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सफ़र का हो गया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सफ़र का हो गया

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घर से निकल कर दर-ब -दर का हो गया
राहे-ए-सफ़र 'बशर' मुकद्दर का हो गया

टूट गए ख़्वाब सब छूट गए अहबाब सब
जब से हुआ मुसाफ़िर सफ़र का हो गया

© 'बशर' بشر.

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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वो चांद आज आना
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