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माई - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

माई

  • 235
  • 3 Min Read

माई तेरा आँचल धूप में छांव जैसा,
माई तेरा दामन भंवर मे नांव जैसा।
माई मुझे चोट लगती है ऐसे न कहो-
माई तेरा गुस्सा प्यारा-सा घाव जैसा।।

माई कुछ आवाजें मुझे ढुंढती है,
माई निशा की रुदन, मुझे टटोलती है।
सुबह होने तक, माई तुम्हारे जगने तक-
मुझे अक्सर एक पीड़ा,रात भर रहती है।

कोई दिन निकल जाये कि तुम ठहर जाओ,
माई चैन ही छीन जाए ,गर तुम ठहर जाओ।
ये फूरसत की बातें और ये सुकुन के पल-
माई सब बिखर जाये कि जब तुम ठहर जाओ।।

© शिवम राव मणि

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Comrade Pandit

Comrade Pandit 3 years ago

भावनाओ को शब्दो में तब्दील कर देना ही एक अच्छे लेखक की निशानी होती है

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत सुंदर रचना ...?? परन्तु कुछ एक पंक्ति थोड़ा असमंजस वाली प्रतीत होती हैं

शिवम राव मणि3 years ago

आपका कहना सराहनीय है। आपने बिल्कुल सही कहा कि थोड़ा अटपटा लग रहा है, क्यों कि तुम ठहर जाओ के दो मतलब, विश्राम करना या बिल्कुल ही थम जाना ( यानी की कुछ ना कर पाना) , निकल सकते हैं। धन्यवाद आपका,; अगली बार से ध्यान रखूंगा।

Poonam Bagadia3 years ago

सर माँ के आने से चैन ही छीन जाना या ठहर जाने से सबकुछ बिखर जाना थोड़ा अटपटा लगा .. माँ शब्द में ही शुकुन होता हैं और माँ तो खुद निर्माता है तो ये बिखराव कैसे हो सकता है...?????

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया; त्रुटि कहां हो रही कृपया मार्गदर्शन करें

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर

शिवम राव मणि3 years ago

जी धन्यवाद

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

शिवम राव मणि3 years ago

dhanyawaad

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