा लगने लगा
क्योंकि
चमकते सूर्य
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कविताअतुकांत कविता
हमसफर.....
लगता है मानों कल की बात है
पहली बार मिले थे जब हम
इसी दरम्यान
एक-दूसरे को जाना समझा
रुचियां-विचारधारा
मिलती थी कितनी दोनों की
वही संगीत, वही फिल्में
वही कविता, वही किताबें
हम दोनों को पसंद
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बहुत अच्छा आप ऐसे ही लिखते रहिये शेयर करते रहिए
bahut bahut Dhanywad
कविताअतुकांत कविता
जीत जाएंगे हम....
जीत जाएंगे हम....
हे ईश्वर आप साथ हो,
बीमारी को हरा देंगे हम।
आशीष भरा हाथ हो,
मुसीबत से नही डरेंगे हम।
आपकी दी हुई हिम्मत से
जीत जाएंगे हम .........
जब भी आई मुसीबत सब पर
हर बार बचाया आपने
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