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"निकल"
कविता
कोई दिल में जब उतरता है
बादल
माई
एक और रामधुन
हमसफर.....
मैं बाहर निकलूंगा तो
#सृष्टि का क्रम
ये हुनर दिखाने का
एक और रामधुन
अदू समझा जिसे मेरी हबीब निकली
थोड़ी-सी जरुरतों वाले घर की रहगुज़र पर
*जीने के हुनर भूल गए *
आह निकली
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
खुशियों से ज्यादा ग़म निकले
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
वक़्त हाथ से फिसल गया
हबीब की रक़ीबों से रब्त-ए-शानाशाई निकली
होश में रहता हूँ
सफ़रपर तो निकलना पडेगा
ताबे'दार बे-शु'ऊर निकला
वक़्त को मनाने में जमाने निकले
दिल से वतन निकला ही नहीं
कागज़, किताब ओ कलम बचे
दूर खुद से भागता रहा आदमी
कहाँ गया आदमी
क्या आखीर-ओ-तासीर से भी बचकर निकल सकते हो
मतलब निकल जाए तो कदर कौन करता है - sumit arya shayari - शायरी
गुजिश्ता साल.... नज़्म
बच निकला उसे रब मिला
तजरबात मिले
बेवफ़ा निकला हबीब हमारा
सफ़र का हो गया
अल्फ़ाज ऐसे न निकल पड़े कि वापस लेने पड़े
लौट कर नहीं आऊंगा
पता लगा कि लापता निकले
लहू पसीना बनकर रोमरोम से निकल आता है
कहानी
और सूरज निकल आया
और सूरज निकल आया
झरौखे की चा ह
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