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गुजिश्ता साल.... नज़्म - Wasif Quazi (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

गुजिश्ता साल.... नज़्म

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  • 4 Min Read

शीर्षक – गुज़िश्ता साल [ नज़्म ]

निकल रहा है एक और साल ज़िन्दगी से ।
पूछते रह गए…… हम सवाल ज़िन्दगी से ।।

कितने ख़्वाब मुक़म्मल हुए, सोचते हैं ।
ग़लतियों पर ख़ुद को हम कोसते हैं ।।
क़ामयाबी के मोती…. पाए हैं हमनें ।
गीत मेहनत के… गुनगुनाए हैं हमनें ।।

फ़िर भी रह गए कुछ मलाल ज़िन्दगी से ।
निकल रहा है एक और साल ज़िन्दगी से ।।

नये साल से…. उम्मीदें ढेर सारी है ।
नया करने की अभी कोशिश जारी है ।।
हासिल न कर पाए जो बीते साल में ।
पाने लेंगे वो लक्ष्य, अब पूरी तैयारी है ।।

रहना तुम बनकर हम-ख़्याल ज़िन्दगी से ।
निकल रहा है एक और साल ज़िन्दगी से ।।

©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम

28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इक़बाल कॉलोनी
इंदौर , मप्र

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