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कवितानज़्म
घर से निकल कर दर-ब -दर का हो गया राहे-ए-सफ़र 'बशर' मुकद्दर का हो गया टूट गए ख़्वाब सब छूट गए अहबाब सब जब से हुआ मुसाफ़िर सफ़र का हो गया © 'बशर' بشر.